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जिन सूत्र भागः 2
कृष्ण से अर्जुन ने पूछा है, किसको कहते हैं आप धीरपुरुष? असाधारण देश है। क्रांति के पहले रूस ने इतने बड़े साहित्यकार कौन है स्थितधी? स्थितधी का ठीक अर्थ धीरपुरुष है। कौन है| दिए, जितने दुनिया के किसी देश ने नहीं दिए। तालस्ताय, जिसको आप स्थितप्रज्ञ कहते हैं? कौन है जिसकी प्रज्ञा ठहर चेखव, गोर्की, दोस्तोवस्की, तुर्जनेव—ऐसे नाम कि जिनका गई? धी यानी प्रज्ञा। धी यानी आत्यंतिक बोध, अंतर्तम में कोई मुकाबला नहीं दुनिया में। एकबारगी जिन्होंने दुनिया को जलती हुई ज्योति।
फीका कर दिया। अगर उस समय के दुनिया के दस बड़े कौन है स्थितधी?
उपन्यास चुने जाएं तो पांच रूसी होंगे और पांच गैर-रूसी। महावीर कहते हैं वही, जिसे मृत्यु विचलित नहीं करती। जिसे | सारी दुनिया आधी-आधी बांट दी। अपनी मृत्यु विचलित नहीं करती, उसे फिर किसी की मृत्यु फिर अचानक क्रांति हुई और सब मर गया। हुआ क्या? विचलित नहीं करती।
| बंदूक लग गई पीछे, कविता मर गई। जो सहज और स्वतंत्र न वही तो कृष्ण भी अर्जुन से कहते हैं कि ये जो तेरे सामने खड़े रहा, वह जीवंत नहीं रह जाता। तो कविता लिखी जाती है, हैं, तू यह मत सोच कि तेरे मारने से मारे जाएंगे। 'न हन्यते खेत-खलिहान की प्रशंसा में, फैक्ट्री इत्यादि की प्रशंसा में, हन्यमाने शरीरे।' कोई मरता नहीं। लोग भय के कारण मरते लेकिन उसमें कुछ प्राण नहीं है। जबर्दस्ती लिखी जाती है, हैं। कोई मारता नहीं।
सरकारी आज्ञा से लिखी जाती है। उपन्यास भी लिखे जाते हैं। तो मत्य असली मत्य नहीं है। क्योंकि मत्य को जिसने स्वीकार | सब चलता है। किताब भी छपती हैं. किताब बिकती भी हैं किया वह तो अमृत के दर्शन को उपलब्ध होता है। मृत्यु तभी | लेकिन कुछ मूल स्वर खो गया। जबर्दस्ती हो गई। मृत्यु मालूम होती है जब हमारा अस्वीकार होता है।
भूखे कवियों ने, सर्दी में ठिठुरते कवियों ने बेहतर कविता तुमने कभी खयाल किया? वही काम तुम अपनी मौज से करो लिखी थी। रूस में आज कवि जितना संपन्न है उतना दुनिया के और वही काम किसी की आज्ञा के कारण जबर्दस्ती करो। तुम किसी कोने में नहीं। अच्छे से अच्छा मकान उसके पास है, कवि हो. और एक सिपाही तम्हारी पीठ पर बंदक लगाए खड़ा | अच्छे से अच्छी कार उसके पास है, भोजन की व्यवस्था, अच्छी | हो, कहता हो करो कविता। तुम अचानक पाओगे, कविता सूख से अच्छी कपड़ों की व्यवस्था, उसके बच्चों का जीवन सुरक्षित। गई। तुम अचानक पाओगे, रसधार बहती नहीं। तुम अचानक दुनिया में मनुष्य-जाति के इतिहास में कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, पाओगे, शब्द जुड़ते नहीं। तुम अचानक पाओगे, गीत उठता उपन्यासकार, साहित्यकार कभी इतने सम्मानित और प्रतिष्ठित नहीं। न केवल यही, तुम्हारे भीतर क्रोध उठेगा, बगावत उठेगी। न थे। और न कभी इतने सुविधा-संपन्न थे, जितने रूस में हैं। अगर हिम्मतवर हुए तो लड़ने लग जाओगे। अगर लेकिन कविता मर गई। गरीबी में न मरी, भूख में न मरी, गैर-हिम्मतवर हुए तो झुककर तुकबंदी करने लगोगे। कविता | दीनता-दुर्बलता में न मरी, रोग, मृत्यु में न मरी, लेकिन सुविधा पैदा नहीं होगी। किसी तरह शब्द जमा दोगे उधार, मुर्दा, जिनमें में मर गई। पीछे बंदूक लगी है। जबर्दस्ती में मर गई। न कोई लय होगी, न कोई प्राण होगा, न कोई आत्मा होगी। जीवन का कुछ सूत्र है कि जो तुम स्वभाव, सौभाग्य, सहजता
तुमने कविता पहले भी की है लेकिन तब तुमने अपनी मौज से से करते हो, उसका आनंद अलग। जो तुम जबर्दस्ती करते हो, की थी। दिनभर के थके-मांदे घर आए थे। शरीर की जरूरत थी जबर्दस्ती के कारण ही सब गलत हो जाता है। कि सो जाते, लेकिन आधी रात जगते रहे। टिमटिमाते दीये की। जो लोग स्वीकारपूर्वक मरे हैं, उनसे पूछो; महर्षिजनों से रोशनी में बैठ कागज काले करते रहे। तुम्हारे हृदय से बहती पूछो। मृत्यु परमात्मा का रूप है। वह परमात्मा का संदेशवाहक थी। उमंग और थी, उल्लास और था।
है, डाकिया है। रूस में कविता मर गई। उन्नीस सौ सत्रह के बाद रूस में कोई नहीं, मृत्यु भैंसों पर सवार होकर नहीं आती। मृत्यु परियों की ढंग की कविता नहीं हुई; न एक ढंग का उपन्यास लिखा गया, न तरह सुंदर है। पक्षियों की तरह उड़कर आती। तुम्हें आलिंगन में ढंग की एक पेंटिंग बनी। सारा साहित्य मर गया। और रूस | ले लेती। तुम्हें गहनतम विश्राम और विराम देती। तुम्हें समाधि
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