________________
594
जिन सूत्र भाग: 2
धनुषबाण तो रखो महाराज ! इसे साथ लेकर चलो तो आदिवासी मालूम पड़ते हो। और फिर धनुषबाण का वक्त गया।
लेकिन उस दिन शौर्य की प्रतिष्ठा थी, बल की पूजा थी, वीर्य की पूजा थी तो हमने धनुषबाण दिया था। धनुषबाण के बिना राम जंचते ही न उस दिन । उस दिन कबूतर का किसी को खयाल ही नहीं था कि शांति के कपोत उड़ाओ ।
वक्त बदल जाता है, खुदा की शकल बदल जाती है। समय बदल जाता है, सोचने के ढंग बदल जाते हैं, मापदंड बदल जाते हैं, धारणाएं बदल जाती हैं । तो परमात्मा का रूप हम बदलते चले जाते हैं।
यहूदियों का परमात्मा बहुत क्रुद्ध है। जरा-सी बात पर नाराज जाए, जला दे, राख कर दे। ईसाइयों का परमात्मा अति दयालु है। वक्त बदल गया था। यहूदी जहां से गुजर रहे थे, वहां बड़े सख्त और कठोर परमात्मा की जरूरत थी। जहां से जीसस ने परमात्मा की कहानी को पकड़ा, वहां सख्त, कठोर |परमात्मा बेहूदा मालूम होने लगा था। थोड़ा अमानवीय मालूम होने लगा था। तो प्रेमपूर्ण परमात्मा । तो जीसस ने कहा, परमात्मा प्रेम है।
ऐसी शकल बदलती जाती है। लेकिन महावीर ने कहा कि ऐसा कब तक करते रहोगे ? यह तुम अपनी ही शकल को झांककर देखते रहते हो। यह बात ही बंद करो। इसमें समय मत
वाओ। परमात्मा को खोजने की फिकर ही छोड़ो। क्योंकि वह खोज में तुम अपनी ही शकल को निर्मित करते हो । बेहतर हो, तुम अपनी ही शकल के भीतर उतरो और अपने को खोज लो ।
यह महावीर का बुनियादी सूत्र है। परमात्मा की खोज आत्मखोज बननी चाहिए। क्योंकि तुम जो परमात्मा बनाओगे वह तुम्हारी ही प्रतिछवि होनेवाली है। इसलिए इसको बनाने में व्यर्थ जाल में मत पड़ो। यह तुम्हारा ही खिलौना होगा। तुम अपने भीतर जाओ। उसे खोजो, जिसने सारे परमात्मा बनाए उसे खोजो, जिसने सारे मंदिर निर्मित किए। उसे खोजो, जिसने सारी प्रार्थनाएं गढ़ी और रचीं। वह जो तुम्हारा चैतन्य का स्रोत है, वह जो तुम्हारा मूलाधार है, उस गंगोत्री की तरफ बहो ।
।
अपने को जान लो । अपने को बिना जाने तुम जो भी परमात्मा के संबंध में सोचोगे, तुम्हारा अज्ञान ही प्रतिफलित होगा । यह खोज कैसे हो? और जब तक यह खोज न हो जाए तब
Jain Education International 2010_03
तक अज्ञान के कारण बड़े उपद्रव होते हैं । परमात्मा के नाम पर लाभ तो कुछ हुआ दिखाई पड़ता नहीं, हानि बहुत हुई मालूम होती है। कितने दंगे-फसाद ! कितना खून-खराबी ! कितना रक्तपात ! सारा इतिहास धर्म के नाम पर बलात्कारों से भरा पड़ा है। मस्जिद-मंदिर ने लड़वाया ही ज्यादा आदमी काटे । सुंदर बहाने दिए गलत कामों के लिए। खूबसूरत नारे दिए वीभत्स प्रक्रियाओं को छिपा लेने के लिए।
अगर हिंदू को काटो तो पुण्य हो रहा है। अगर तुम मुसलमान हो तो हिंदुओं को काटने में पुण्य है। या हिंदुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बना लेने में पुण्य है। अगर तुम हिंदू हो तो बात बदल जाती है । अगर तुम ईसाई हो तो येन-केन-प्रकारेण कैसे भी लोगों को ईसाई बना डालो ! खरीद लो रोटी से, धन से, किसी भी उपाय से
अब तक आदमी ने धर्म के नाम पर जो किया है वह धार्मिक तो नहीं मालूम होता। लेकिन यह स्वाभाविक है। आदमी जो भी करेगा उसमें आदमी की ही छाया पड़ेगी। अगर हम हिंसक हैं तो हमारा धर्म हिंसक होगा। अगर हम मांसाहारी हैं तो हमारे धर्म में मांसाहार के लिए हम कोई उपाय खोज लेंगे। अगर लड़ने की, ईर्ष्या की, जलन की वृत्ति है, तो हम अपने धर्म के आधार बना लेंगे, जिनसे हम लड़ेंगे, झगड़ेंगे। आदमी बड़ा चालाक है, बड़ा कपट से भरा है। वह जो करना चाहता है, उस के लिए अच्छे बहाने खोज लेता है। वह बहानों की आड़ में फिर सारे काम करते चला जाता है।
ये मुसलसल आफतें, ये यूरसें, ये कत्ले-आम आदमी कब तक रहे औहामे-बातिल का गुलाम ये निरंतर होते धर्म के नाम पर आक्रमण, ये लगातार होते हुए अनाचार ! आदमी कब तक मिथ्या भ्रमों का शिकार रहे!
अगर आज दुनिया में नई पीढ़ियां धर्म के प्रति तिरस्कार से भरी हैं तो इसका कारण नई पीढ़ियां नहीं हैं, अब तक धर्म के नाम पर जो हुआ है उसका बोध । महावीर को यह बात ढाई हजार साल पहले दिखाई पड़नी शुरू हुई कि धर्म के नाम पर जो भी हो रहा है, वह किसी दिन दुनिया में अधर्म ही लाएगा; धर्म उससे आनेवाला नहीं है। इसलिए महावीर ने कुछ सीधी-सीधी बातें कहीं, जिनका मंदिर और मस्जिद, कुरान और बाइबल से कोई लेना देना नहीं। कुछ छोटे-से सूत्र प्रगट किए, जो मनुष्य के
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org