Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 625
________________ एक दीप से कोटि दीप हों में तो लोग चुराने आते हैं, देने कोई आता है? किसी को पता न | जगह न रह गई। महावीर तो बड़े कुशल रहे होंगे, बिना परमात्मा चले-ऐसी देनी देन। के अहंकार को छोड़ दिया। ज्यों-ज्यों कर ऊंचो करौ त्यों-त्यों नीचे नैन लेकिन जैनों से इतनी आशा नहीं की जा सकती। परमात्मा हट देनेवाला तो अकड़कर खड़ा हो जाता है। सारे संसार को गया तो अकड़ आ गई। हम ही सब कुछ हैं। कोई ईश्वर नहीं, दिखलाना चाहता है। और तुम, जैसे-जैसे तुम्हारा हाथ ऊंचा कहीं जाकर झुकना नहीं। तो तुम मुसलमान फकीर में जैसी होता जाता है, देने की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे आंख | विनम्रता देखोगे, सूफी फकीर में जैसी विनम्रता देखोगे, वैसी तुम नीची होती जाती है। जैन मुनि में नहीं देख सकते। भक्त में तुम जैसी विनम्रता देखोगे, रहीम ने इसके उत्तर में एक दोहा लिखा: वैसी तुम जैन मुनि में नहीं देख सकते। बड़ी अकड़ है। देनहार कोऊ और है भेजत सो दिन-रैन जैन मुनि तो श्रावक को हाथ जोड़कर नमस्कार भी नहीं कर लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन सकता। नमस्कार ही भूल गया। अकड़ ऐसी हो गई कि नमन देनेवाला कोई और है, जो दिन-रात भेज रहा है और लोग शक की कला ही जाती रही। त्याग-तपश्चर्या से अहंकार भरा; कटा हम पर करते हैं; इसलिए आंखें नीची हैं। इसलिए देने में संकोच नहीं। इसलिए मैं कहता हूं: अमृत को जहर बनाने की सुविधा है। क्योंकि लोग सोचेंगे, हमने दिया। है, जहर को अमृत बनाने की सुविधा है। यह परमात्मा की धारणा का लाभ है : त्याग-तपश्चर्या से अहंकार कटना चाहिए। देनहार कोऊ और है भेजत सो दिन-रैन लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन परमात्मा की धारणा का यह लाभ है कि तुम अपने को किसी त्यागी और तपस्वी को तो यह सोचना चाहिए कि किए हुए के चरणों में पूरा रख सकते हो। सब तरह से रख सकते हो। पापों का प्रक्षालन कर रहा हूं त्याग-तपश्चर्या करके। जो किए थे देनहार कोई और है भेजत सो दिन-रैन पाप, उन्हें काट रहा हूं। इसमें गौरव कहां? इसमें गरिमा क्या? कोई भेजे चला जा रहा है। हमारा किया कुछ भी नहीं है। कोई पश्चात्ताप है। आंखें नीची होनी चाहिए। लेकिन त्यागी कर रहा है। अकड़कर खड़ा हो जाता है। वह...जानते हो कितने उपवास लोग भरम हम पे करें याते नीचे नैन किए? कितना धन छोड़ा? कितना बड़ा घर छोड़ा? कितना इसलिए आंखें संकोच से नीची कर लेते हैं कि लोग बड़ी गलत | साम्राज्य छोड़ा? आंखें तो नहीं झुकतीं, आंखें अकड़कर खड़ी बात सोच रहे हैं कि हम दे रहे हैं। देनेवाला कोई और है। हो जाती हैं। तो अहंकार को खड़े होने की जगह नहीं रह जाती। परमात्मा और फिर जैन तत्व में आदमी के ऊपर कोई भी नहीं है। की धारणा का लाभ है कि अहंकार न बचे। | इसलिए बड़ी अड़चन हो जाती है। कहां रखो इस बोझिल सिर अगर कोई ठीक से उपयोग करे तो सभी धारणाएं लाभपूर्ण हैं। को? यह पत्थर की तरह तुम्हारी आत्मा पर बैठ जाता है। और अगर कोई ठीक से उपयोग न करे तो सभी धारणाएं इसलिए जैन दृष्टि से धीरे-धीरे प्रेम तिरोहित हो गया। खतरनाक हैं। सत्यों से फांसी लग सकती है। सत्य तुम्हारे प्राण परमात्मा ही जब न हुआ तो प्रेम रखो कहा? प्रेम करो को संकट में डाल सकते हैं। सत्य जहर हो सकता है। सब किसको? भक्ति खो गई। पीनेवाले पर निर्भर है। समझदार तो ऐसे भी हुए हैं कि जहर को मगर यह होना ही था। इसमें किसी का दोष भी नहीं है। ये भी औषधि बनाकर पी गए। और नासमझ ऐसे हुए हैं कि अमृत जीवन के सहज नियम हैं। को भी जहर बना लिया, विषाक्त हए और मर गए। मैं तुमसे जो कह रहा रहूं, तुममें से जो समझ पाएंगे उनके ही महावीर ने परमात्मा का तत्व हटाया, उसके साथ बड़े जंजाल | काम का है। मैं तुमसे जो कह रहा हूं, कहते से ही मेरे हाथ के थे, वे भी हट गए। पंडित हटा, पुरोहित हटा, पूजा-प्रार्थना हटी, बाहर हो गया। फिर तुम क्या उसका अर्थ करोगे, तुम पर निर्भर धोखाधड़ी, बीच के दलाल हटे लेकिन अहंकार को रखने की है। फिर मेरी उस पर कोई मालकियत भी न रही। फिर मैं यह भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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