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- पंडितमरण र
पंडितमरण सुमरण है
आत्महत्या का भी अधिकार है, लेकिन परिज्ञानपूर्वक। उस शब्द खुल रहे हैं, नए फूल नहीं खिल रहे, सब असार हो गया, हम में सब कुछ छिपा है। परिज्ञानपूर्वक का अर्थ होता है, जहर किसी पर बोझ होकर बैठ गए हैं तो विदा हो जाना चाहिए। खाकर मत मरना, पहाड़ से कूदकर मत मरना क्योंकि वह तो जीवन से जब तक सार निचड़ता हो....और सार का अर्थ है क्षण में हो जाता है, भावावेश में हो जाता है। छुरा मारकर मत आत्मा। सार का अर्थ यह नहीं कि तुम तिजोड़ी भरते जा रहे हो, मरना, गोली चलाकर मत मरना।
लाभ होता जा रहा है। सार से महावीर का अर्थ है, भीतर की परिज्ञानपूर्वक का अर्थ है उपवास कर लेना। पानी, भोजन बंद संपदा अभी उपलब्ध हो रही है तो जीवन अभी योग्य है। अभी कर देना। नब्बे दिन लगेंगे, अगर आदमी स्वस्थ हो तो मरने में। इस नाव का उपयोग करना है। तीन महीने तक...तीन महीने तक सतत एक ध्यान बना रहे कि लेकिन कभी ऐसा भी हो जाता है कि तुम नाव पर गए यात्रा मैं मरने को तैयार हूं-परिज्ञान हुआ। तीन महीने में हजार करने, और एक ऐसी घड़ी आयी कि नाव में छेद हो गए और नाव दफा...तीन महीने बहुत दूर हैं, तीन मिनट में तुम्हारा मन हजार डूबने लगी, तो महावीर कहते हैं, छलांग लगाकर फिर तैर दफा बदलेगा कि मरना कि नहीं मरना? अरे छोड़ो भी! कहां के जाना। फिर नाव में ही मत बैठे रहना। फिर यह मत सोचना कि पागलपन में पड़े हो? रात सोए, उठकर बैठ गए, जल्दी पहुंच नाव को कैसे छोड़ दें? फिर छोड़ देना नाव को क्योंकि असली गए फ्रिज के पास और भोजन कर लिया कि यह तो नहीं चलेगा। सवाल दूसरा किनारा है। अगर नाव दूसरे किनारे की तरफ अभी क्या सार है मरने में? पता नहीं आगे कुछ है या नहीं है। भी ले जाने में समर्थ हो तो चलते जाना। अगर नाव असमर्थ हो
और तीन महीने अगर तुम उपवास किए हुए, जल-अन्न त्यागे गई हो, देह कमजोर हो गई हो, जराजीर्ण हो गई हो तो छलांग हुए और एक ही भाव में बने रहो, तो यह धीर की अवस्था हो लगा देना। तैरकर पार हो जाना। नाव से ही थोड़े ही दरिया पार गई। यह हकदार है मरने का। इसको कोई अड़चन नहीं। इसने | होता है, तैरकर भी होता है, नाव के बिना भी होता है। अर्जित कर लिया। इसको महावीर कहते हैं परिज्ञानपूर्वक तो इतना स्मरण रहे। और नियम के संबंध में यह खतरा है कि मरना। लेकिन वे जानते हैं कि कुछ लोग अजीब हैं। वे हर जगह नियम का लोग अक्सर गलत अर्थ ले लेते हैं। से अपने लिए धोखा निकाल लेते हैं।
__ मैंने सुना है, एक डाक्टर ने मुल्ला नसरुद्दीन को सलाह दी कि इसलिए दूसरे सूत्र में उन्होंने कहा, 'किंतु जिसके सामने अपने वह प्रतिदिन पांच किलोमीटर दौड़ा करे तो उसका स्वास्थ्य सुधर संयम, तप आदि साधना का कोई भय या किसी तरह की क्षति | जाएगा। और फिर घरेलू जीवन में भी सुख-शांति संभव होगी। की आशंका नहीं है, उसके लिए भोजन का परित्याग करना हफ्ते भर बाद मुल्ला ने डाक्टर को फोन किया और बताया कि उचित नहीं है।'
वह उनके परामर्श पर ठीक-ठीक चल रहा है। डाक्टर ने पूछा, अगर अभी त्याग, तप और ध्यान बढ़ रहा है और तुम्हारे शरीर और घरेलू जीवन कैसा बीत रहा है? मुल्ला ने कहा पता नहीं। की कमजोरी के कारण, बुढ़ापे के कारण, दोबल्य के कारण क्योंकि में तो अब घर से पैतीस किलोमीटर दूर पहुंच गया हूँ। तुम्हारे तप-ध्यान में कोई बाधा नहीं पड़ रही है, कोई आशंका नियम को समझकर चलना जरूरी है। और नियम से नासमझी नहीं है, तुम्हारा संयम आगे जा रहा है तो उसके लिए भोजन का | पैदा कर लेना बहुत आसान है, क्योंकि नासमझ हम हैं। हममें परित्याग करना उचित नहीं है।
नियम जाते से ही तिरछा हो जाता है। और ऐसी भी संभावना है 'यदि वह फिर भी भोजन का त्याग कर मरना चाहता है तो | कि हम नियम का पालन भी कर लें और जो हम कर रहे थे उसमें कहना होगा, वह मुनित्व से विरक्त हो गया।'
कोई फर्क न पड़े। वह च्युत हो गया। क्योंकि उसमें एक नई आकांक्षा पैदा हो गई। ऐसा भी हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन को उसके डाक्टर ने एक मरने की। मरना आकांक्षा से नहीं होना चाहिए। अब कुछ लाभ बार कहा कि अब यह शराब पीने की आदत सीमा के बाहर जा नहीं रहा और हम किसी के ऊपर बोझ हो गए हैं तो क्या सार | रही है। इसमें कुछ सुधार करना जरूरी है। तो तुम ऐसा करो कि है? अब कोई गति नहीं हो रही है, जीवन में कुछ नए साध्य नहीं योगासन शुरू करो। तो उसने डाक्टर की सलाह मानकर
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