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याद घर बुलाने लगी
जब तुम अपनी गहराई में उतरोगे, वहां भूख कभी नहीं पहुंची, तुम करीब-करीब हेनरी फोर्ड के माडल हो। बस एक ही गेयर कोई नींद कभी नहीं पहुंची, कोई दुख, कोई सुख वहां कभी नहीं पता है कि चले! और ऐसा भी नहीं है कि गेयर तुम्हारे भीतर पहंचा। ये मील के पत्थर हैं।
| नहीं है। है, लेकिन तुम्हें लगाना नहीं आता। तुम्हें पता नहीं कि और आज नहीं कल इस परिधि से हटना पड़ता है, क्योंकि पीछे भी लौट सकता है यह यंत्र। यह अपने भीतर भी डुबकी शरीर क्षणभंगुर है, मरेगा। तो जो परिधि पर खड़े हैं, कंप रहे हैं। मार सकता है। तुमने दूसरों में ही डुबकी लगाई तो उसी का क्योंकि मौत उन्हें कंपा रही है। यह बड़ा विस्मयकारी मामला अभ्यास हो गया है। है। तुम कभी नहीं मरते और कंप रहे हो, घबड़ा रहे हो। ऐसा ही ध्यान का इतना ही अर्थ है : रिवर्स गेयर—पीछे लौटने की समझो कि रस्सी देख ली अंधेरे में और भाग खड़े हुए सांप प्रक्रिया, अपने में जाने की प्रक्रिया। समझकर; पसीना-पसीना हुए जा रहे हैं। छाती धड़क रही है। यह शरीर तो जाएगा। इसके पहले कि यह चला जाए, इसकी रुकते ही नहीं रोके-सांप!
| लहर पर सवार होकर जरा भीतर की यात्रा कर लो। यह अश्व ऐसे ही समझो कि किसी सिनेमाघर में बैठे थे और कोई चिल्ला | तो मरेगा। अश्वारोही बन जाओ। जरा भीतर की यात्रा कर लो। दिया पागल कि 'आग, आग लग गई।' और भागे। शब्द ही | क्या करोगे शब्दवेदी धुन चुकेगी जब? था, कहीं कोई आग न थी। लेकिन भीतर एक भाव समा गया तब कहां, किस छोर पर, किसके लिए कि आग। फिर तो तुम्हें कोई रोके भी तो न रुकोगे।
कौन से संदर्भ जाएंगे दिए? जिसे अभी हम अपना जीवन समझ रहे हैं वह परिधि का बैजयंती आकाश टुकड़ों में बंटेगा जब जीवन है—बड़ा अधूरा, बड़ा खंडित। उसी खंड को हम पूरा क्या करोगे तब? मान बैठे हैं। यही अड़चन है। इसलिए घबड़ाहट स्वाभाविक एक गहरी खनक अविनीता हवाएं है। वहां मौत भी आएगी, दुख भी आएगा, बुढ़ापा आएगा,
शीर्षकों पर शीर्षकों की आहटें आएं न आएं शरीर जीर्ण-जर्जर होगा, कंपोगे।
एक कोई रक्त-निचुड़ा शब्द महावीर यह नहीं कह रहे हैं कि इस शरीर को काट डालो, । जिसका अर्थ हम शायद न समझें मिटा डालो। महावीर कह रहे हैं, इस शरीर का उपयोग कर लो।। और शायद समझ पाएं जैसा यह शरीर संसार में जाने के लिए वाहन बनता है, ऐसा ही घटाएं घिरकर न बरसें तो न बरसे
र अंतर्यात्रा के लिए भी वाहन बन जाता है। चोरी करने कि ऋतएं उसी कोमल कोण से परसें न परसें जाओ कि मंदिर में ध्यान करने जाओ, शरीर दोनों जगह ले जाता कि हम तरसें, कि हम तरसें, कि हम तरसें है। किसी की हत्या करने जाओ या किसी को प्रेम से आलिंगन किंतु सारी तरसने भी चुक जाएंगी जब करो, शरीर दोनों में वाहन बन जाता है। शरीर तो बड़ा अदभुत क्या करोगे तब? यंत्र है। तुमने एक ही तरकीब सीखी-इससे बाहर जाना। और केसर झर चुकेगी जब इसमें शरीर का कोई कसूर नहीं।
क्या करोगे तब? शायद तुम्हें पता हो, हेनरी फोर्ड ने जब पहली कार बनाई तो यह होनेवाला है। केसर तो झरेगी। यह वीणा तो रुकेगी। ये उसमें रिवर्स गेयर नहीं था। खयाल ही नहीं था कि पीछे भी ले तार तो टेंगे। ये टूटने को बने हैं। यह वीणा बिखरने को सजी जाना पड़ेगा। जो पहला माडल था, बस वह आगे की तरफ है। परिधि पर तो सब बनेगा और मिटेगा। केंद्र पर शाश्वत है। जाता था। मोड़ना हो तो बड़ा चक्कर लगाना पड़े। आधामील तुम परिधि में रहते-रहते केंद्र को बिलकुल ही भूल मत जाना। का चक्कर लगाकर आओ तब कहीं मोड़कर आ पाओ। तब परिधि में रहो जरूर, केंद्र की याद करते रहो। परिधि में रहो उसे समझ में आया कि यह बात तो ठीक नहीं। गाड़ी पीछे भी जरूर, कभी-कभी केंद्र में सरकते रहो। परिधि में रहो जरूर, लौटनी चाहिए। तो फिर रिवर्स गेयर आया।
केंद्र की सुरति न भूले, स्मृति न भूले। केंद्र से संबंध न टूटे।
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