Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 525
________________ है, कचरा मात्र । उसमें कुछ भी और नहीं है लेकिन तुम्हारी ऊर्जा तो व्यय होती ही है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी अपनी ऊर्जा का पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा उपयोग ही नहीं कर पाता । पचासी प्रतिशत ऐसे ही खो जाती है। जिनके जीवन में तुम्हें कुछ घटनाएं घटती दिखाई पड़ती हैं, कोई आइंस्टीन, कोई फ्रायड, जो जीवन में बड़े सत्यों की खोज कर लाते हैं— चाहे विज्ञान के, चाहे मन के, चाहे धर्म के उनमें और तुममें फर्क क्या है? ऊर्जा सबको बराबर मिली है, समतौल में मिली है, लेकिन तुम ऊर्जा को ऐसे | ही बहाते रहते हो । एक वैज्ञानिक अपनी ऊर्जा को संयमित कर लेता है । वह सोचता तो अपनी ही विज्ञान की बात सोचता है। सपना भी देखता है तो अपने ही विज्ञान का सपना देखता है। मैडम क्यूरी को नोबेल प्राइज मिली सपने के कारण। जो हल किया सूत्र, वह उसने सपने में किया। जाग्रत रूप से तो वह तीन साल से हल कर रही थी, वह हल नहीं होता था। लेकिन सोते-जागते एक ही उधेड़-बुन थी। बस जगत में एक ही काम था उस सूत्र को हल करना । गणित का कोई सवाल था, जो अटका रहा था तीन साल से। जिस रात हल हुआ, उस रात वह सोयी, सोचते-सोचते-सोचते-सोचते उसी प्रश्न के मनन में, मंथन में डूबी सो गई। लगता है सपने में हल हुआ। नींद में मालूम होता है, उठी। उत्तर उसे मिल गया तो जाकर वह टेबल पर लिख भी आयी। वापस सो गई आकर । सुबह जब आंख खुली तो उसे याद भी न रहा । सपना याद न रहा, उठना याद न रहा, लेकिन जब वह अपने टेबल पर गई तो चकित हुई। उत्तर लिखा था । हस्ताक्षर भी उसी के थे। कमरे में दूसरा था भी नहीं। और दूसरा कोई होता भी तो भी हल नहीं कर सकता था। मैडम क्यूरी नहीं कर पा रही थी तीन साल से तब उसे धीरे-धीरे याद आयी कि रात सपना...। सपने के फिर ब्यौरे का पता चला, फिर उसे स्मरण आया कि सपने में ही उसने देखा कि वह उठी भी थी। समझा था कि सपने का ही अंग है उठना भी । और टेबल पर लिखना भी सपने जैसा मालूम हुआ था। तब सारी बात साफ हो गई। वैज्ञानिक अपनी सारी ऊर्जा को एक ही दिशा में लगा देता है। तभी तो प्रकृति के गहन सत्यों को खोज के लाता है। डुबकी Jain Education International 2010_03 चौदह गुणस्थान गहरी लगाता है। ऐसे ही जल के ऊपर सतह पर नहीं तैरता रहता, डुबकी मारता है। गहरे में जाता है। सारी ऊर्जा एक ही दांव पर लगाता है। ऐसा ही ध्यानी भी - महावीर, या बुद्ध, या कृष्ण, या पतंजलि गहरी डूब लेते हैं तो हीरे-मोती बीन लाते हैं। हमारे पास भी उतनी ही ऊर्जा है। ऊर्जा की मात्रा में जरा भी फर्क नहीं। जितनी महावीर को मिली उतनी तुम्हें मिली है। प्रकृति सबको बराबर देती है, मगर सभी बराबर उपयोग नहीं करते। जीसस एक कहानी कहते थे। एक बाप के तीन बेटे थे। तीनों योग्य थे, बुद्धिशाली थे। और बाप तय न कर पाता था कि किसको अपना उत्तराधिकारी बना जाए। बड़ा धन था, बड़ी जमीन थी, बड़ा वैभव था। बाप चिंतित था, किसको चुने | फिर उसने एक उपाय खोजा। उसने एक बोरे भर फूलों के बीज तीनों बेटों में बांट दिए और कहा कि मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं। जो बीज मैं तुम्हें दे जा रहा हूं, सम्हालकर रखना। इन पर बहुत कुछ निर्भर है। तुम्हारा भविष्य इन्हीं पर निर्भर है। इन्हीं के माध्यम से मैं अपने उत्तराधिकारी को चुनूंगा । इसलिए किसी भूल-चूक में मत रहना। मैं लौटकर आऊंगा तो बीज वापस चाहिए। बाप चला गया। पहले बेटे ने सोचा कि बड़ी झंझट है। बीज घर में रखें, चूहे खा जाएं, सड़ जाएं, बच्चे इधर-उधर फेंक दें। तो बेहतर यह है कि बाजार में बेच देना चाहिए। पैसे पास में रख लेंगे सम्हालकर। जब बाप आएगा, फिर बीज खरीद लेंगे, दे देंगे। सीधी गणित की बात थी । दूसरे बेटे ने सोचा कि बाप ने कहा है बीज वापस लौटाना, तो वह यही बीज चाहता होगा। कहीं बाजार में बेचें, दूसरे बीज फिर बाद में खरीदें और बाप कहे, ये तो वे बीज नहीं हैं। तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे। तो उसने तिजोड़ी में बंद करके ताला बंद कर दिया । चाबी सम्हालकर रख ली कि जो दिए हैं, वही लौटा देंगे। झंझट में पड़ना क्यों ? तीसरे बेटे ने सोचा कि बीज बाजार में बेच दें तो वही बीज तो होंगे नहीं, जो पिता दे गए। धोखा होगा । तिजोड़ी में बंद करना ? पिता पता नहीं कब आएं-छह महीने, सालभर, साल। तिजोड़ी में बीज अगर सड़ गए तो राख रह जाएगी। तो उसने सोचा बेहतर है, इन्हें बो दो। उसने बीज बो दिए। For Private & Personal Use Only 515 www.jainelibrary.org

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