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जिन सूत्र भाग: 2
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पड़ी हैं, उनका क्या?
हैं, क्योंकि उनका सूक्ष्म भाव वहां लटका रह जाता है। सदियां तुमने कभी देखा? पानी को बहा दो फर्श पर, धूप आती है, बीत जाती हैं। जब कभी तुम ऐसी जगह जाकर खड़े हो जाओगे, पानी उड़ जाता है लेकिन एक सूखी रेखा रह जाती है। वह जहां कभी कोई संत बैठा था और समाधि को उपलब्ध हुआ था, दिखाई भी नहीं पड़ती। साधारणतः कोई उसको देख भी नहीं तो वह जगह अब भी उस गीत को गुनगुना रही है; तुम्हें चाहे पाएगा, जहां से पानी बहा था। अब वहां पानी बिलकुल नहीं पता भी न चले। लेकिन पता तुम्हें भी चल जाता है। तुम्हें भी है। अब पानी का नाममात्र भी नहीं बचा, लेकिन एक सूखी रेखा कभी-कभी लगता है, किसी स्थान पर बैठकर बड़ी शांति रह गई है। अगर तुम पानी फिर ढालो तो बहुत संभावना है कि मिलती है। किसी स्थान पर बैठकर एकदम तुम अशांत होने उसी सूखी रेखा को पकड़कर पानी बहेगा। क्योंकि वह सूखी लगते हो। किसी वृक्ष के नीचे बैठकर बड़ा अहोभाव पैदा होता रेखा सुगम होगी।
है। किसी घर में जाते ही कुछ भय लगता है। किसी घर में तुम कर्म सूखी रेखाएं हैं। जहां तुमने बहुत-बहुत कर्म किए थे, | कभी गए भी नहीं, बाहर से ही निकलते हो, लेकिन मालूम होता क्रोध बहुत बार किया था, क्रोध तो छोड़ दिया, क्रोध का फर्निचर है कोई बुला रहा, निमंत्रण है-आओ। कोई तुम्हें पाहुना बनाना तो बाहर फेंक दिया; लोभ बहुत बार किया, लोभ भी छोड़ चाहता है। कोई कहता है, पधारो जी। कोई कह नहीं रहा, दिया, लेकिन अनंत कालों में अनंत लोभ के जो परिणाम हुए थे, | लेकिन घर की स्थिति, घर के सूक्ष्म कंपन...।
और तुम्हारी जीवनधारा से जो लोभ बहा था, उसकी सूखी रेखाएं तो महावीर कहते हैं, दसवीं स्थिति है : सूक्ष्मसाम्पराय। अति रह गई हैं। वे तुम्हें दिखाई भी नहीं पड़तीं। वे नौवीं अवस्था में | सूक्ष्म। दिखाई नहीं पड़ेंगे; अदृश्य लेखन हैं। वे नौवें को ही
पहुंचे व्यक्ति को ही दिखाई पड़नी शुरू होती हैं। वे इतनी सूक्ष्म | दिखाई पड़ेंगे, जो इस अवस्था में आ गया है, जहां अब सब | हैं, हैं ही नहीं, लेकिन हैं।
समान है। सब विशेषण गिर गए, सब रूप-रंग-आकृतियां गिर जैसे तुम्हारा कमरा खाली कर दिया, पड़ोसी का भी कमरा गईं, उसी को दिखाई पड़ेगा। जन्मों-जन्मों में जो-जो किया गया खाली कर दिया, लेकिन फिर भी तुम्हारे कमरे में एक खास बात | है उसकी सूक्ष्म तरंगें भीतर शेष रह गई हैं। होगी, जो पड़ोसी के कमरे में न होगी। तुम इतने दिन तक इस जहां सब कषायें क्षीण हो जाने पर भी लोभ या राग की कोई कमरे में रहे, तुम्हारी बास इस कमरे में होगी। तुम्हारा होने का | सूक्ष्म छाया शेष रहती है। ढंग इस कमरे में होगा। तुम्हारी उपस्थिति इस कमरे में होगी। ग्यारहवीं अवस्था है: उपशांतमोह। साधक की ग्यारहवीं तुम इतने दिन तक इस कमरे में रहे, तुम्हारी आदतें, तुम्हारे भूमि, जिसमें कषायों का उपशमन हो जाने से वह कुछ काल के मनोवेग, तुम्हारी वासनाएं इस कमरे में उठीं और फैलीं, वे इस लिए अत्यंत शांत हो जाता है। कमरे में होंगी।
ऐसी अवस्था—जैन शास्त्रों में जो उदाहरण दिया जाता है वह तुमने अगर इस कमरे में किसी की हत्या कर दी थी तो उस | ठीक है-ऐसी है, जैसे कि किसी नदी से, छोटे झरने से हत्या की घटना इस कमरे पर बड़ी स्पष्ट रूप से लिखी है। बैलगाड़ियां गुजर गईं। उनके गुजरने से जमीन में जमी मिट्टी, अदृश्य है लिखावट, कोई उसे पढ़ न पाएगा, लेकिन लिखी है। कूड़ा-कर्कट, सूखे पत्ते, सब ऊपर उठ आये। झरना गंदा हो जिस कमरे में किसी की हत्या हुई हो, उस कमरे में तुम अगर | गया। फिर बैलगाड़ियां चली गईं दूर, धीरे-धीरे पत्ते फिर बैठ जाकर सोओगे तो रात ठीक से सो न पाओगे। वर्षों पहले हुई गए, धूल फिर बैठ गई तलहटी में, झरना फिर स्वच्छ और साफ होगी हत्या, लेकिन कोई चीख-पुकार अभी भी दीवाल की कणों | हो गया। से लटकी रह गई है। कोई सूक्ष्म भाव अभी भी भटकता रह गया | तो ऊपर तो बिलकुल स्वच्छ और साफ हो गया है। पी लो, है। उसी को तो हम प्रेतात्मा कहते हैं। कोई सूक्ष्म भाव लटका इतना स्वच्छ है। लेकिन अगर जरा हिलाया तो नीचे पर जो बैठी रह गया है।
धूल है, वह फिर उठ आएगी। कूड़ा-कर्कट बैठा है नीचे। इसलिए जहां संत बैठे हैं, जहां संत चले हैं वहां तीर्थ बन जाते | सम्हालकर चुल्लू भरना, अन्यथा फिर उठ आएगा।
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