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जिन सूत्र भागः2
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पुनर्जन्म का पूरा सिद्धांत है।
बने। अभी तो शरीर साध्य है। तुम भोजन जीने के लिए थोड़े ही तुम भी चाहते हो कि वापसी न हो। लेकिन तुम चाहते हो, | करते हो। तुम जीते ही भोजन करने के लिए हो। तुम कपड़े थोड़े वापसी न हो ताकि फिर-फिर न मरना पड़े। वापसी उसकी नहीं ही शरीर को बचाने के लिए पहनते हो। तुम शरीर को कपड़े होती, जो मरना सीख लेता है। जो इस भांति मर जाता है कि पहनने के लिए बचाए रहते हो। अभी तो शरीर ऐसा लगता है, मरने को फिर कुछ और बचता ही नहीं, तो दुबारा मौत नहीं जैसे गंतव्य है। इसके पार कुछ भी नहीं। होती। तुम भी चाहते हो कि वापसी न हो। क्योंकि वापसी होगी महावीर कहते हैं, शरीर है नाव। अर्थ हुआ, शरीर से पार तो फिर मौत होगी। तुम मौत से डरे हो। जो वस्तुतः वापसी नहीं जाना है। शरीर है नाव। बैठना है, उतरना भी है, शरीर संक्रमण चाहता वह मौत से डरता नहीं, मौत का आलिंगन करता है। है। नाव में बैठने के पहले भी यात्री था। नाव में बैठा है तब भी
आज के सूत्र मौत के संबंध में हैं। ये चरम सूत्र हैं। इन पर है। नाव से उतर जाएगा तब भी होगा। नाव ही यात्री नहीं है। एक-एक सूत्र को बहुत ध्यानपूर्वक समझने की कोशिश करना। तुम शरीर में आए उसके पहले भी थे, अभी भी हो; शरीर से | क्योंकि ये तुम्हारे विपरीत भी हैं।
उतरोगे जिस दिन मौत में, तब भी होओगे। मौत तो दूसरा तुम अगर यहां आए तो जीवन की तलाश में आए हो। लोग किनारा है। जन्म है यह किनारा, मृत्यु है वह किनारा; शरीर है महावीर के पास गए तो जीवन की तलाश में गए थे। जीवन में नाव। और संसार है सागर। हार रहे थे तो तरकीबें खोजने गए थे, कैसे जीत जाएं। लेकिन | लेकिन अधिक लोग संसार को सागर की तरह नहीं देख पाते। सदगुरु तो मृत्यु का सूत्र देता है।
जब तक तुम्हारा शरीर ही नाव नहीं, तो तुम संसार को सागर की उस परम मृत्यु को हमने अलग-अलग नाम दिए हैं। पतंजलि तरह न देख पाओगे। तुम इसी किनारे पर अटके रहते हो। तुम कहते हैं, समाधि। इसीलिए तो जब कोई संन्यासी मरता है तो सागर में उतरते ही नहीं। सागर में तो वही उतरता है जो मृत्यु की उसकी कब्र को हम समाधि कहते हैं। अर्थ हुआ कि उसका | तरफ स्वयं, स्वेच्छा से अग्रसर होने लगा। मृत्यु यानी वह दूसरा ध्यान और उसकी मृत्यु एक ही जगह पहुंच गए। साधारण | किनारा। तुम तो डर के कारण इस किनारे को पकड़कर रुके रहते आदमी मरता है तो उसकी कब्र को हम समाधि नहीं कहते, कब्र हो। तुम तो सब आयोजन करते हो कि किसी तरह यह किनारा न ही कहते हैं; मकबरा कहते हैं। समाधि नहीं कहते क्योंकि यह छूट जाए। तुम तो नाव में होकर भी यात्रा नहीं करते। आदमी अभी फिर-फिर पैदा होगा। अभी समाधि नहीं मिली, इसलिए संसार कभी-कभी तो तुम कहते भी हो, संसारसागर, अभी आखिरी मृत्यु नहीं मिली।
भवसागर। मगर तुम महावीर और बद्ध के वचन उधार ले रहे समाधि का अर्थ है आत्यंतिक मृत्य-आखिरी, चरम। अब हो। बैठे किनारे पर हो, बातें सागर की कर रहे हो। सागर का न कोई जन्म होगा, न मौत होगी। पाठ सीख लिया। यह व्यक्ति तुम्हें कोई पता नहीं। सागर में तो वही उतरता है, जीवन उसी के विद्यालय से वापिस घर की तरफ लौटने लगा। यह घर में लिए सागर बनता है, जिसने पहले शरीर को नाव समझा और जो स्वीकृत हो जाएगा। उत्तीर्ण हुआ। प्रमाणपत्र लेकर जा रहा है। मौत के किनारे की तरफ अग्रसर हुआ।
ये सूत्र तुम्हारे विपरीत होंगे। इसलिए और भी गौर से समझोगे हमने एक नाव जो छोड़ी भी तो डरते-डरते तो ही समझ पाओगे। पहला सूत्र :
इसपे भी ची ब जबीं हो गया दरिया तेरा सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ।
कवि ने कहा है, एक नाव भी, छोटी-सी नाव ही हमने तेरे संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो।।
सागर में छोड़ी थी कि तेरा सागर एकदम नाराज हो गया। 'शरीर है नाव। जीव है नाविक। यह संसार है समुद्र, जिसे | एकदम तूफान उठने लगे, लहरें उठने लगीं, आंधियां, बवंडर महर्षिजन तर जाते हैं।'
| आ गए। शरीर तो हमारे पास भी है लेकिन शरीर नाव नहीं है। 'शरीर | हमने एक नाव जो छोड़ी भी तो डरते-डरते नाव है' का अर्थ होता है, शरीर शरीर से श्रेष्ठतर के लिए साधन कुछ बड़ा किया भी न था। जरा-सी एक नाव छोड़ी थी।
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