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प्रेम के कोई गणस्थान नहीं
चौदह सीढ़ियों में बांटा है। क्या प्रेम के मार्ग की भी ऐसी कोई । मैंने स्वीकार कर लीं। अब मेरी तरफ से इनको बांधकर गंगा में व्याख्या है? कृपया इस पर कुछ कहें।
डाल आओ।
उस आदमी ने पोटली बांधी बड़े बेमन से। हजार बार सोचने प्रेम को बांटने का कोई उपाय नहीं। क्योंकि प्रेम छलांग है। लगा कि यह क्या हआ। मगर अब कुछ कह भी न सका। भेंट ज्ञान क्रमिक है, प्रेम छलांग है। ज्ञान इंच-इंच चलता, कर दीं। और यह आदमी पागल है। यह कह रहा है, गंगा में कदम-कदम चलता। प्रेम इंच-इंच नहीं चलता, कदम-कदम | फेंक आ। गया बेमन से। बड़ी देर लगा दी, आया नहीं तो नहीं चलता।
रामकृष्ण ने कहा, जरा पता तो लगओ। वह गंगा पहुंचा कि घर ज्ञान बडा होशियार है. प्रेम बडा पागल है। इसलिए ये जो भाग गया? वह है कहां अब तक लौटा नहीं। गणस्थान हैं, ज्ञान के साधक के लिए हैं। भक्ति के मार्ग पर कोई | भेजा देखने को, तो देखा कि वह गंगा के किनारे पर गुणस्थान नहीं हैं।
बैठकर...बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई है। वह पहले पटकभक्त जानता नहीं विभाजन को। भक्त जानता ही नहीं कोटियों पटककर खनखना-खनखनाकर गिनती कर रहा है। एक-एक को। भक्त जानता ही नहीं विश्लेषण को। भक्त की पहचान तो गिनकर फेंक रहा है। किसी ने खबर दी रामकृष्ण को। वे गए संश्लेषण से है-सिन्थेसिस। भक्त की तो पहचान चीजों को और उन्होंने कहा, पागल! जोड़ना हो तो गिनती करनी पड़ती है, जहां-जहां भेद हो वहां अभेद देखने की है।।
फेंकने के लिए क्या गिनती कर रहा है? अरे! नौ सौ निन्यानबे ज्ञानी की सारी चेष्टा जहां अभेद भी हो, वहां भेद पहचानने की हुईं तो भी चलेगा। एक हजार एक हुईं तो भी चलेगा। बांध है। महावीर ने तो अपने पूरे शास्त्र को भेद-विज्ञान कहा है। पोटली, इकट्ठी फेंक ! यह क्या गिनती कर रहा है? कहा कि यह भेद को पहचानने की कला है। पहचानना है कि वह पुरानी आदत रही होगी–जोड़नेवाले की आदत, गिनती शरीर क्या है, आत्मा क्या है। पहचानना है कि संसार क्या है, करने की। वह पुराने हिसाब से जैसे अपनी दुकान पर बैठकर मोक्ष क्या है। एक-एक चीज पहचानते जाना है। एक-एक | खनखनाकर देखता होगा। असली है कि नकली है, वह अभी चीज का ठीक-ठीक ब्यौरा और ठीक-ठीक विश्लेषण करना है। भी कर रहा है। अब पूरी प्रक्रिया उलटी हो गई। ठीक विश्लेषण करने से ही कोई मुक्त अवस्था को उपलब्ध होता | प्रेम तो डूबना जानता है। है। ज्ञान का खोजी विश्लेषण करता है। विश्लेषण उसकी विधि | यह कौन आया रहजन की तरह है। वह कैटेगरीज बनाता है, कोटियां बनाता है। उसका ढंग जो दिल की बस्ती लूट गया वैज्ञानिक है।
आराम का दामन चाक हुआ भक्त, प्रेमी कोटियां तोड़ता है। सब कोटियां को गड्डमड्ड कर | तसकीन का रिश्ता टूट गया देता है। दीवाना है, पागल है। पागलों ने कहीं हिसाब लगाए? - यह कौन आया रहजन की तरह
तो यह तो पूछो ही मत, कि क्या भक्ति के मार्ग पर भी, प्रेम के जो दिल की बस्ती लूट गया मार्ग पर भी इसी तरह की कोटियां हो सकती हैं, विभाजन हो । डाकू की तरह आता है परमात्मा। इसलिए तो हिंदू परमात्मा सकता है ? संभव नहीं है।
| को हरि कहते हैं। हरि यानी लुटेराः हर ले जाए जो; झपट ले। एक आदमी धन इकट्ठा करता है तो धीरे-धीरे करता है। लुटेरा रहजन की तरह आ जाए–डाकू। जो लूट ले। आता है, लूटकर ले जाता है इकट्ठा।
यह कौन आया रहजन की तरह रामकृष्ण के पास एक आदमी हजार सोने की मोहरें लेकर जो दिल की बस्ती ल. आया। कहा, स्वीकार कर लें। रामकृष्ण ने कहा, अब तुम तो प्रेम कुछ तुम्हारे बस में थोड़े ही है। ध्यान तुम्हारे बस में है। ले आए तो चलो स्वीकार कर लिया। लेकिन मैं क्या करूंगा। ज्ञान तुम्हारे बस में है। त्याग, तपश्चर्या तुम्हारे बस में है, प्रेम तुमने तो अपना बोझा छुड़ाया, मुझ पर डाल दिया। ऐसा करो, तुम्हारे बस में थोड़े ही है। किसी अज्ञात क्षण में, किसी अनजानी
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