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aur ध्यान है आत्मरमण
इतना ले लेना कि भीतर कोई भी आकांक्षा शेष न रह जाए। कहीं व्यक्ति हमारे पास से गुजरता है, तो उसकी दमक, उसकी प्रभा, कोने-कातर में मन के, किसी रस को दबा मत रहने देना, उभाड़ उसकी शांति का वायुमंडल हमें लोभ से भर देता है। हम कहते लेना; पूरा उभाड़ लेना। हां, इतना ही खयाल रखना कि रस हैं, काश, ऐसा आनंद हमारा होता! ऐसा आनंद कैसे हमारा हो बोधपूर्वक लेना, जागे लेना।
जाए? कैसे डुबकी लगे इसी सागर में, जिसमें तुम डूबे? रस तो बहुत लोग लेते हैं। जो सोए-सोए लेते हैं, वे रस से तो हम महावीर और बुद्ध के वचनों को पकड़ने लगते हैं। कोई निष्पत्ति नहीं निकाल पाते। उनके जीवन में अनुभवों का ढेर हमने उनका गीत तो सुना, लेकिन किस पीड़ा से वे इस गीत को तो लग जाता है, निचोड़ नहीं होता। अनुभव में दब जाते हैं, उपलब्ध हुए, उसकी हमें कोई खबर नहीं है। अनुभव में खो जाते हैं, लेकिन अनुभव से कुछ जीवन-सत्य के | अश्कों में जो पाया है वो गीतों में दिया है मणि-माणिक्य नहीं खोजकर ला पाते।
इस पर भी सुना है कि जमाने को गिला है अनुभव अगर सोए-सोए किया गया तो किया ही नहीं गया। जो तार से निकली वो धुन सबने सुनी है उससे कुछ सार न होगा। अगर जागकर किया गया तो अनुभव जो साज पे गजरी है वो किसको पता है तुम्हारे लिए शिक्षण दे जाएगा, कुछ पाठ सिखा जाएगा। वही जो साज पे गुजरी है वो किसको पता है पाठ जीवन की संपदा है। वही पाठ वेद है, वही कुरान है, वही जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है धम्मपद है। जिन्होंने जीवन के अनभव को जाग-जागकर देखा, जब तम महावीर या बद्ध या कष्ण या क्राइस्ट के जाग-जागकर भोगा, उनके हाथ में कोई ज्योति आ गई। जो तो जो धुन निकल रही है वह तो सुनाई पड़ती है, जो गीत पैदा हो व्यर्थ था, वह व्यर्थ दिखाई पड़ गया, जो सार्थक था, वह सार्थक | रहा है वह तो सुनाई पड़ता है, लेकिन किन पीड़ाओं से इस गीत दिखाई पड़ गया।
| का निखार हुआ है, किन पर्वत-खंडों को तोड़कर यह झरना बहा जैसे प्रकाश पैदा हो जाए तो कमरे में क्या है, सब साफ हो है; किन आंसुओं ने इन गीतों में धुन भरी है; किस कंटकाकीर्ण जाता है। कहां कचरा पड़ा है कोने में, वह भी पता चल जाता मार्ग पर गुजरकर मंदिर के ये स्वर्ण-कलश दिखाई पड़े हैं, है। कहां तिजोडी है, हीरे-जवाहरात रखे हैं, वह भी पता चल उसका तो हमें कछ भी पता नहीं चलता। गीत से ह जाता है। अगर तुम कमरे में सोए हो अंधेरे, तो भी तिजोड़ी है, | जाते हैं। धुन हमें बांध लेती है। हम पूछने लगते हैं, हम क्या कचरा भी पड़ा है, लेकिन तुम्हें कुछ पता नहीं चलता। | करें? कैसे तुम्हें हुआ, कैसे हमें भी हो जाए?
और जब तक तुम्हें तिजोड़ी न दिखाई पड़े, तब तक कचरा तो अगर हम महावीर का अनुकरण करने लगे, बड़े धोखे में कचरा है, यह भी पता नहीं चल सकता। जीवन में सार्थकता की पड़ जाएंगे। हम महावीर जैसा वेष रख सकते हैं। अगर वे थोड़ी प्रतीति हो तो क्या-क्या निस्सार है, वह अपने आप साफ निग्रंथ हैं, नग्न हैं, तो हम नग्न हो सकते हैं, दिगंबर हैं, दिगंबर हो जाता है। कांटों का बोध हो जाए तो फलों का बोध हो जाता | हो सकते हैं। कैसे उठते हैं. कैसे बैठते हैं. कैसे चलते हैं. हम भी है। फूलों का बोध हो जाए तो कांटों का बोध हो जाता है। ठीक वैसा ही अभ्यास कर सकते हैं।
जागकर जीवन के सारे अनुभव जिसने लिए, अधैर्य न किया, लेकिन तुम पाओगे कि जो धुन उनके भीतर पैदा हुई थी वह जल्दबाजी न की, लोभ न किया, यह न कहा कि चलो, तुम्हारे भीतर पैदा न हुई। क्योंकि मौलिक चीज खो रही है; जड़ ऋषि-महर्षि तो कहते हैं, कि छोड़ो संसार ! ऋषि-महर्षि ठीक ही नहीं है। तुम्हारे जीवन के अनुभव का निचोड़ नहीं है। महावीर कहते हैं लेकिन वे अपने अनुभव से कहते हैं। उन्होंने संसार का को तुमने ऊपर से ओढ़ लिया। वे तुम्हारे प्राण में विकसित हए दुख भोगा, उन्होंने संसार की पीड़ा झेली। उनकी पीड़ा को जब फूल नहीं हैं। तक तुम न झेलोगे, तब तक उनकी निष्पत्तियां तुम्हारी निष्पत्तियां | यही तो दुर्भाग्य है जैन मुनियों का। यही दुर्भाग्य है बौद्ध नहीं हो सकतीं।
भिक्षुओं का। यही दुर्भाग्य है ईसाई साधु-संतों का। जिससे वे हम तो लोभ से भर जाते हैं। जब बुद्ध या महावीर जैसा कोई प्रभावित हुए थे, ठीक ही प्रभावित हुए थे। आश्चर्य नहीं है कि
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