Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 648
________________ जिन सूत्र भाग : 2 ऐसा देखो कि वासना संसार है ताकि वासना छूटे। वासना छूटे | पीछे बांध लिया। बैल को गाड़ी के आगे ही रखना तो गाड़ी तो संसार छूट जाता है। चलेगी। अगर बैल को गाड़ी के पीछे बांध लिया तो गाड़ी तो महावीर कहते हैं: चलेगी नहीं, बैल भी न चल पाएंगे। हालांकि कुछ ज्यादा फर्क ण वि इंदिय उवसग्गा, ण वि मोहो विम्हयो ण णिद्दा य। नहीं कर रहे हो। कुछ लोग बैल को गाड़ी के आगे रखते हैं, ण य तिण्हा व छहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।। तुमने गाड़ी को बैल के आगे रखा। ऐसा कुछ बड़ा फर्क नहीं है, 'जहां न इंद्रियां हैं न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है न | जरा-सा फर्क है। तृष्णा, न भूल, वहीं निर्वाण है।' ये सारी बातें निर्वाण के परिणाम हैं, निर्वाण के साधन नहीं हैं। अब एक बात काफी सूक्ष्म है। याद न रहे तो भूल जा सकती इन्हें निर्वाण के पीछे आने देना। इन्हें निर्वाण के आगे मत रख | है। महावीर यह नहीं कह रहे हैं कि तमने अगर भूख मिटा दी, लेना, जैसा जैन मनियों ने किया है। सोचते हैं उपवास करें तृष्णा मिटा दी, निद्रा मिटा दी तो निर्वाण हो जाएगा। इसको ऐसा क्योंकि महावीर कहते हैं, वहां भूख नहीं लगती। अगर वहां मत पकड़ लेना जैसा कि जैन मुनियों ने पकड़ा है और सदियों से भूख नहीं लगती तो वहां उपवास कैसे करोगे, थोड़ा सोचो! भटकते हैं। उपवास तो वहीं हो सकता है, जहां भूख लगती है। महावीर महावीर यह नहीं कह रहे हैं कि निद्रा छोड़ दोगे तो निर्वाण | कहते हैं वहां निद्रा नहीं आती; तो जगे रहो, खड़े रहो। उपलब्ध हो जाएगा। महावीर यह कह रहे हैं, निर्वाण उपलब्ध हो एक गांव में मैं गया तो एक संन्यासी की बड़ी धूम थी। मैंने जाए तो वहां निद्रा नहीं है। इन दोनों बातों में बड़ा फर्क है। ये पूछा, मामला क्या है? दस साल से खड़े हैं। खड़े श्री बाबा एक-सी लगती हैं बातें, इसलिए भूल होनी बड़ी स्वाभाविक है। उनका नाम। वे सोते ही नहीं। मैं उनको देखने गया, वह आदमी जिनसे भूल हो गई वे क्षमायोग्य हैं क्योंकि भूल बड़ी बारीक है। करीब-करीब मुर्दा हालत में है। अब दस साल से जो न सोया हो जरा-सा धागे भर का फासला है। | और खड़ा रहा हो-क्योंकि डरते हैं कि बैठे, लेटे, कि नींद महावीर निर्वाण की परिभाषा कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि आयी। खड़े हैं। तो पैर हाथीपांव हो गए। सारा खून शरीर का निर्वाण ऐसी चित्त की दशा है, ऐसे चैतन्य की दशा है, जहां न | सिकुड़कर पैरों में समा गया। पैर सूज गए हैं। लकड़ियों का दुख है न सुख, न नींद है, न भूख है न प्यास। क्योंकि वहां सहारा लिए हुए, रस्सियां बांधे हुए छत से, उनके सहारे खड़े हैं। इंद्रियां नहीं, वहां देह नहीं तो देह से बंधे हुए धर्म नहीं। अब यह आदमी-फांसी लगाए हुए है। लेकिन इसका तुम उल्टा अर्थ ले सकते हो। तुम यह अर्थ ले और यह फांसी और कठिन। दस क्षण में लग जाए, खतम सकते हो कि महावीर निर्वाण की साधना बता रहे हैं। यह सिर्फ हुआ। यह दस साल से फांसी पर लटका हुआ है। बैठ नहीं निर्वाण की परिभाषा है। वे यह नहीं कह रहे हैं कि तुम नींद का | सकता, लेट नहीं सकता। और सम्मान बहुत मिल रहा है त्याग कर दो, भोजन का त्याग कर दो तो तुम निर्वाण को उपलब्ध | इसलिए अहंकार खूब बढ़ रहा है। हो जाओगे। अगर भोजन का त्याग किया तो सूखोगे, निर्वाण | और इसकी आंखें देखो, तो पशुओं की आंखों में भी को उपलब्ध नहीं हो जाओगे। अगर निद्रा का त्याग किया तो थोड़ी-बहुत बुद्धि दिखाई पड़े, वह भी इसकी आंखों में दिखाई दिनभर उनींदे बने रहने लगोगे; निर्वाण को उपलब्ध नहीं हो नहीं पड़ेगी। दिखाई पड़ भी कैसे सकती है? क्योंकि बुद्धि के जाओगे। उदास हो जाओगे, महासुख का अनुभव नहीं होगा। लिए विश्राम चाहिए। यह आदमी विश्राम नहीं ले रहा है। इसके अगर तुमने सुख और दुख से अपने को सब भांति तटस्थ करने भीतर की तुम अवस्था ऐसे ही समझो कि जैसे शाकभाजी हो चेष्टा की तो तम कठोर हो जाओगे। तम्हारी संवेदनक्षमता गया। अब यह आदमी कोई आदमी नहीं है, गोभी का फल है। खो जाएगी, लेकिन निर्वाण को उपलब्ध न हो जाओगे। | इसके भीतर अब कोई मस्तिष्क नहीं है। मस्तिष्क के सूक्ष्म तंतु निर्वाण को उपलब्ध होने से ये सब बातें घटती हैं। इन बातों विश्राम के न मिलने से टूट जाते हैं। को घटाने में मत लग जाना। क्योंकि तब तुमने बैल को गाड़ी के । इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि साधुओं में प्रतिभा नहीं 638 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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