Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 623
________________ ORI पहला प्रश्न : जिन-धारा अनेकांत-भाव और | सबसे छुड़ा लेना आदमी को जरूरी था। वाद से भरी है: फिर भी प्रेम शन्य क्यों हो तो महावीर, आदमी बायें तरफ बहत झक गया था इसलिए गई? कृपा करके समझाएं। दायें तरफ झुके। जो थोड़े-से लोग उनकी बात को समझ सके, वे संयम को, संतुलन को उपलब्ध हो गए। लेकिन फिर पीढ़ी दर प्रेमशून्य होना ही थी; होना अनिवार्य था। हो गई, ऐसा नहीं। पीढ़ी लोग समझ से तो नहीं मानते, परंपरा से मानते हैं। फिर कोई भी जीवन-व्यवस्था परिपूर्ण नहीं है। प्रत्येक जीवन- | | लोग दायीं तरफ बहुत झुक गए। फिर वे इतनी दायीं तरफ झुक व्यवस्था का कुछ लाभ है, कुछ हानि है। गए कि ध्यान के नाम पर, तप के नाम पर उन्होंने प्रेम की हत्या जो लोग प्रेम को, प्रार्थना को, पूजा को आधार मानकर चलेंगे, | कर दी। जीवन को रसशून्य कर डाला। खतरा है कि उनका प्रेम, उनकी पूजा, उनकी प्रार्थना उनके संसार तो फिर भक्ति का पुनराविर्भाव हुआ। वल्लभ, रामानुज, को ही छिपाने का रास्ता बन जाए। प्रेम के पीछे राग के छिप जाने चैतन्य, निम्बार्क—एक अनूठा युग आया भक्ति का। फिर का डर है। प्रेम तो नाम ही रहे और भीतर राग खेल करने लगे। | भक्ति का पुनरउदभव हुआ। प्रेम तो नाम ही रहे, वीतरागता से बचने का उपाय हो जाए। यह अति हो गई थी-ध्यान की, तप की, तपश्चर्या की। तो प्रेम के मार्ग का खतरा है; वैसे ही ध्यान के मार्ग का खतरा इससे आदमी सूख गया। फूल खिलने बंद हो गए। फिर प्रेम को है। ध्यान के मार्ग का खतरा है कि राग को छुड़ाने में, मिटाने में जगाना पड़ा। तो कबीर, नानक, मीरा, दादू, रैदास-अदभुत प्रेम छूट जाए। राग को हटाने में प्रेम हट जाए। | भक्त पैदा हुए। इन्होंने फिर बायें तरफ मोड़ा। मनुष्य बहुत चालबाज है। इसलिए तुम उसे जो भी दो, वह जो थोड़े-से लोग समझे, जिन्होंने जागरूक रूप से इस बात अपने ढंग से ढाल लेगा। अगर तुम ध्यान की बात कहो तो वह को पहचाना वे संयम को उपलब्ध हो गए। उनके जीवन में प्रेम प्रेम को मार डालेगा। अगर तुम प्रेम की बात कहो, वह राग को भी रहा, राग छूटा। प्रेम बचा, राग छूटा। प्रीति बची, प्रीति के बचा लेगा। थोथे बंधन छूटे। प्रीति संसार से मुक्त हुई और परमात्मा की इसलिए प्रत्येक सदी में, प्रत्येक समय में, युग में जो उचित था, तरफ बही, प्रार्थना बनी। लेकिन जो नहीं समझे, जिन्होंने फिर उस समय के लिए जो उचित था; जिससे संतुलन निर्मित परंपरा को पकड़ा, उन्होंने फिर बात वहीं की वहीं पहुंचा दी। होता...जब महावीर जन्मे, तब प्रेम के नाम पर बहुत उपद्रव हो ऐसा सदा होता रहेगा। कोई मार्ग परिपूर्ण नहीं हो सकता। चुका था। परमात्मा के नाम पर बहुत तमाशा हो चुका था। | इसलिए कोई मार्ग शाश्वत नहीं हो सकता। बदलाहट करनी ही मंदिर, पूजा, पंडित, यज्ञ-हवन, बहुत खेल हो गए थे। उन | होगी। ऐसा ही समझो कि तुम मरघट किसी की अर्थी ले जाते हो 1613/ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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