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जिन सूत्र भाग: 2 साली
घर आ जाओगे चलते-चलते-चलते।
रोकने का कोई कारण नहीं। मैंने सुना है एक आदमी भागा जा रहा था। राह किनारे बैठे | लेकिन अपने भीतर ठीक से जांच कर लेना। भक्त के लिए तो एक बूढ़े से पूछा कि दिल्ली कितनी दूर है ? सभी लोग दिल्ली | भगवान चुपचाप आ जाता है। अचानक आ जाता है। जा रहे हैं तो वह भी जा रहा होगा। एक बुखार है, दिल्ली चलो। एक दिन चुपचाप अपने आप उस बूढ़े ने कहा, जिस तरफ तुम भागे जा रहे हो, अगर उसी | __ यानी बिन बुलाए तुम चले आए तरफ भागे गए तो बहुत दूर है क्योंकि दिल्ली पीछे छूट गई। मुझे ऐसा लगा, जैसे लगा था रातभर अगर तुम इसी दिशा में भागे चले जाओ तो पहुंचोगे जरूर एक इसकी प्रतीक्षा में कि दोनों हाथ फैलाकर दिन दिल्ली, लेकिन सारी दुनिया का चक्कर लगाकर पहुंचोगे। तुम्हें उल्लास से खींचा हजारों मील की यात्रा है। अगर लौट पड़ो तो दिल्ली बिलकुल सबेरे की किरण-कुसुम को हाथ से सींचा पीछे है। आठ मील पीछे छोड़ आए हो।
एक दिन चुपचाप अपने आप अगर बुद्धि की तरफ से गए तो बड़ी लंबी यात्रा है। पृथ्वी भी यानी बिन बुलाए तुम चले आए इतनी बड़ी नहीं है। क्योंकि बुद्धि के फैलाव का कोई अंत ही नहीं भक्त तो सिर्फ प्रतीक्षा करता है। कहां जाए खोजने? कहां है है। बुद्धि का आकाश बहुत बड़ा है।
परमात्मा या कहां परमात्मा नहीं है? कहां खोजने जाए? या तो मैंने सुना है कि शिव अपने बेटों के साथ खेल रहे | सब जगह है या कहीं नहीं है। कहां खोजने जाए? परमात्मा की हैं-कार्तिकेय और गणेश। और ऐसे ही खेल में उन्होंने कहा कोई दिशा तो नहीं। भक्त सिर्फ प्रतीक्षा करना जानता है। रोता कि तुम मानते हो कि मैं ही यह सारी सृष्टि हूं? तो मेरे भक्त को | है, प्रार्थना करता है, आंसू गिराता है। मेरी परिक्रमा कैसी करनी चाहिए, तुम बताओ। तो कार्तिकेय तो एक दिन चुपचाप अपने आप बड़े बुद्धिमान रहे होंगे, ज्ञानी रहे होंगे। चले सारी सृष्टि का यानी बिन बुलाए तुम चले आए चक्कर लगाने। शिव की परिक्रमा करनी है। और शिव यानी भक्त तो कहता है हम बलाएं भी किस जबान से? किस जबा सारी सृष्टि। सब में व्याप्त परमात्मा। पता नहीं अभी तक लौटे से? किन ओंठों से लें तेरा नाम? ओंठ हमारे झूठे हैं। और भी कि नहीं कार्तिकेय। कहानी कुछ कहती नहीं। गणेश ने उनसे हम और बहुत नाम ले चुके हैं। कैसे पुकारें तुझे? हमारी ज्यादा होशियारी की। वजनी शरीर, हाथी की सूंड! अब इतनी सब पुकार बड़ी छोटी है, क्षीण है। कहां खो जाएगी इस विराट बड़ी पृथ्वी का चक्कर क्या? उन्होंने शिव का चक्कर लगाकर | में, पता भी न चलेगा। जल्दी से वहीं बैठ गए। हो गई! सृष्टि की परिक्रमा हो गई। एक दिन चुपचाप अपने आप अगर शिव ही समाए हैं सारी सृष्टि में तो अब सारी सृष्टि की यानी बिन बुलाए तुम चले आए परिक्रमा क्या करनी! शिव की कर ली तो सारी सृष्टि की हो मझे ऐसा लगा, जैसे लगा था रातभर गई। कार्तिकेय ने सोचा ठीक उलटा। वह भी ठीक है, वह भी इसकी प्रतीक्षा में... तर्क ठीक है। कि जब सारी सृष्टि में समाए हैं तो सारी सृष्टि की __ और भक्त कहता है, वे जो बीत गईं जीवन की घड़ियां, बस जब परिक्रमा होगी तभी तो परिक्रमा हो पाएगी।
एक रात थी, जो प्रतीक्षा में बीत गई। बुद्धि यानी कार्तिकेय। हृदय यानी गणेश। हृदय से तो अभी कि दोनों हाथ फैलाकर घट सकता है। ऐसा एक चक्कर मारा शिव का और बैठ गए कि | तुम्हें उल्लास से खींचा हो गई बात पूरी।
सबेरे की किरण-कुसुम को हाथ से सींचा लेकिन बुद्धि से बहुत लंबी यात्रा है-अनंत काल। जो क्षण भक्त को भगवान मिलता है। भक्त को भगवान स्वयं खोजता में हो जाता है, वह शायद अनंत काल में ही हो पाए। तुम पर है। ज्ञानी सत्य की खोज करता है। भक्त को भगवान खोजता | निर्भर है। किन्हीं-किन्हीं को यात्रा का ही सुख आता है तो उन्हें है। भक्त कहीं जाता-आता नहीं। किन्हीं सीढ़ियों पर यात्रा नहीं
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