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छह पथिक और छह लेश्याएं
कटी-कटी, टूटी-टूटी। जैसे जीते भी वह मुर्दे की तरह ही ढोता कोंपल पेड़ों पर पायल नई बजाती है रहा अपनी लाश को। कभी जीया नहीं नाचकर। कभी उसके लेकिन कृष्ण लेश्या में दबे हुए आदमी के जीवन में ऐसा कभी जीवन में वसंत नहीं आया। कभी नई कोंपलें नहीं फूटीं। पुराना नहीं होता। वसंत आता ही नहीं। कोयल कूकती ही नहीं। ही होता रहा। जन्म के बाद बस मरता ही रहा।
कोपलें पायल नहीं बजातीं। ऐसा आदमी नाममात्र को जीता काला पर्दा पड़ा हो आदमी के चित्त पर तो जीवन संभव भी है—मिनिमम। श्वास लेता है कहना चाहिए, जीता है कहना नहीं है। जीवन की किरण हृदय तक पहुंच पाए, इसके लिए ठीक नहीं। गुजार देता है कहना चाहिए। खुले द्वार चाहिए। और जीवन का उल्लास तुम्हें भी उल्लसित अगर तुम नाचे नहीं, गाए नहीं, गुनगुनाए नहीं, अगर आनंद कर सके और जीवन का नृत्य तुम्हें भी छू पाए इसके लिए बीच में का उत्सव तुम्हारे ऊपर नहीं बरसा तो कहीं चूक हो रही है। कृष्ण कोई भी पर्दा नहीं चाहिए। बेपर्दा होना है।
लेश्या को पहचानना। जिन अंतर्शत्रुओं की सारे शास्त्रों में चर्चा तम जब बिलकल नग्न, खले आकाश को अपने भीतर है, वे सभी कष्ण लेश्या को मजबत करते हैं। निमंत्रण देते हो, तभी परमात्मा भी तुम्हारे भीतर आता है। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक टैक्सी में बैठा हुआ पहाड़
इसका होश रखो। तुम दूसरे की हानि नहीं करते हो, हानि तो से नीचे उतर रहा था। ढलान से उतरते हुए अचानक टैक्सी का अंततः तुम्हारी है। तुम अगर किसी को मार भी डालो तो उसका ब्रेक खराब हो गया और गाड़ी अत्यंत वेग से दौड़ने लगी। तो कुछ भी नहीं बिगड़ता है। क्योंकि यहां जीवन का तो कोई नियंत्रण के बाहर हो गई गाड़ी। अंत नहीं है। ज्यादा से ज्यादा पुराना शरीर चला गया, नया मिल ड्राइवर घबड़ाया और उसने पूछा कि बड़े मियां, गाड़ी का ब्रेक जाएगा। जीवन की यात्रा तो अनंत है। तुम मारकर भी किसी की फेल हो गया। अब मैं क्या करूं? मुल्ला ने कहा, सबसे पहले कोई हानि नहीं कर पाते हो। लेकिन बिना मारे भी अगर मारने मीटर बंद करो। फिर जो चाहे करना। का विचार उठा तो तुमने अपनी बड़ी हानि कर ली। __ एक आदमी है, जिसका चित्त सदा लोभ में लगा हुआ है। महावीर कहते हैं, हर हत्या आत्यंतिक अर्थों में आत्महत्या है। कहते हैं मुल्ला को एक दफा डाकुओं ने पकड़ लिया। छाती पर दूसरे को कौन कब मार पाया? अपने को ही आदमी मारता बंदूक लगा दी और कहा कि दे दो, जो भी तुम्हारे पास है। अगर रहता है। मारते रहने का अर्थ हुआः जी नहीं पता। जीने के मार्ग नहीं दिया तो मरने के लिए तैयार हो जाओ। मुल्ला ने कहा, जरा में इतनी बाधाएं खड़ी कर लेता है...और हम सबको इसका पता सोचने भी तो दो। देर लगती देखकर डाकू बोले, जल्दी करो। भी चलता है। यह कोई दर्शनशास्त्र नहीं है, जो महावीर कह रहे सोचना क्या है? या मरने को तैयार हो जाओ, या तुम्हारे पास है हैं। ये जीवन के सीधे-सीधे गणित हैं। यह तुम्हें भी पता चलता जो, दे दो। मुल्ला ने कहा, तो फिर मार ही डालो क्योंकि जो मैंने है कि तुम जितने क्रोधी हो, उतने कम जी पाते हो। क्रोध जीने दे इकट्ठा किया है वह बुढ़ापे के लिए इकट्ठा किया है। तुम मार ही तब न! तुम जितने हिंसक हो उतना ही जीना मुश्किल हो जाता डालो। इस धन के बिना मैं जी ना सकूँगा। इस धन के बिना है। हिंसा के साथ जीवन की प्रफुल्लता घटे कैसे? तुम जितने मरना बेहतर है। ज्यादा लोभी हो, उतने ही सिकुड़ते जाते हो; फैल नहीं पाते। ऐसी अतिशयोक्ति तो कम घटती है। तुम सोचोगे, अगर फैलाव के लिए थोड़ी दान की क्षमता चाहिए। फैलाव के लिए तुम्हारी छाती पर कोई बंदूक लगा दे तो तुम तो ऐसा न करोगे। देने की हिम्मत चाहिए, बांटने का साहस चाहिए। तुम कृपण की | तुम कहोगे कि ले जा, जो ले जाना है। मुझे छोड़ दे। लेकिन भांति इकट्ठा करते चले जाते हो। तिजोड़ी तुम्हारी भरती चली | छोटी-छोटी मात्रा में रोज तुम यही कर रहे हो, जो मुल्ला ने जाती है, तुम तो खाली के खाली रह जाते हो।
इकट्ठा किया है। जब भी धन और जीवन में चुनाव होता है, तुम आता है इक रोज मधुवन में जब वसंत
धन चुनते हो, जीवन नहीं चुनते। इसलिए मुल्ला की कहानी को तृण-तृण हंस उठता, कली-कली खिल जाती है
अतिशयोक्ति मत समझना। अगर दस रुपये बचते हों, थोड़ा कोयल के स्वर में भर जाती है नई कक
जीवन खोता हो तो तम दस रुपये बचाते हो। शायद भीतर एक
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