Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 615
________________ और ज्ञानी त्रिगुप्ति के द्वारा... खवेइ ऊसासमित्तेणं... एक सांस में उतने कर्मों से मुक्त हो जाता है। क्या है यह त्रिगुप्ति ? महावीर कहते हैं, 'मन, वचन, काया, इनकी प्रवृत्तियों में atra होकर जीना त्रिगुप्ति ।' ये तीन गुप्त बातें, ये तीन सीक्रेट, ये तीन कुंजियां मन, वचन, काया । शरीर से जो भी करो, होशपूर्वक करना । मन से जो भी करो, होशपूर्वक करना। वचन से जो भी करो, होशपूर्वक करना। ये तीन कुंजियां—इनको जो साध लेता है, वह करोड़ों जन्मों में भी श्रम करके जो आदमी पाता है, उसे एक सांस में बिना श्रम के पा लेता है। अज्ञानी आदमी कुछ भी करे तो जो भी करेगा, उसके अज्ञान से ही निकलेगा न ! वह तप भी करे तो भी अज्ञान से निकलेगा । और अज्ञान से जो भी निकलेगा उससे नए कर्मबंधों का जन्म होता है। वह त्याग भी करे तो भी अज्ञान से ही करेगा। अज्ञानी व्यक्ति का अर्थ है - यह मत सोचना कि जो शास्त्र नहीं जानता—अज्ञानी से अर्थ है, जो जागा हुआ नहीं है; जो | ज्ञानपूर्वक नहीं जी रहा है। यहीं सुविधा हो जाती है चीजों के अर्थ बदल लेने में। जब महावीर कहते हैं अज्ञानी व्यक्ति तो समझ में आ गई बात, कि ज्ञानी होना जरूरी है। पढ़ो शास्त्र, कंठस्थकरो शास्त्र, बन जाओ तोते, तो ज्ञानी हो जाओगे । त्रिगुप्ति और मुक्ति तपश्चर्या करे तो भी कुछ खास लाभ नहीं होता । ज्ञानी व्यक्ति क्षणभर में, श्वासभर में होश से जीए तो बहुत लाभ होता है। इस बात को इंगित करने के लिए कि ज्ञानी से अर्थ शास्त्र को जाननेवाला नहीं है, तीसरा सूत्र बिलकुल साफ है। महावीर कहते हैं, मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है। इसलिए शास्त्र काम न आएंगे। क्योंकि वहां शब्दों की प्रवृत्ति ही नहीं है। वहां तो केवल चैतन्य का प्रवेश है, शब्दों का कोई प्रवेश नहीं है। वहां तुम तो जा सकते हो लेकिन तुम्हारी बुद्धि और तर्क नहीं जा सकता। तर्क और बुद्धि को पीछे ही छोड़ जाना पड़ता है। | जैसे कोई आदमी हिमालय पर चढ़ता है, तो जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ने लगती है, बोझ कम करने लगता है। पहले सोचा था सब सामान ले चलें । फिर जब पहाड़ चढ़ता है तो पता चलता है, इतना सामान तो ले जाना संभव न होगा। तो जो-जो काम का नहीं है, छोड़ दो। फिर और ऊंचे पहाड़ पर चढ़ता है तो पता चलता है, और भी कुछ छोड़ना पड़ेगा। जब तेनसिंग और हिलेरी गौरीशंकर पर पहुंचे तो बिलकुल सब सामान छोड़कर पहुंचे। कुछ भी न था । उतनी ऊंचाई पर कुछ भी ले जाना संभव नहीं होता। मोक्ष आखिरी ऊंचाई है चेतना की। वहां तो विचार भी ले जाने संभव नहीं होते, संकल्प-विकल्प भी संभव नहीं होते। इसलिए महावीर कहते हैं, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता। इसलिए शास्त्र जो भी कहते हैं, वे सब प्राथमिक सूचनाएं हैं, अंतिम का कोई दर्शन नहीं है। शास्त्र जो भी कहते हैं, वह सब क, ख, ग, है । वह पहली प्राथमिक पाठशाला है। शास्त्रों में जीवन का विश्वविद्यालय नहीं है, प्राथमिक शिक्षा है। शास्त्रों पर मत रुक जाना । शब्द कितने ही संगृहीत हो जाएं, उससे कोई ज्ञानी नहीं होता । वह तो यंत्रवत है। पढ़ो, बार-बार पढ़ो, गुनो, याद हो जाते हैं। याद से तुम्हारे जीवन में थोड़े ही कुछ रोशनी आएगी ! तुम्हारे | जीवन में कोई दीया प्रगट हो, तुम्हारे जीवन में कोई अनुभव जगे, तुम्हारा अनुभव हो तो ही ज्ञान। उधार ज्ञान ज्ञान नहीं । 'मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं, क्योंकि वहां शब्दों की प्रवृत्ति नहीं है। वहां न तर्क का प्रवेश है, न वहां मानस-व्यापार संभव है। मोक्षावस्था संकल्प-विकल्पातीत है; साथ ही समस्त मल - कलंक से रहित होने से वहां ओज भी नहीं अनुभव ही जीवन का विश्वविद्यालय है। वहां शब्दों की कोई प्रवृत्ति नहीं है । क्योंकि जो व्यक्ति भीतर जाएगा, उसे पहले तो शरीर छोड़ना पड़ता है। क्योंकि शरीर हमारा सबसे बाहरी रूप है । जैसे कोई आदमी इस भवन में अंदर आएगा तो दरवाजा, दरवाजे से लगी हुई चारदीवारी छोड़कर आना पड़ता है। रागातीत होने कारण सातवें नर्क तक की भूमि का ज्ञान होने पर भी वहां किसी प्रकार का खेद नहीं है।' तो पहले तो शरीर छूट जाता है। फिर जब और भीतर प्रवेश करते हैं तो मन की प्रक्रियाएं छूट जाती हैं। जब और भीतर प्रवेश पहले सूत्र में कहते हैं, अज्ञानी व्यक्ति करोड़ों जन्मों तक करते हैं तो हृदय के भाव छूट जाते हैं। जब बिलकुल भीतर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only 605 www.jainelibrary.org

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