Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 635
________________ एक दीप से कोटि दीप हों भक्त को साध्य पहले मिलता है, फिर वह साधन खोजता है। तो है ही नहीं। क्योंकि भक्त प्रश्न पूछ नहीं सकता। अहोभाव वह परमात्मा को पहले खोज लेता है फिर उसका रास्ता खोजता है। वह अपने हृदय की बात कह रही है कि ऐसा उसे हुआ है। है। तुम कहोगे यह बात अजीब है। क्या करें? अब उसे लगता है कि गुरु ही पिता, गुरु ही माता, गुरु ही | एक अचंभा मैंने देखा. नदिया लागी आग। ऐसा होता भक्त संगी, गुरु ही साथी, गुरु ही ज्ञान, गुरु ही परमात्मा। को। पहले भगवान मिल जाता है, फिर वह उसी से पूछ लेता है | प्रेम जहां भी पड़ता है वहीं परमात्मा की छवि देख लेता है। अब रास्ता कहां है? अब तुम्हीं बता दो। जब मिल ही गए तो तुझ से अब मिलके ताज्जुब है कि अर्सा इतना तुम्हारा पता-ठिकाना क्या? आज तक तेरी जुदाई में यह क्यों कर गजरा ध्यानी पहले रास्ता खोजता है। ध्यानी ज्यादा और जब परमात्मा की उसे झलक मिलती है तो उसे भरोसा ही | ज्यादा व्यवस्था से चलता है। उसके जीवन में एक शृंखला है। नहीं आता कि आज तक इतना अर्सा तुझसे बिना मिले गुजरा | भक्त बड़ा बेबूझ है। प्रेम सदा से बेबूझ है। | कैसे? यह हो ही कैसे सका? यह मैं हो कैसे सका इतने दिन । यहदियों में एक धारणा है-बड़ी प्रीतिकर धारणा। यहदी तक? यह मेरे होने की संभावना ही कैसे हो सकी? भक्ति का ही एक मार्ग है। यहूदी कहते हैं, इसके पहले कि भक्त उसे भरोसा ही नहीं आता कि मैं था भी। भक्त को तो उसी दिन भगवान को खोजे, भगवान भक्त को खोज लेता है। यहूदी धर्म भरोसा आता है अपने होने पर, जब भगवान का मिलन होता है। की बड़ी गहरी देन में से एक देन यह है। वे कहते हैं, तुम खोजना | उसी दिन भक्त होता है। उसके पहले तो सब सपना था। एक ही तब शुरू करते हो जब वह तुम्हें खोज लेता है, नहीं तो तुम झूठी दास्तान थी। न किसी ने कही, न किसी ने सुनी, एक झूठी शुरू ही नहीं करते। जब वह किसी तरह तुम्हारे भीतर आ ही दास्तान थी। जाता है, तभी तुम्हारे भीतर उसे पाने की आकांक्षा जगती है; नहीं | तुझसे अब मिलके ताज्जब है कि अर्सा इतना तो आकांक्षा ही नहीं जगती। आज तक तेरी जुदाई में यह क्यों कर गुजरा यहूदी कहते हैं, तुम ही नहीं खोज रहे भगवान को, भगवान भी | बहुत दिनों में मोहब्बत को हो सका मालूम तुम्हें खोज रहा है। तुम ही नहीं तड़फ रहे उसके लिए, वह भी जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई तडफ रहा है। और मजा तो तभी है जब आग दोनों तरफ से प्रेमी को पता चलता है धीरे-धीरे प्रेम में पगते-पगते कि लगे। अगर भक्त ही खोजता रहे भगवान को और भगवान को जो तेरी हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई जरा भी न पड़ी हो—मिल गए तो ठीक, न मिले तो ठीक; और जो तेरे बिना गुजरी वह रात रात हुई। वह हुई, न हुई बराबर भगवान उपेक्षा से भरा हो तो खोज का सारा मजा ही चला गया, हुई। तुझे मिलकर जीवन शुरू हुआ। रस ही चला गया। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव।' ध्यानी कहता है सत्य तुम्हें नहीं खोज सकता, तुम सत्य को तुझे मिलकर जीवन शुरू हुआ। खोज सकते हो। एकतरफा है उसकी खोज। वह कहता है हम | जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई। खोजेंगे। सत्य कैसे खोजेगा? सत्य को तो उघाड़ना पड़ेगा। इसलिए अगर किसी के हाथ में हाथ जाने से तुम्हारे जीवन में भक्त कहता है यह कोई हमी खोज रहे ऐसा नहीं, वह भी रसधार बहे तो लगेगा तुम्हीं पिता, तुम्ही माता; क्योंकि नया जन्म उघड़ने को आतुर है। यह हमीं उसका चूंघट उठाने नहीं चले हैं, | हुआ। एक जन्म है, जो माता-पिता से होता है, वह शरीर का वह भी घूघट डालकर बैठा है कि आओ, उठाओ; कि बड़ी देर जन्म है। फिर एक जन्म है, जो सदगुरु से होता है; वह आत्मिक लगाई, कहां रहे? आओ! परमात्मा भी खोज रहा है। यह जन्म है, वह वास्तविक जन्म है। वह तुम्हारी चेतना का खोज दोनों तरफ से है। यह आग दोनों तरफ से है। यह यात्रा | आविर्भाव है। दोनों तरफ से चल रही है। जो तेरे हिज्र में गुजरी वह रात रात हुई अब यह सरोज का जो प्रश्न है, एक भक्त का प्रश्न है। प्रश्न इसलिए फिर सदगुरु सभी कुछ मालूम होने लगता है। यह 1625 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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