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REPANA
चौदह गणस्थान
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छोड़कर, पुरानी खोल को छोड़कर। यहां से अव्यक्तिगत जीवन | है, अपना रेडियो है, अपनी पसंद का फर्निचर है, अपने ढंग के शुरू होता है। यहां से तुम्हारा कोई भेद किसी से नहीं रह जाता। पर्दे हैं। न तुम स्त्री, न तुम पुरुष; न तुम गोरे, न तुम काले; न तुम सुंदर, फिर तुम दोनों ऐसा करो कि धीरे-धीरे चीजों को बाहर न तुम असुंदर; न तुम महत्वपूर्ण, न तुम महत्वहीन। इस निकालते जाओ। जब कमरे दोनों खाली हो जाएंगे तो बड़े समान अवस्था में सभी समान हो जाते हैं।
हो जाएंगे। क्योंकि भेद पर्दे का था। पर्दे अलग हो गए। भेद और ध्यान रखना, यह अभी केवल नौवीं अवस्था है। नौवीं कुर्सी-टेबल का था, कुर्सी-टेबल अलग हो गई। भेद चित्रों का अवस्था में व्यक्ति को समता के बोध का जन्म होता है। तब वह था, चित्र दीवाल से अलग हो गए। भेद रेडियो-टेलिविजन का सबमें एक का ही वास देखता है। उनमें भी जो सोए हैं, वह उस था, वे भी अलग हो गए। अब दोनों कमरे खाली रह गए, काफी एक को ही देखना शुरू कर देता है, जो उसके भीतर जग गया एक जैसे हो गए। क्योंकि दोनों कमरे केवल कमरे रह गए। है। अब फर्क सोने और जगने का होगा, लेकिन अब और कोई दोनों के भीतर शुद्धता है, शून्यता है। दोनों में अवकाश है। फर्क नहीं है। इस घड़ी में न तो साधु जैन रह जाता है, न हिंदू, न जैसे-जैसे चीजें खाली होती हैं तुम्हारे भीतर से, वैसे-वैसे मुसलमान। रह ही नहीं सकता। इस घड़ी में न तो अवकाश, आकाश उपलब्ध होता है। आकाश समान है। मंदिर-मस्जिद में कोई फर्क रह जाता, न गुरुद्वारा में, गिरजाघर में भराव के कारण भेद है। एक किताब कुरान है, एक किताब कोई फर्क रह जाता। इस घड़ी में जिन्होंने भी जाना है वे सभी एक | बाइबल है। दोनों में से स्याही के अक्षर छांटकर बाहर निकाल ही वक्तव्य को देते मालूम पड़ते हैं। भाषा होगी अलग, कथन लो, कोरे कागज रह गए। फिर फर्क करना मुश्किल हो जाएगा, अलग नहीं। कथ्य होगा अलग, कथन अलग नहीं। कथा होगी कौन कुरान है और कौन बाइबल है। कोरी किताबें बस कोरी भिन्न-भिन्न, लेकिन जो कहा जा रहा है वह एक ही है। किताबें हैं। कौन कुरान, कौन बाइबल?
नौवीं अवस्था में व्यक्ति धर्मों के विशेषणों के पार हो जाता है। सूफियों की एक बड़ी प्रसिद्ध किताब है, जिसमें कुछ भी लिखा देह की भिन्नता के पार हो जाता है, मन की विशिष्टताओं के पार हुआ नहीं है। उसको वे कहते हैं, 'द बुक आफ द बुक।' हो जाता है। सामान्य का जन्म होता है, या सार्वलौकिक। किताबों की किताब। खाली है। सूफी फकीर उसको खूब पढ़ते
साधक की नवम भूमि, जिसमें समान समवर्ती सभी साधकों हैं, वही पढ़ने जैसी है। उसमें कुछ लिखा नहीं है। सूफी फकीर के परिणाम समान हो जाते हैं और प्रतिसमय उत्तरोत्तर अनंतगुनी बैठ जाते हैं, सुबह से खाली किताब खोलकर पढ़ने लगते हैं। विशुद्धता को प्राप्त होते हैं। और इसी क्षण से विशुद्धता बढ़नी चेष्टा यह है कि इसी खाली किताब जैसे खाली हो जाएं। शुरू होती है।
महावीर जिसको नौवीं भूमि कहते हैं, वही है 'द बुक आफ द समता के बाद है विशुद्धता।
बुक'। वही है किताबों की किताब। वहां साधक शून्यता को इसलिए जो अभी कह रहा हो कि मैं जैन मुनि हूं, वह अभी उपलब्ध होता है। कहीं भटक रहा है विशेषण में। जो कहता हो मैं हिंदू संन्यासी हूं, दसवां गुणस्थान ः सूक्ष्मसाम्पराय। जहां सब कषाय क्षीण हो वह अभी कहीं भटक रहा है विशेषण में। जो कहता हो मैं ईसाई जाने पर भी लोभ या राग की कोई सूक्ष्म छाया शेष रहती है। हूं, वह भटक रहा कहीं विशेषण में।
अब यह जरा समझने जैसा है। नौवें पर सब शून्य हो गया। विशेषण छट जाते हैं। क्योंकि भीतर जिसका अनभव होता है | दसवें में महावीर कहते हैं, जहां सब कषायें क्षीण हो गईं, फिर भी वह बिलकुल एक-रस है। इसीलिए शुद्धता बढ़ती है। | राग की कोई सूक्ष्म छाया शेष रहती है।
ऐसा समझो कि तुम्हारा कमरा है, बैठकघर है तुम्हारा, तुम्हारा | तुम्हारे कमरे तो समान हो गए, लेकिन तुम्हारे तलघरों का फर्निचर है, दीवाल पर तुम्हारी तस्वीरें हैं, तुम्हारी घड़ी है, तुम्हारा | क्या? तुम्हारा चेतन मन तो बिलकुल समान हो गया। जहां तक फूलदान है, तुम्हारा रेडियो-टेलीविजन है। फिर किसी दूसरे का, | | तुम्हारा बोध जाता है वहां तक तो सब समान हो गया, लेकिन पड़ोसी का बैठकघर है, उसकी अपनी तस्वीरें हैं, अपना फूलदान अनंत-अनंत जन्मों में जो कर्मों की सूक्ष्म रेखाएं तुम्हारे भीतर
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