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चौदह गणस्थान
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हुआ। सत्य तुमसे बड़ा है। तुम सत्य से बड़े होने की चेष्टा दूसरी सीढ़ी पर कदम केवल उन्हीं का बढ़ता है, जो अपने मैं को करोगे, मिथ्यात्व होगा।
| सत्य और असत्य का निर्णायक सूत्र नहीं बनाते। जो कहते हैं, मैं इसलिए महावीर कहते हैं, साधक का पहला कदम और पहला | निर्णायक नहीं हूं। पड़ाव, जहां हम सब हैं, यहां से शुरू होता है। यात्रा शुरू भी हो सत्य है तो है। चाहे मेरा दुश्मन ही घोषणा कर रहा हो। सत्य सकती है, ना भी हो। अगर हम यही जोर दिए चले जाएं कि मेरे | है तो है। और चाहे मैं ही घोषणा करूं. अगर असत्य है तो पक्षपात सही हैं, मेरी धारणाएं सही हैं, मेरे शास्त्र सही हैं, मेरे असत्य है। मेरी घोषणा से असत्य सत्य नहीं होता। तीर्थंकर सही हैं, मेरे अवतार सही हैं, मेरे गुरु सही हैं; और | पहला गुणस्थान : मिथ्यात्व। यहां सारा संसार इसी गुणस्थान सबके भीतर कारण केवल इतना ही है कि वे मेरे हैं, इसलिए सही | में जीता है। हैं। और तो कोई कारण नहीं है।
इसलिए तो छोटी-छोटी बात पर विवाद हो जाता है। क्षुद्र । तुम जैन घर में पैदा हुए तो तुम कहते हो, जैन धर्म सही है। तुम बातों पर विवाद हो जाता है। तुम कभी देखते हो? निरीक्षण
अगर हिंदू घर में पैदा होते तो यही तुम हिंदू धर्म के संबंध में करते हो? कैसी छोटी बातों पर लड़ उठते हो! पति-पत्नी हैं, कहते। तुम अगर मुसलमान घर में पैदा होते तो यही तम इस्लाम भाई-भाई हैं, बाप-बेटे हैं, मित्र-मित्र हैं, जरा-जरा सी बात पर के संबंध में कहते।
कलह हो जाती है। तो न तो तुम्हें इस्लाम से कुछ मतलब है, न जैन से, न हिंदू से। कलह का कारण? कारण बताने जैसा भी नहीं लगता। अगर तुम जहां पैदा हुए वहीं सत्य को भी पैदा होना चाहिए। जैसे कोई पूछे पति-पत्नी से लड़ते वक्त, कि कारण क्या है? तो वे तुम्हारे होने में सत्य का कोई ठेका है!
भी संकोच करते हैं कि कारण कुछ भी नहीं है। मगर होना तो तुम्हें बचपन से कुरान पढ़ाई गई, तुमने कुरान को अपना मान चाहिए कलह चल रही है। लिया तो कुरान सत्य है। गीता पढ़ाई गई तो गीता सत्य है। कारण बड़े छोटे हैं, लेकिन कारणों के पीछे छिपा हुआ बड़ा लेकिन सत्य इतना सस्ता तो नहीं। सत्य को तो खोजना पड़ता अहंकार है। छोटे कारण, और बड़ा अहंकार पीछे छिपा हुआ है। ऐसे मुफ्त तो मिलता नहीं। सत्य संस्कार से नहीं मिलता, न है। पत्नी कहती है, जो मैंने कहा वही सत्य है, वैसा ही होना समाज से मिलता है। समाज से तो पक्षपात मिलते हैं, पूर्वाग्रह चाहिए; अन्यथा हो ही नहीं सकता। पति कहता है, जो मैंने कहा | मिलते हैं, मुर्दा धारणाएं मिलती हैं, थोथे शब्द मिलते हैं, उधार, वही सत्य है। वैसा ही होना चाहिए। बासे सिद्धांत मिलते हैं। लेकिन तुम्हारे अहंकार के आभूषण बन और दोनों सोचते हैं कि सत्य के लिए आग्रह कर रहे हैं। दोनों जाते हैं वही।
सोचते हैं सत्याग्रह कर रहे हैं। लेकिन आग्रह मात्र असत्य का जब हिंदू कहता है कि हिंदू धर्म सही, तो वह यह कह रहा है मैं होता है। सत्य का कोई आग्रह होता ही नहीं। इसलिए सत्याग्रह सही। मेरे कारण हिंदू धर्म सही। जब तुम कहते हो, भारतभूमि बिलकुल थोथा शब्द है। सत्य का कोई आग्रह नहीं होता, पवित्र भूमि, पुण्य भूमि; तो तुम क्या कह रहे हो? इतना ही कह निवेदन होता है। आग्रह तो अहंकार का होता है। दावा तो रहे हो कि तुम जैसे पवित्र महापुरुष भारत में पैदा हुए तो भारत अहंकार का होता है। पवित्र होना ही चाहिए। और क्या कह रहे हो? तुम पोलैंड में हम सत्य के नाम पर अपने अहंकार का साम्राज्य फैलाते हैं। पैदा होते कि चीन में, तो तुम यही वहां भी कहते। तुम यही कहते बाप बेटे से कहता है, कि ऐसा ही है। और अगर बेटा पूछे कि पोलैंड पवित्र भूमि है। स्वर्ग अगर कहीं है तो बस यहीं है। क्यों? तो कहता है, उलटकर जवाब मत दो। मैं बाप हूं। मैं आदमी का अहंकार ऐसा है कि वह जिस चीज से अपने अहंकार जानता हूं। जिंदगी ऐसे ही धूप में नहीं पकाई है। ये बाल अनुभव को जुड़ा हुआ पाता है उसी की गुण-गरिमा गाने लगता है। से सफेद हुए हैं। जब तुम भी बड़े होओगे, तब जानोगे। तुम्हारे
तो महावीर कहते हैं, अगर तुम यही करते रहे तो मिथ्या-दृष्टि बाप ने भी तुमसे कहा होगा। तुम बड़े हो गए, जाना कुछ? बड़े ही बने रहोगे। तुम पहली सीढ़ी पर ही अटके रह जाओगे। होकर इतना ही पता चला कि न बाप को पता था, न तुमको पता
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