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सत्य तो तुम्हारे जीवन का परिष्कार है। सत्य तो तुम्हारे ही होने का शुद्धतम ढंग है। सत्य कोई संज्ञा नहीं है, क्रिया है। सत्य कोई वस्तु नहीं है, भाव है।
तो तुम जितने संघर्ष में उतरोगे, जितने मथे जाओगे, जितने जलोगे, जितने तूफानों की टक्कर लोगे, उतना ही तुम्हारे भीतर सत्य आविर्भूत होगा; उतनी ही तुम्हारी धूल झड़ेगी; गलत अलग होगा: निर्जरा होगी व्यर्थ से। झाड़-झंखाड़ ऊग गए हैं, घास-फूस ऊग आया है-आग लगानी होगी, ताकि वही बचे, जिसके मिटने का कोई उपाय नहीं। अमृत ही बचे; मृत्यु को तो खाक कर देना होगा। यह बैठे-बैठे न होगा। इसके लिए बड़े प्रबल आह्वान की, बड़ी प्रगाढ़ चुनौती की जरूरत है।
किश्ती को भंवर में घिरने दे, मौजों के थपेड़े सहने दे!
भंवर दुश्मन नहीं है। महावीर के रास्ते पर भंवर मित्र है, क्योंकि उसी से लड़कर तो तुम जगोगे: उसी से उलझकर तो तम उठोगे। उसी की टक्कर को झेलकर, संघर्ष करके. विजय करके, तुम उसके पार हो सकोगे।
इसलिए महावीर का मार्ग कहा जाता है, 'जिन का मार्ग', जिनों का मार्ग; उन्होंने, जिन्होंने जीता। जिन शब्द का अर्थ है : जिसने जीता। जैन शब्द उसी जिन से बना। जिन का अर्थ है : जिसने जीता।
ओशो
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