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जिन सूत्र भागः 2
जबर्दस्ती की, यह तो हिंसा हो गयी। यह तो प्रेम के बहाने हिंसा राष्ट्रपति हो गया, तो यह अहंकार की ही यात्रा हुई प्रेम के द्वारा। हो गयी।
यह प्रेम नहीं। यह प्रेम के पीछे महत्वाकांक्षा का रोग है। प्रेम तो प्रेम तो रत्ती-रत्ती संभलकर चलता है, इंच-इंच संभलकर कुछ भी नहीं मांगता, देता है।। चलता है। प्रेम तो देखता है कि दूसरा कितने दूर तक चलने को पत्नी कहती है, मैं तुम्हें प्रेम करती हूं। पति कहता है, मैं तुम्हें राजी है, उससे इंचभर ज्यादा नहीं चलता। क्योंकि प्रेम का अर्थ प्रेम करता हूं। और जैसे-जैसे प्रेम के जाल में दूसरा फंसता है, ही है कि तुम्हें दूसरे का खयाल आया। दूसरे का मूल्य! दूसरा पता चलता है कि यह तो फांसी हो गयी। पत्नी स्वतंत्रता मार साध्य है, साधन नहीं! तुम गले लगना चाहते हो; दूसरा लगना डालती है पति की बिलकुल। हिलने-डुलने योग्य भी नहीं रहने चाहता है या नहीं? दूसरे को देखकर कदम उठाना। और देती-पंगु कर देती है। पक्षाघात! पति पत्नी की स्वतंत्रता मार धीरे-धीरे कदम उठाना, अन्यथा दूसरा घबड़ा ही जाएगा। तब डालता है। दोनों एक-दूसरे के गुलाम हो जाते हैं। तुम्हारा प्रेम आक्रमण जैसा मालूम पड़ेगा। तुमने दूसरे की चिंता प्रेम गुलामी देता है? प्रेम स्वतंत्रता देता है। प्रेम स्वतंत्रता में ही न की। तुम इतनी देर भी न रुके कि पूछ तो लेते कि मैं पास सहारा देता है। प्रेम चाहता है, तुम्हें जो सुखद हो, करो। यह प्रेम आता हूं, आ जाऊं?
| नहीं है, कुछ और है। यह प्रेम के नाम पर दूसरे पर मालकियत प्रेम सदा द्वार पर दस्तक देता है। पूछता है, क्या भीतर आ| करने का सुख है। यह हिंसा है। दूसरे को वस्तु बन सकता हूं? अगर इनकार आये, तो प्रतीक्षा करता है, नाराज नहीं परिग्रह बना लेना हिंसा है। हो जाता। क्योंकि यह दूसरे की स्वतंत्रता है। दूसरे का स्वत्व है, पति-पत्नी निरंतर कलह में लगे रहते हैं। कलह क्या है? अधिकार है कि वह कब तुम्हारे गले लगे, कब न लगे। तुम्हें प्रेम कलह यही है कि कौन किस पर मालकियत करके दिखा दे! का अवरतण हुआ है, उसे तो नहीं हुआ। तुम्हारे भीतर प्रेम कौन छोटा है, कौन बड़ा है? फैलना शुरू हुआ है, उसे तो तुम्हारे प्रेम का कोई पता नहीं। और जीवनभर संघर्ष चलता है पति-पत्नी में। संघर्ष एक ही बात वह दूसरा व्यक्ति तो प्रेम के नाम पर इतने धोखे खा चुका है कि का है कि मालिक कौन है? ऐसे पत्नी क उसे क्या पता कि फिर कोई नया धोखा नहीं पैदा हो रहा है। प्रेम पर यह शब्द ही है, ऐसा स्वीकार नहीं करती। ऐसा दासी कहकर के नाम पर ही लोगों को सताया गया है, इसलिए लोग सकुच भी पैर पकड़ने से शुरू करती है, गर्दन पर समाप्त करती है। गये हैं। मां ने किया प्रेम, बाप ने किया प्रेम, भाई ने किया प्रेम, आखिर में गर्दन दबा लेती है। पत्नी ने किया प्रेम, मित्रों ने किया प्रेम, और सबने प्रेम के नाम प्रेम से इतने कांटे चुभे हैं लोगों को, और प्रेम के नाम पर पर चूसा, और सबने प्रेम के नाम पर तुम्हारी छाती पर पत्थर इतना-इतना दुख लोगों ने पाया है कि जब भी तुम कहोगे कि मुझे रखे। बहाना प्रेम था, काम कुछ और लिया। जिसने भी कहा, तुमसे प्रेम हो गया है और हाथ फैलाओगे, दूसरा सकुचा जाए, मुझे तुमसे प्रेम है, उसी से तुम डरने लगे। क्योंकि अब कुछ और आश्चर्य नहीं है। दूसरे का ध्यान रखना। और एक खयाल होगा! इस प्रेम के पीछे छिपा हुआ कोई न कोई रोग होगा। रखना कि प्रेम जब भी आक्रामक होता है, तो दूसरे को घबड़ा | रोगी आदमी के प्रेम में भी रोग होता है। स्वाभाविक है। कुछ देता है। प्रेम में आक्रमण होना ही नहीं चाहिए। आक्रमण होते
और होता है! बाप अपने बेटे से कहता है कि तू देख, ही प्रेम में हिंसा समाविष्ट हो जाती है। अब राह चलते किसी पढ़-लिख, बड़ा बन, प्रतिष्ठित हो। तुझसे मेरा प्रेम है इसलिए अजनबी को तुम जबर्दस्ती गले लगाकर आलिंगन कर लो, तो यह कह रहा हूं। लेकिन बेटा अगर अप्रतिष्ठित हो जाए, बड़े वह पुलिस-थाने में खबर करेगा कि यह आदमी पागल है। कुछ पदों पर न पहुंचे, तो प्रेम खो जाता है। तो प्रतिष्ठा से प्रेम होगा, लेना-देना नहीं है मुझसे! बेटे से कहां प्रेम है! महत्वाकांक्षा से प्रेम होगा; शायद, मेरा तुम्हारे भीतर प्रेम का अवतरण हुआ है, लेकिन जब तुम दूसरे बेटा है, खूब प्रशंसा पाये, इससे प्रेम होगा, क्योंकि इसके बहाने को आलिंगन करते हो तो दूसरा भी समाविष्ट हुआ। तुम अकेले मेरा अहंकार भी तृप्त होगा। मेरा बेटा प्रधानमंत्री हो गया, न रहे। हां, तुम एकांत अपने कमरे में बैठकर प्रेम के गीत
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