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ज्ञान ही क्रांति
लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, जिसने हिम्मत की है दांव पर लगाने यह जो मैं तुमसे कह रहा हूं, इस कहने पर बहुत ज्यादा निर्भर की उसने जरूर पा लिया है। मगर मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता मत रहना। इस कहे हुए के किनारे-किनारे अनकहा हुआ भी | है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। तुम आत्मा को पाने भेज रहा हूं। हर दो शब्दों के बीच में जो खाली जगह है, वहीं तुम चले हो, मुफ्त पाने चले हो। कीमत चुकाओ। यद्यपि जब मुझे पकड़ना। जब मैं चुप रह जाता हूं, तब मुझे गौर से सुनना। आत्मा मिलेगी, परमात्मा का दर्शन होगा, तब तुम पाओगे जो शब्द छूट जाएं, हर्ज नहीं, शून्य न चूकने पाये। इसलिए कीमत चुकायी थी, वह तो कुछ भी न थी। जो मिला है, वह तो कभी-कभी ऐसा होगा कि सुनते-सुनते एक तारी लग जाएगी। अमूल्य है। उसको किसी कीमत से चुकाना संभव नहीं। कुबेर एक लय बंध जाएगी। एक अनूठे रस में सरोबोर होने लगोगे। के सारे खजाने भी उलीच देने से उसकी कीमत चुकनेवाली नहीं उस क्षण ऐसा भी लगेगा कि अब कुछ सनायी नहीं पड़ता, अब है। घबड़ाओ मत
कुछ दिखायी नहीं पड़ता, लेकिन मस्तक झुकने लगेगा। वह जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है
झुकना बड़ा सांकेतिक है। वह समर्पण का सूचक है। उसे जिस्म मिट जाने से इंसान नहीं मर जाते
तोड़ना मत। उस तंद्रा को हिलाना मत। वैसी तंद्रा समाधि की धड़कनें रुकने से अरमान नहीं मर जाते
पहली झलक है। सांस थम जाने से ऐलान नहीं मर जाते
यह मत सोचना कि यह मैं क्या कर रहा हूं, सुनने आया था, होंठ जम जाने से फरमान नहीं मर जाते
सुनना तो चूका जा रहा है। देखने आया था, आंखें तो बंद हुई जा जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है।
रही हैं। यहां जो देखने को है, वह आंख बंद करके ही देखने को शरीर भी मर जाए, तो भी तुम नहीं मरते हो। मन भी मर जाए, है। और यहां जो सुनने को है, वह जब तुम झुकोगे तभी सुनायी तो भी तुम नहीं मरते हो। वस्तुतः जैसे ही तुम जानने लगते हो कि पड़ेगा। तो मैंने जो कहा, अगर वह याद भी न रहे, फिकिर मत शरीर की मृत्यु मेरी मृत्यु नहीं, मन की मृत्यु मेरी मृत्यु नहीं, वैसे करना। क्योंकि यहां हम कोई परीक्षा देने नहीं बैठे हैं किसी ही तुम्हें पहली दफा महाजीवन की झलक मिलनी शुरू होती है। विश्वविद्यालय की, कि मैंने जो कहा वह तुम्हें याद रहे। उसके पहली दफा अंधेरे में दीया जलता है।
नोट मत लेना। उसको मन में फिकिर मत करना। यहां तो कुछ तो व्यर्थ मूल्यों को मूल्य मत दो। प्रतिष्ठा, सम्मान, सत्कार, और ही घट रहा है बोलने के बहाने। यहां तो बोलने के बहाने रिस्पेक्टेबिलिटी–झाड़ो, बुहारो, कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करो, हृदय और हृदय का मेल बनाने की चेष्टा चल रही है। यह कचराघर में फेंक आओ। इसे घर में रखने की जरूरत नहीं है। बोलना तो ऐसे ही है जैसे छोटे बच्चों को हम खिलौना दे देते हैं
कि खेलो। बच्चे खिलौने के खेल में लग जाते हैं, तो शांत हो चौथा प्रश्न : आपके प्रवचन पढ़ने में रस आया, पुस्तकें यहां जाते हैं। उपद्रव नहीं करते। ऐसा ही मेरा बोलना है। यह तो खींच लायीं; लेकिन अब शब्द समझ में नहीं पड़ते। आंखें | खिलौने हैं, तुम्हारी बुद्धि को कि खेलो। जब तुम्हारी बुद्धि आपको निहारती रहती हैं और मिंच जाने पर मस्तक नत हो खेल-खिलौने में उलझी है, तब मैं तुम्हारे हृदय के पास हूं। बुद्धि रहता है। क्या यही रूपांतरण है मन से आत्मा की तरफ? | का उपद्रव बंद है, वह अपने खिलौनों में उलझी है, तुम्हारा हृदय
मेरे करीब सरककर आ सकता है। अगर ऐसा घटने लगे, घटने निश्चित ही। शब्द कब तक सुनते रहोगे? शून्य सुनना | देना। परिपूर्ण भाव से घटने देना। क्योंकि वही लक्ष्य है। पड़ेगा। वाणी में कब तक उलझे रहोगे? वाणी के पार चलना अरबाबे-जुनूं पर फुरकत में होगा। यह बात जो मैं तुमसे कह रहा है, कानों से सुनने की नहीं, अब क्या कहिये क्या-क्या गुजरी हृदय से सुनने की है। और यह जो इशारे मैं तुम्हें कर रहा हूं, आये थे सवादे-उल्फत में आंखों से देखने पर समझ में न आयेंगे, आंखें बंद होंगी तभी कुछ खो भी गये कुछ पा भी गये समझ में आयेंगे।
प्रेम के यात्रियों पर प्रेम की यात्रा में क्या-क्या गजरी?
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