Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 586
________________ 576 जिन सूत्र भाग: 2 मगर उसने छू लिए पैर। गहन भाव की बात है। जाते हो। तुम भूल ही जाते हो । आनंद इत्यादि की बकवास भूल यह प्रश्न कई तरह से सोचने जैसा है। पहली बात : 'बिना जाते हो । अचानक तुम पाते हो, मिला। क्योंकि तुम्हारे खोने में किसी उद्देश्य के मैं अपने पति के साथ यहां आ गई। ' ही आनंद है। और तो कोई आनंद नहीं है। तुम नदी भी पार कर लेते हो, तैर भी जाते हो । मित्र कहते हो, हमें तो कुछ मिला नहीं । "तुम कहते थे, बड़ा आनंद मिलता है। ऐसे कभी-कभी तुम किसी को यहां मेरे पास ले आते हो, कहते हो चलो, सुनने में बड़ा आनंद आता है। बस, तुम गड़बड़ में उसको डाल रहे हो। यह तो भूलकर कहना ही मत कि सुनने में बड़ा आनंद आता है। क्योंकि आनंद का लोभ सभी को है। वह भी सोचेगा कि चलो, आनंद की तो खोज हम भी कर रहे हैं। अगर सुनने से ही आनंद मिलता है, इतना सस्ता मिलता है, चले चलते हैं। क्या बिगड़ता है ? सुन ही लें। ऊपर से जिसे हम उद्देश्य कहते हैं, ऊपर से जिसे हम चेष्टापूर्वक खोज कहते हैं, वह बड़ी उथली है। भीतर एक निरुद्देश्य खोज चल रही है। वह जन्मों-जन्मों से चल रही है। हमें कभी पता भी नहीं होता कि कहां किस द्वार पर हमारे लिए द्वार खुल जाएंगे! हमें पता भी नहीं होता कि कहां किस घड़ी में जीवन को शरण मिल जाएगी। शायद हम चेष्टा करके उसकी खोज भी नहीं कर रहे थे। अकस्मात घटता है। अक्सर चेष्टा करनेवाले लोग वंचित रह जाते हैं। क्योंकि चेष्टा में अहंकार है । मेरे पास दो तरह के लोग आते हैं। एक, जो जान-बूझकर धर्म की खोज में निकले हैं। उनके साथ बड़ी अड़चन है। वे सब आश्रमों में हो आए हैं। सब गुरुओं के पास हो आए हैं, सब शास्त्र पढ़ लिए हैं। कहीं कुछ नहीं होता । जब ऐसा व्यक्ति मेरे पास आता है तो मैं जानता हूं, होना बहुत मुश्किल है। उसकी सचेष्ट - आकांक्षा ही बाधा बन रही है। उसकी आकांक्षा के कारण ही वह बंद है। दूसरे तरह के लोग हैं, जो कभी निरुद्देश्य आ जाते हैं। अकारण ! वे ज्यादा खुले होते हैं। कुछ पाने की खोज नहीं होती। कुछ पाने की अपेक्षा नहीं होती। मन ज्यादा खुला होता है। सरलता से चीजें घट जाती हैं। तुम इसे समझने की कोशिश करना। जो-जो तुमने उद्देश्यपूर्वक खोजा है, उसे तुम कभी न पा सकोगे। जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, वह उद्देश्यपूर्वक खोज से नहीं मिलता। आनंद, सत्य, प्रभु, कोई भी सीधी खोज से नहीं मिलते। आकस्मिक घटते हैं। अनायास घटते हैं। प्रसादरूप मिलते हैं। मगर वह पूरे समय बैठा है, देख रहा है किनारे से। जैसे तुमने देखा हो, बिल्ली बैठी रहती है, चूहे की राह देखती रहती है। ऐसे लगती है बिलकुल शांत बैठी है, ध्यान कर रही है। ऊपर से देखो तो ऐसा लगता है, बड़ी महावीर बनी बैठी है, ध्यान-मग्न; लेकिन उसकी नजर लगी है चूहे की पोल पर कि कब निकले ! अभी तक नहीं निकला, अब निकले। बड़ी देर हुई जा रही है, भूख बढ़ती जा रही है। तो वह जो आदमी आ गया है सुनने, इसलिए कि आनंद मिलेगा, वह आनंद के चूहे पर लगाए नजर बैठा है। और ध्यान रखना, बिल्ली की नजर से चूहा डरता है। निकलता ही नहीं । वह भी अंदर से देख लेता है कि कहीं कोई ध्यानमग्न तो नहीं बैठा है! अगर बैठा है तो खतरा है। चूहे भी बिल्ली के पास नहीं आते। कितना ही ध्यान करो! क्योंकि चूहे कहते हैं, सौ-सौ चूहे खाए हज को चली। इतने चूहे खा चुकी है, इसका भरोसा चूहों नहीं आता कि यह ध्यान में बैठी होगी। Jain Education International 2010_03 कोई मित्र तुमसे कहता है कि मैं तैरने जाता हूं नदी में, बड़ा आनंद आता है। तुम कहते हो, तो हम भी आएंगे। आनंद की तो हम भी तलाश कर रहे हैं। बस, गड़बड़ हो गई। तुम्हें न मिलेगा ! क्योंकि तुम तैरोगे ही नहीं। एक हाथ मारोगे और सोचोगे, आनंद अभी तक नहीं मिला। कब मिलेगा अब ? आधी नदी पार भी हो गई, अभी तक आनंद नहीं मिला ? अब तुम उदास होने लगोगे । तो अक्सर जो आकस्मिक रूप से आ गए हैं...। तुमको मैं कहता हूं, अपने मित्रों को कभी मत कहना कि बड़ा क्योंकि आनंद मिलता है तब, जब तुम तैरने में परिपूर्ण लीन हो आनंद मिलता है, चलो। नहीं तो तुम उसके कारण बाधा न आनंद बड़ी नाजुक घटना है । तुम जब बिलकुल बेखबर होते हो, मस्त होते हो, तब तुममें प्रवेश कर जाता है। सामने के द्वार 'आता ही नहीं, पीछे के द्वार से आता है। ऐसा ढोल इत्यादि बजाकर आता ही नहीं । चुपचाप, पगध्वनि भी नहीं होती ऐसे चला आता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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