Book Title: Jina Sutra Part 2
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 572
________________ 562 जिन सूत्र भाग: 2 योगासनों का अभ्यास आरंभ कर दिया और सालभर में वह योग में 'दक्ष हो गया। घंटों शीर्षासन में खड़ा रहता। एक दिन मुल्ला की पत्नी से डाक्टर ने पूछा, योग के कारण नसरुद्दीन में कोई परिवर्तन आया? पत्नी ने कहा, हां एक दृष्टि से तो काफी परिवर्तन आया है। अब वे सिर के बल खड़े होकर भी मजे में पूरी बोतल पी सकते हैं । होगा! क्योंकि हम जैसे हैं, जैसे ही कोई नियम हमें मिला, हम उसे अपना रंगरूप दे देते हैं। वह नियम हमारे जैसा हो जाता है । बजाय इसके कि नियम हमें बदले, हम नियम को बदल लेते हैं। इसलिए तो दुनिया में इतने वकील हैं। उनका कुल काम इतना है कि कानून जब बने तो वे अपराध के हिसाब से कानून को बदलने की चेष्टा करें। वे अपराध के रंग में कानून को रंगें। तो जितने कानून बढ़ते जाते हैं उतने वकील बढ़ते जाते हैं। क्योंकि अपराधी अपराध छोड़ने को राजी नहीं है। वह कहता है, कानून से तरकीब निकालो। वह कानून का ही उपयोग अपराध करने के लिए कर लेता है। आवाज । और ऐसा ही वकील तुम्हारे भीतर भी है जिसको तुम बुद्धि कहो, तर्क कहो, मन कहो। तो नियम को समझना और मन की चालबाजी से सावधान रहना । मगर यह अहंकार को लगी चोट कोई आत्महत्या करने लायक नहीं थी। हंसकार टाल जाना था। आदमी बड़ी छोटी-छोटी बातों पर मरने को तैयार हो जाता है, यह खयाल रखना। तुमने महावीर कहते हैं, ‘साधक को पग-पग पर दोषों की आशंका भी कई दफे सोचा होगा कि मर ही जाओ। परीक्षा में फेल हो गए (संभावना) को ध्यान रखकर चलना चाहिए।' कि इंटरव्यू में न आए, मर ही जाओ । मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ऐसा आदमी खोजना कठिन है, जिसने जीवन में कम से कम दस बार आत्महत्या का विचार न किया हो । छोटी-छोटी बात - पति से झगड़ा हो गया कि बस पत्नी सोचने लगती है, कि क्या करें? केरोसिन डाल लें, कि गैस के चूल्हे में आग लगा लें, कि बिल्डिंग से कूद पड़ें, कि ट्रेन के नीचे सो जाएं? जरा-जरा सी बात ! लाभंतरे जीविय वूहइत्ता... मैं एक घर में रहता था। और मेरे पड़ोस में ठीक दीवाल से और जीवन का एक ही अर्थ है कि इससे महाजीवन का लाभ लगे हुए एक बंगाली प्रोफेसर रहते थे। अभी नया-नया मैं आया होता रहे। था और दीवाल बड़ी पतली थी, जैसी आजकल के मकानों की होती है। तो उनकी सब बातें मुझे सुनाई पड़ती थीं—न सुनना पच्चा परिणाय मलावंधसी... और अगर वह लाभ बंद हो जाए तो मौत को स्वेच्छा से चाहूं तो भी। पहले दिन... दूसरे दिन मैं थोड़ा हैरान हुआ । स्वीकार करे। लेकिन क्योंकि वह दूसरे दिन उन्होंने एकदम धमकी दी कि मैं जाकर मर जाऊंगा । तो मेरी कोई ज्यादा पहचान भी नहीं थी। बस थोड़ा परिचय हुआ था। अब वे तो निकल भी गए घर से अपना छाता चरे पयाई परिसंकमाणो, जं किचिं पासं इह मन्त्रमाणो । छोटे-छोटे दोष को भी समझपूर्वक देखना चाहिए। ऐसा न कहे कि छोटा-सा दोष है, क्या हर्ज है, चल जाएगा। क्योंकि छोटा बड़ा हो जाता है। छोटा बीज बड़ा वृक्ष हो जाता छोटा कांटा आखिर में नासूर बन जाता है। छोटे दोष को छोटा न समझे। सावधान रहे। तस्स ण कप्पदि भत्त-पइण्णं अणुवट्ठिदे भये पुरदो । सो मरणं पत्थितो, होदि हु सामण्णणिव्विण्णो ।। लेकिन यदि अभी जीवन में कुछ भी संभावना शक्ति की थी, अगर जीवन में अभी एक बूंद भी रस बचा था तो उस रस को भी ध्यान में परिवर्तित करना है। उस रस को भी परमात्मा की खोज में लगाना है। तो जल्दबाजी न करे। क्योंकि बहुत लोग भगोड़े हैं। अगर उन्हें मरने का मौका मिल जाए तो वे कोई छोटे-से कारण से ही मर जाएंगे। कोई छोटी-मोटी बात, और वे मर जाएंगे। अहंकार को लगी कोई छोटी-मोटी चोट और वे मर जाएंगे। कल मैं पढ़ता था कि एक सर्कस के शेरों को सिखानेवाले रिंग मास्टर ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि एक शेर ने उसकी आज्ञा न मानी। अब शेर...! आदमी भी होता तो भी ठीक था। उसने आज्ञा न मानी इससे उनका बड़ा भारी, आत्मसम्मान की हानि हो गई। उन्होंने आत्महत्या कर ली । भद्द हो गई होगी क्योंकि सर्कस का मामला! वे चिल्लाते रहे होंगे, आवाज देते रहे होंगे। शेर तो शेर वह बैठा रहा होगा कि अच्छा चलो, देते रहो Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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