Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 642
________________ ६.२ .२ .३ CHANNEL ण वि दुक्खं ण वि सुक्खं, ण वि पीडा णेव विज्जदे बाहा। ण वि मरणं ण वि जणणं, तत्थेव य होई णिव्वाणं।।१५६।। ण वि इंदिय उवसग्गा, ण वि मोहो विम्हयो ण णिद्दा य। ण य तिण्हा णेव छुहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।।१५७।। ण वि कम्मं णोकम्म, ण वि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि। ण वि धम्मसुक्कझाणे, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।।१५८।। णिव्वाणं ति अवाहंति, सिद्धी लोगाग्गमेव य। खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो।।१५९।। लाउअ एरण्डफले, अग्गीधूमे उसू धणुविमुक्के। गइ पुव्वपओगेणं, एवं सिद्धाण वि गती तु।।१६०।। अव्वाबाहमणिंदिय-मणोवमं पुण्णपावणिम्मुक्कं । पुणरागमणविरहियं, णिच्चं अचलं अणालंबं ।।१६१।। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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