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नी पर तिरता है आईना
उठती हो। आंख झिलमिलाने लगी
वासना का अर्थ ही है कि जो हम हैं, उसमें रस नहीं आ रहा, पात-पात डोलती है प्रार्थना
| कुछ और होना चाहिए। चाह का अर्थ ही है बेचैनी। चाह उठती सांझ गुनगुनाने लगी
ही बेचैनी से। राहत नहीं है। कोई कांटा चुभ रहा है। कोई रोक लूं मैं बादलों की घंटियां
अतृप्ति सब तरफ से घेरे है। सब मिल जाता है। फिर भी बजने से पुरवा के पांव में
अतृप्ति वैसी की वैसी बनी रहती है-अछूती, अस्पर्शित। झलकने लगीं पीली बत्तियां
धर्म का जन्म मनुष्य के भीतर इस महत घटना से होता जले हुए दीपों के गांव में
है-बेचैनी की इस घटना से होता है। जैसे परदेश में हैं, जहां न अंधकार झूलता है पालना
कोई अपनी भाषा समझता, न कोई अपना है। जहां सब संबंध याद घर बुलाने लगी
सांयोगिक हैं। जहां सब संबंध मन के मनाये हुए हैं; वास्तविक याद घर बुलाने लगी! इन थोड़े-से शब्दों में सारे धर्म का सार नहीं हैं। और जहां पानी का धोखा तो बहुत मिलता है, पानी नहीं है—याद घर बुलाने लगी। जहां हम हैं, वहां हम तृप्त नहीं। जो | मिलता-मृग-मरीचिका है। दूर से दिखाई पड़ता जल का हम हैं उससे हम तृप्त नहीं। एक बात निश्चित है कि हम अपने स्रोत, पास आते रेत ही रेत रह जाती है। घर नहीं, कहीं परदेश में हैं। कहीं अजनबी की भांति भटक गए| इस भटकाव को हम कहते हैं संसार। इस भटकाव में घर की हैं। कहां जाना है यह भला पता न हो, लेकिन इतना सभी को | याद आने लगी तो धर्म की शुरुआत हुई। पता है कि जहां हम हैं, वहां नहीं होना चाहिए।
पानी पर तिरता है आईना एक बेचैनी है। कुछ भी करो, कितना ही धन कमाओ, कितनी आंख झिलमिलाने लगी ही पद-प्रतिष्ठा जुटाओ, कुछ कमी है, जो मिटती नहीं। कोई अगर बाहर देख-देखकर ऊब पैदा हो गई हो, देख-देखकर | घाव है, जो भरता नहीं। कोई पुकार है जो भीतर कहे ही चली | देख लिया हो, कुछ देखने जैसा नहीं है, आंख झपकने लगी हो, जाती है। यह भी नहीं, यह भी नहीं; कहीं और चलो। खोजो भीतर देखने का खयाल उठने लगा हो, आंख बंद करके देखने घर। द्वार-द्वार दरवाजे-दरवाजे दस्तक दिए। न मालूम कितने- का भाव जगने लगा हो तो हो गई शुरुआत। कितने जन्मों में, कितने-कितने ढंग से अपने घर को खोजा है। हाथ भर-भरके देख लिए, जब पाया तब राख से भरे पाया।
मगर सारी खोज एक ही बात की है कि कोई ऐसा स्थान हो, कभी हीरों से भरा लेकिन हीरे राख हो गए। सोने से भरा, सोना जहां तृप्ति हो। कोई ऐसी भावदशा हो, जिसमें कोई वासना न मिट्टी हो गया। संबंधों से भरा, तथाकथित प्रेम से भरा और सब
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