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जिन सूत्र भागः 2
भक्त का अपना ही हृदय सदगुरु में झलकता। जो उसे भीतर फिर इस उड़ान को कोई रोक सकता नहीं। यह होकर रहेगी। दिखाई पड़ता है, वही उसे सदगुरु में दिखाई पड़ता है। सदगुरु यह हो ही गई है। तो दर्पण है, तुम अपना ही चेहरा देख लेते हो।
पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल और भक्त को फिर बड़ा भरोसा आ जाता है। गुरु का साथ क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? मिला कि भरोसा आ गया। अगर गुरु है तो परमात्मा है। अगर भक्त को तो ऐसे ही लगने लगता है कि भगवान पुकार रहा है। कोई ऐसा व्यक्ति है, जो तुम्हें अपने से पार दिखाई पड़ता है, यहां जो भक्त की तरह मेरे पास आए हैं, उन्हें मेरी हर आवाज में जिसे देखने में तम्हारी आंखें जमीन से आकाश की तरफ उठ लगेगा आपने मझे पकारा तो नहीं? जाती हैं, तो बस पर्याप्त है।
पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल कहते हैं मंसूर को सूली लगी तो वह खिलखिलाकर हंसने क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? लगा। वह खिलखिलाकर हंसा तो लोगों ने पूछा, तुम हंसते क्यों उसे अपनी धड़कन की आवाज भी ऐसे लगती है कि परमात्म हो? वह कहने लगा, मैं इसलिए हंस रहा हूं कि चलो, मुझे के पैरों की आवाज है। सूली पर लटका देखने के लिए कम से कम तुम्हारी आंखें तो | क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? ऊपर उठीं। तुम जमीन पर सरकते लोग, घसिटते लोग-तुम | हर जुल्म गवारा है मगर यह भी खबर है आकाश की तरफ आंख ही नहीं उठाते। चलो, मेरी फांसी के दिल आपकी है चीज, हमारा तो नहीं बहाने-वह लटका था एक बड़े ऊंचे खंभे पर-तुम्हारी आंखें हर ओर बहारों ने लगा रक्खे हैं मेले तो आकाश की तरफ उठीं, इसलिए हंसा।
यह आपकी नजरों का इशारा तो नहीं अर्श तक देखिये पहुंचे कि न पहुंचे कोई
सब तरफ उसे उसी की नजरों का इशारा दिखाई पड़ता है। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में
फूल खिलते हैं तो लगता परमात्मा हंसा। चांद निकलता तो आकाश तक पहुंचना होगा कि नहीं होगा, कहना मुश्किल है। | लगता परमात्मा निकला। चांदनी फैल जाती है तो लगता लेकिन भक्त कहता है:
परमात्मा फैला। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में
पहलू में जो रह-रहकर धड़कता है मेरा दिल मैं रो ही नहीं रहा हूं, मेरे भीतर आह ही नहीं उठ रही है, मेरी | क्या आपने फिर मुझको पुकारा तो नहीं? उड़ान में प्रार्थना का भी बल है।
हर ओर बहारों ने लगा रक्खे हैं मेले अर्श तक देखिये पहंचे कि न पहुंचे कोई
यह आपकी नजरों का इशारा तो नहीं भक्त यह भी नहीं कहता कि पहुंच ही जाऊंगा। नहीं, प्रेम इस | भक्त को बड़ी गहरी आंख उपलब्ध हो जाती है। बिना कुछ तरह के दावे नहीं करता। झिझकता है भक्त। भक्त कहता है: किए, बिना मांगे, बिना प्रयास के–प्रसाद से। चाहिए दिल, अर्श तक देखिये पहुंचे कि न पहुंचे कोई
जो रो सके। चाहिए दिल, जो हंस सके। चाहिए दिल. जो संदेह पहुंचना हो कि न पहुंचना हो। लेकिन एक अर्थ में भक्त | न करे, श्रद्धा करे। झिझकता है कि पहुंचना होगा कि नहीं, और एक अर्थ में आश्वस्त होता है कि पहुंचना तो हो ही गया।
पांचवां प्रश्न : पूछा है आनंद सागर ने। आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में
सीमार माझे असीम मेरी उड़ान में सिर्फ आह ही नहीं है, प्यास ही नहीं है, तुझे
तुमी बाजाओ आपन सूर खोजने की अभीप्सा ही नहीं है, तुझे पा लेने की प्रार्थना भी है।
आमार मध्ये तोमार प्रकाश तुझे पा लिया इसका धन्यवाद भी।
ताई एतो मधुर आह के साथ दुआ भी मेरी परवाज में
कत वर्णे कत गंधे
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