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को लीपापोती करना है।
तुम जैसी निरुद्देश्य यहां आयी थीं, बिना किसी भाव के; कुछ पता न था क्या घटेगा, ऐसे ही वापस जाओ बिना कुछ पता लिए कि क्या घटेगा । बहुत कुछ घटने को है । मैं तुमसे पहले तुम्हारे घर पहुंच गया हूं।
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. जो ध्यान यहां मिला वह कायम रहेगा और पुकारने पर आप सदा आते रहेंगे ?"
तुम फिक्र ही न करो। कभी-कभी बिना पुकारने पर भी आऊंगा। द्वार पर दस्तक दूं तो घबड़ाना मत। कभी अचानक सामने खड़ा हो जाऊं तो घबड़ाना मत।
प्रेम न तो समय जानता, न स्थान जानता । क्षेत्र और काल दोनों के पार है।
दिन-रात खुली रहती हैं राहें दिल की
तकती हैं किसे रोज निगाहें दिल की
ये किसका तसव्वुर है, ये किसका है खयाल
रोके जो रुकती नहीं आहें दिल की
दिन-रात खुली रहती हैं राहें दिल की — वे प्रेम के रास्ते सदा ही खुले हुए हैं। अपेक्षा से बंद हो जाते हैं। द्वार बंद हो जाता, भिड़ जाता। अपेक्षा भर मत ले जाओ। प्रफुल्लता से, मग्न भाव से जाओ।
दिन-रात खुली रहती है राहें दिल की
तकती हैं किसे रोज निगाहें दिल की
दिल की निगाह के लिए कोई भौतिक उपस्थिति जरूरी नहीं है। दिल की आंख दूर से देख लेती है। और दिल की आंख न हो तो पास से भी नहीं देख पाती। दिल की आंख न हो तो आदमी अंधे की तरह आता, अंधे की तरह चला जाता।
ये किसका तसव्वुर है, ये किसका है खयाल
आता हूं तुम्हारे साथ। लेकिन तुम्हारी अपेक्षा रही तो न आ पाऊंगा। अपेक्षा छोड़ दो। अपेक्षा का त्याग कर दो। आता हूं तुम्हारे साथ एक तसव्वुर की तरह, एक भाव की तरह, एक भक्ति की तरह ।
ये किसका तसव्वुर है, ये किसका है खयाल रोके जो रुकती नहीं आहें दिल की
रोना ! अपेक्षा मत ले जाओ। हंसना ! अपेक्षा मत ले जाओ।
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रसमयता और एकाग्रता
गाना, नाचना, चुप होकर बैठ जाना। अपेक्षा मत ले जाओ। सहज होना; सहजस्फूर्त । और फिर संबंध नहीं टूटता है। तू सोज-ए-हकीकी है मैं परवाना हूं
तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं तू रूह है मैं जिस्म हूं
तू अस्ल है मैं क्ल
जिसमें है बयां तेरा, वह अफसाना हूं भक्त कहता है :
तू सोज-ए-हकीकी है, मैं परवाना हूं
तू है सत्य का दीया, मैं हूं पतिंगा, परवाना। तुझ पर जलने को आता हूं।
तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं
.- तू फूलों के रंग जैसी शराब है, मैं तेरा पात्र हूं।
तू वादा-ए-गुलरंग है मैं पैमाना हूं
तू रूह है मैं जिस्म - तू है आत्मा, तू अस्ल है मैं नक्ल
भक्त अपने को पोंछ देता है, मिटा देता है। अपेक्षा रखोगे तो तुम रहोगे। क्योंकि अपेक्षा तुम्हारी है; तुम्हारे अहंकार की, अस्मिता की है। अपेक्षाएं हटा दो। अपेक्षाओं के गिरते ही तुम्हारा अहंकार गिर जाएगा।
तू रूह, मैं जिस्म
मैं शरीर ।
तू अस्ल, मैं नक्ल
तब भक्त नक्ल हो जाता है, नकल हो जाता है। वह कहता है तेरी छाया, प्रतिबिंब दर्पण में बनी तेरी प्रतिछवि ।
तू अस्ल, मैं नक्ल
जिसमें है बयां तेरा, वह अफसाना हूं
ज्यादा से ज्यादा वह कहानी हूं, वह गीत हूं, जिसमें तेरा बयान है। अपने को पोंछो। अपने को हटाओ। उसी ढंग से परमात्मा के लिए जगह बनती है।
तो मैं कहता हूं, त्रिवेणी, घर जाओ - खाली, शून्यवत | कोई अपेक्षा नहीं, कोई अतीत अनुभव की स्मृति नहीं । जो हुआ है वह फिर-फिर हो, ऐसी वासना नहीं— शून्य ! उस शून्य में ही उसका दीया उतर आएगा; उसकी रोशनी भरेगी।
तू वादा-ए-गुलरंग मैं पैमाना हूं
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