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जिन सूत्र भाग: 2
गुरुत्वाकर्षण खींच लेता है। ऐसा थोड़े ही कि तुमने एक कदम छलांग लगाई, फिर तुम पूछते हो अब हम क्या करें छलांग लगाकर ? पूछने का मौका ही नहीं है । गए! एक कदम तुमने उठाया कि जमीन खींचने लगती है। एक कदम तुम न उठाते तो जमीन की कशिश के लिए तुम उपलब्ध न थे। एक कदम उठाया कि जमीन की कशिश काम करने लगी।
तो भक्ति का शास्त्र कहता है कि तुम छलांग लो, फिर परमात्मा की कशिश बाकी काम कर देती है। तुम छोड़ो, वही कर लेगा ।
ध्यानी कहता है, हम छोड़ न पाएंगे ऐसे। हम तो जो गलत है बैलगाड़ी का क्या हुआ ? उसे छोड़ेंगे। पता नहीं परमात्मा है भी या नहीं ?
तो तुम्हें सोचना है अपने भीतर कि तुम्हें कौन-सी बात ठीक लगती है। अगर पागल होने की हिम्मत है तो भक्ति । अगर तर्क बहुत प्रगाढ़ है, सोच-विचार काफी निखरा हुआ है, बुद्धि बलशाली है तो भक्ति तुम्हारे काम की नहीं।
घबड़ाहाट कोई भी नहीं है। पहुंचोगे तो वहीं जब तुम सीढ़ियां उतर रहे हो तब भी कशिश ही तुम्हें खींच रही है। तुम धीरे-धीरे उतर रहे हो, बस इतनी ही बात है। भक्त तेजी से जा रहा है, तीर की तरह जा रहा है। तुम आहिस्ता-आहिस्ता जा रहे हो, एक-एक कदम जा रहे हो। जब तुम एक कदम उतरते हो सीढ़ी से तब भी कशिश ही तुम्हें खींचती है। लेकिन तुम एक कदम उतरते हो, फिर दूसरा कदम उतरते हो। तुम पर निर्भर है।
और जल्दबाजी में ऐसा मत करना, यह मत सोचना कि चलो यह सीधा मार्ग है भक्ति का; छलांग लगा जाओ। अगर तुम्हारे मन में यह न जंचे तो छलांग लगेगी ही नहीं ।
तो अपने मन को पहचानना । तुम्हें जो ठीक लगे वही तुम्हारे लिए ठीक है। और सदा ध्यान रखना जो तुम्हारे लिए ठीक है, वह जरूरी नहीं कि सभी के लिए ठीक हो । जो दूसरे के लिए ठीक है वह तुम्हारे लिए गैर-ठीक हो सकता है। जो दूसरे के लिए अमृत है, तुम्हारे लिए जहर हो सकता है।
मृत्यु तो एक ही है। मृत्यु दो नहीं हैं। अंतिम परिणाम तो एक ही है, लेकिन चलनेवाले दो ढंग के हैं। कुछ हैं, जो होशियारी से चलते हैं, सम्हल-सम्हलकर चलते हैं। रास्ते पर देखा, कोई आदमी सम्हलकर चलता है। और शराबी को देखा, डावांडोल चलता है।
भक्त तो शराबी जैसा है। उसने तो भक्ति की सुरा पी ली। अब वह डांवाडोल चलता है। अब गिर जाए, तो उसे फिकर नहीं । न पहुंच पाए तो उसे फिकर नहीं ।
तुमने कभी एक मजे की घटना देखी है? शराबी गिर जाता है रास्ते पर, हाथ-पैर नहीं टूटते । तुम जरा गिरो !
एक बैलगाड़ी में दो आदमी बैठे थे - एक शराबी शराब पीए और एक आदमी पूरे होश में। बैलगाड़ी उलट गई। जो होश में था, उसके हाथ-पैर टूट गए। जो शराबी था उसको पता ही नहीं चला। जब उसने सुबह आंख खोली तो उसने कहा, अरे !
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तुमने देखा, कभी-कभी छोटे बच्चे गिर पड़ते हैं छत से, चोट नहीं खाते। बड़ा आदमी गिरे तो जरूर चोट खाता है। क्या कारण होगा? शराबी जब गिरता है तो उसे पता ही नहीं चलता कि गिर रहे हैं। गिरने का पता चले तो आदमी रोकता है। रोके तो विरोध खड़ा होता है, प्रतिरोध होता है। जब होशवाला आदमी गिरता है तो वह सब तरह से अपने को रोकता है कि गिर न जाऊं। जमीन खींच रही है नीचे, वह खींच रहा है, सम्हाल रहा है अपने को जमीन के विपरीत। तो दोहरी शक्तियों में विरोध होता है । उसी में हड्डियां टूट जाती हैं।
शराबियों को गिरते देखकर और चोट लगते न देखकर चीन और जापान एक विशेष कला विकसित हुई, उसका नाम है ज्युदो, जुजुत्सु । यह देखकर कि शराबी गिरता है रोज । पड़े हैं। नाली में। फिर सुबह उठकर घर जाते हैं, फिर नहा-धोकर फिर चले दफ्तर । न उनकी हड्डी-पसली टूटी, न कहीं कुछ है। तुम सुबह पहचान भी नहीं सकते कि ये रातभर सड़क पर रहे हैं। सुबह बिलकुल ठीक मालूम पड़ते हैं । तुम तो गिरो इतना ! बच्चा रोज गिरता है, दिनभर गिरता है घर में। मां-बाप तो गिरें; फौरन हड्डी-पसली टूट जाएगी।
अभी अमरीका में उन्होंने एक प्रयोग किया हार्वर्ड युनिवर्सिटी में कि एक बड़े पहलवान को, बड़े शक्तिशाली आदमी को एक छोटे बच्चे की नकल करने को कहा। आठ घंटे बच्चा जो करे वह तुम करो। वह आदमी सोचता था, मैं शक्तिशाली आदमी हूं, गुजर जाऊंगा। काफी, हजारों डालर मिलनेवाले थे। चार घंटे में चारों खाने चित्त हो गया। क्योंकि वह बच्चा कभी गिरे तो अब उसको गिरना पड़े। यह बड़ी झंझट की बात ।
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