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जिन सूत्र भाग : 2
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पहली—विरोध की।
और उस तरफ से कुछ भी उत्तर नहीं आता, कोई प्रतिक्रिया नहीं शुभ लक्षण है कि पहली सीढ़ी पर तो चढ़े। उपेक्षा तो नहीं है। होती। तो कहीं ऐसा तो नहीं है...उसे संदेह पैदा होना शुरू होता उपेक्षा खतरनाक है। मेरे पास वे लोग कभी न आ पाएंगे, है। अपने पर संदेह होना शुरू होता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि जिनकी मेरी तरफ उपेक्षा है। अगर विरोध कर रहे हैं तो चल हम व्यर्थ ही विरोध कर रहे हैं या हमारा विरोध गलत है! पड़े। कहां जाएंगे। रस लेने लगे। मेरी तरफ ध्यान उनका पड़ने यह सीढ़ी आदमी खुद ही पार कर सकता है। दूसरे जबर्दस्ती लगा। मित्रता बनने लगी। तुम फिन छोड़ो।
किसी को चढ़ा नहीं सकते। वह दूसरे पर खड़ा हो जाता है। अब तुम उन्हें विरोध करने दो। विरोध का मतलब ही इतना है कि उसकी जिज्ञासा उठनी शुरू होती है। कुतूहल पैदा होता है कि उन्हें मुझमें खतरा दिखाई पड़ने लगा। विरोध का मतलब ही जाएं, जरा पास से देखें, मामला क्या है! हमारा विरोध सही है | इतना है कि उन्हें मुझमें आकर्षण मालूम होने लगा। अन्यथा या गलत है ?
कौन किसका विरोध करता है? क्या लेना-देना है ? विरोध हम | अपने पर संदेह आ गया तो मुझ पर श्रद्धा की तरफ एक कदम उसी का करते हैं, जहां खतरा है, जहां बुलावा है। जहां लगता है और उठा। मुझ पर श्रद्धा आने के पहले अपने पर संदेह आना कि अगर विरोध नहीं किया तो खिंचे चले जाएंगे।
जरूरी है। इसलिए तो मैं कहता हूं, मेरी तरफ उन्मुख होने के तो रुक रहे हैं। रुकने के लिए विरोध कर रहे हैं। विरोध वे मेरा लिए अपने से विमुख होना जरूरी है। नहीं कर रहे हैं। अपने आकर्षण के लिए बाधा खड़ी करने के अब यह दूसरी सीढ़ी में लोग...काफी लोग हैं। तुम उनको लिए कर रहे हैं। शुभ लक्षण है। इससे चिंतित होने की कोई भी अभी खींचने की कोशिश मत करना, अन्यथा वे फिर पहली जरूरत नहीं है।
सीढ़ी पर उतर जाएंगे। अगर तुमने खींचा तो उन्हें फिर अपने पर मेरे पास कभी-कभी संन्यासी आ जाते हैं। वे कहते हैं, फलां भरोसा आ जाएगा कि अरे, हम भी कहां जाल में फंसे जाते थे! आदमी आपका बड़ा विरोध करता है, जाएं, उसे समझाएं? मैंने वे फिर पहली सीढ़ी पर खड़े होकर विरोध करने लगेंगे। तम कहा, पागल हुए हो? किसी तरह वह उत्सुक हुआ, अब तुम फिक्र ही मत करना। उसे समझाने जा रहे हो। बामुश्किल तो उत्सुक हुआ है मुझमें मेरे संन्यासी को तो ऐसे जीना चाहिए जैसे संसार में कोई और
और तुम अब समझाने की कोशिश कर रहे हो? ये चाहते हैं कि है ही नहीं। मैं हूं और तुम हो। मेरे और तुम्हारे बीच संसार है। समझा-बुझा दें, विरोध न करे। विरोध न करे तो वह मुझसे टूट तुम विस्मरण कर दो इस सब को कि कौन क्या कह रहा है. कौन गया। जुड़ गया, तुम फिक्र मत करो। उसका विरोध ही उसे आना चाह रहा है, कौन उत्सुक हुआ, कौन विरोध कर रहा है। खींच लाएगा।
यह तो चलता ही रहेगा। कुछ लोग पहली सीढ़ी पर रहेंगे, कुछ विरोध भी मित्रता का एक ढंग है। विरोध भी आकर्षण का एक लोग दूसरी सीढ़ी पर रहेंगे। रूप है। जब विरोध धीरे-धीरे, धीरे-धीरे करते-करते व्यर्थ हो तुम जब कोई ध्यान ही न दोगे, तब उन्हें और भी हैरानी होगी। जाता है...क्योंकि विरोध से कुछ भी मिलता तो नहीं। कब तक | तब उन्हें तुम पर भी कुतूहल पैदा होगा। मेरी तो बात ही उनके खींचोगे? आदमी आकाश पर कब तक थूकता रहेगा? क्योंकि मन से दूर रहेगी, तुम भी कुतूहल जगाने लगे। वे तुममें भी सब थूका हुआ अपने ही चेहरे पर वापस पड़ जाता है। इसमें उत्सुक हो जाएंगे। और जब वे तुममें उत्सुक होंगे तभी उनके सार क्या है? आज नहीं कल दिखाई पड़ेगा, यह मैं क्या कर रहा आने का रास्ता बनता है। हूं? इसमें कुछ सार नहीं। व्यर्थ भौंक रहा हूं। व्यर्थ तो पहली सीढ़ी: विरोध की। दूसरी सीढ़ी : जिज्ञासा की, चीख-चिल्ला रहा हूं।
कुतूहल की। और तीसरी सीढ़ी : श्रद्धा की। मेरी तरफ से न तो कोई उत्तर है, न समझाने की कोई कोशिश | | जिसने विरोध किया वह मेरे लिए श्रद्धा की तरफ चल पड़ा। है। तो वह आदमी धीरे-धीरे दूसरी सीढ़ी पर चढ़ता है। तब वह उसे पता न हो—मैं प्रसन्न होता हूं कि चलो, विरोध तो किया। उत्सुक होता है कि मामला क्या है? हम विरोध किए जा रहे हैं अब जल्दी कुतूहल भी होगा, उत्सुकता जगेगी। फिर कभी श्रद्धा
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