Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 665
________________ लगन महूरत झूठ सब सहज आसिकी नाहिं पीवत रामरस लगी खुमारी रामनाम जान्यो नहीं सांच सांच सो सांच आई गई हिरा बहुतेरे हैं घाट कोंपलें फिर फूट आईं फिर पत्तों की पांजेब बजी फिर अमरित की बूंद पड़ी चेति सकै तो चेति क्या सोवै तू बावरी एक एक कदम चल हंसा उस दे कहा कहूं उस देस की पंथ प्रेम को अटपटो मूलभूत मानवीय अधिकार नया मनुष्यः भविष्य की एकमात्र आशा सत्यम् शिवम् सुंदरम् सो वैस सच्चिदानंद पंडित-पुरोहित और राजनेता : मानव आत्मा के शोषक ॐ मणि पद्मे हुम् ॐ शांतिः शांतिः शांतिः हरि ॐ तत्सत् | एक महान चुनौती : मनुष्य का स्वर्णिम भविष्य धार्मिकता सिखाता हूं, धर्म नहीं तंत्र संभोग से समाधि की ओर तंत्र-सूत्र (पांच भागों में ) पत्र - संकलन क्रांति - बीज पथ के प्रदीप Jain Education International 2010_03 अंतर्वीणा प्रेम की झील में अनुग्रह के फूल बोध कथा मिट्टी के दीये ध्यान, साधना, योग ध्यानयोग : प्रथम और अंतिम मुक्ति रजनीश ध्यान योग हसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम् नेति नेति मैं कहता आंखन देखी पतंजलि: योगसूत्र ( दो भागों में ) साधना शिविर साधना-पथ ध्यान - सूत्र जीवन ही है प्रभु माटी है कुम्हार मृत्यु सिखाता हूं जिन खोजा तिन पाइयां मैं समाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की) साधना -सूत्र (मेबिल कॉलिन्स) राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याएं देख कबीरा रोया स्वर्ण पाखी था जो कभी और अब है भिखारी जगत का शिक्षा में क्रांति नये समाज की खोज ओशो के संबंध में भगवान श्री रजनीश : ईसा मसीह के पश्चात सर्वाधिक विद्रोही व्यक्ति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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