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जिन सूत्र भाग: 2
घड़ी में, किसी सौभाग्य की घड़ी में आ जाता है कोई और लट ले जबीं ढूंढ़ती ही रही आस्ताना जाता है।
किए दिल ने हरेक जगह तुझको सिजदे आराम का दामन चाक हुआ
और दिल तो हर जगह तेरी प्रार्थना करता रहा, तेरी पूजा में प्रेम के पहले आदमी आराम से जीता है। प्रेम के बाद फिर | लीन रहा। दिल तो पूजा में डूबा ही है। वहां तो जल ही रहा आराम नहीं। प्रेम के पहले तो आदमी जानता ही नहीं कि पीड़ा दीया। वहां तो धूप उठ ही रही। वहां तो वेदी सजी है। क्या है। प्रेम के बाद ही जानता है कि पीडा क्या है। क्योंकि प्रेम जो बद्धि में बहत बरी तरह खो गा में जलता है, पिघलता है, गलता है, मिटता है।
विचारों के जंगल में, जंजाल में, उनके लिए ज्ञान का रास्ता है। आराम का दामन चाक हुआ
इसलिए जैन शास्त्र अत्यंत बौद्धिक हैं, रूखे हैं। गणित की तसकीन का रिश्ता टूट गया
| तरह हैं। आइंस्टीन की किताब पढ़ो कि जैन शास्त्र पढ़ो, एक से प्रेम के पहले जिंदगी बड़ी धीमी-धीमी चलती है, धीरज से हैं। न्यूटन को पढ़ो कि अरिस्टोटल को पढ़ो कि जैन शास्त्र पढ़ो, चलती है। कहीं कोई दौड़, छलांग नहीं। आदमी सावधानी से एक से हैं। | चलता है। प्रेम के बाद मस्ती पकड़ लेती है। फिर कहां धीरज? | बहुत बार कई जैनों ने मेरे पास आकर कहा है कि कभी आप फिर कहां धैर्य! फिर कैसा आराम।
कुंदकुंद पर बोलें। कई दफे उनकी बात सुनकर मैं भी कुंदकंद की बुद्धि तो बड़ा सोच-विचारकर कहीं झुकती है। हृदय झुका ही किताब उलटाकर देखता हूं, फिर बंद कर देता हूं। बिलकुल हुआ है। अगर इसे तुम ठीक से समझ सको तो ऐसा समझना, रूखा-सूखा है। मैं भी चेष्टा करके कविता उसमें डाल न हृदय तो तुम्हारा अभी भी भक्ति में डूबा हुआ है। तुम्हारा अपने | सकूँगा। बड़ी अड़चन होगी। काव्य है ही नहीं। रसधार बहती हृदय से संबंध छूट गया है। तुम अपनी बुद्धि में समा गए। ही नहीं। सीधा-सीधा गणित का हिसाब है-दो और दो चार। अपनी खोपड़ी में निवास कर लिया है। वहीं रह गए। अटक जैन शास्त्र पैदा ही तब हुए, जब भारत एक बड़ी बौद्धिक क्रांति गए वहीं। उलझ गए वहीं।
से गुजर रहा था। सारा देश बड़े चिंतन में लीन था। सदियों के हृदय तो अब भी प्रार्थना कर रहा है। हृदय तो अभी भी नमाज चिंतन के बाद निष्कर्ष लिए जा रहे थे। ऐसा भारत में ही था ऐसा पढ़ रहा है। हृदय तो अभी भी डूबा है। हृदय का होना ही नहीं, सारी दुनिया में एक महत ऊर्जा उठी थी। भारत में बुद्ध थे, परमात्मा में है।
महावीर थे, मक्खली गोशाल था, अजित केशकंबल था, वे जो बुद्धि में भटक गए हैं और जिनको हृदय का रास्ता नहीं | निगंठनाथपुत्त महावीर थे। यूनान में थेलीस, सुकरात, प्लेटो, मिलता, उनके लिए चौदह गुणस्थान हैं। जिनको हृदय करीब है अरिस्टोटल। ईरान में जरथुस्त्र। चीन में कन्फ्यूसियस,
और जिन्हें कोई अड़चन नहीं, जो सरलता से हृदय में उतर सकते | लाओत्सु, च्वांगत्सु, लीहत्सु।। हैं, उनके लिए कोई गुणस्थान नहीं, कोई भेद-विभाजन नहीं। सारी दुनिया में एक बड़ी तीव्र उत्क्रांति हो रही थी। सब तरफ उनके लिए न कोई शास्त्र है, न कोई साधना है।
हवा गर्म थी। विचार कसे जा रहे थे। विचार, तर्क, चिंतन, जवानी मोहब्बत, वफा नाउम्मीदी
| मनन अपनी आखिरी कसौटी छ रहा था, आखिरी ऊंचाई छ रहा यह है मुख्तसर-सा हमारा फसाना
| था। उस उत्तुंग क्षण में जिन-सूत्र रचे गए। वे उस दिन की पूरी किए दिल ने हरेक जगह तुझको सिजदे
खबर लाते हैं, उस दिन का पूरा वातावरण, उस दिन की परी हवा जबीं ढूंढ़ती ही रही आस्ताना
और मौसम उनमें छिपा हुआ है। बुद्धि ढूंढ़ती ही रही कि कहां है वह जगह, जहां सिर झुकाऊं। | भक्त बड़े और ढंग से जीता है। भक्त का मार्ग स्त्रैण है। जबीं ढूंढ़ती ही रही आस्ताना
इसीलिए जैन तो मानते ही नहीं कि स्त्री का मोक्ष हो सकता है। देहली ढूंढ़ती ही रही कि कहां सिर को रखू, कहां माथा टेकू? उस मानने में बड़ा विचार है। कहां मंदिर? कहां मस्जिद?
एक बात निश्चित है, जैन शास्त्र में स्त्री का मोक्ष नहीं हो
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