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जिन सूत्र भाग: 2
होगा? तुम फिर करवट लेकर सो जाओगे। तुम अगर नींद से ...मिथ्या गुरुजनों का इतना आकर्षण क्यों है?'
अभी ऊबे नहीं और सपनों में तुम्हें रस है तो कोई तुम्हें जबर्दस्ती सदा से रहा है। बड़े गहरे कारण हैं। क्योंकि मिथ्या गुरु एक बिठा भी दे तो तुम बैठकर ही आंखें बंद करके सो जाओगे और तो तुम्हें मिटाता नहीं, तुम्हें सजाता है, संवारता है। मिथ्या गुरु नींद लेने लगोगे।
तुम्हारे जीवन में कोई क्रांति नहीं लाता, तुम्हारे जीवन में थोड़ी नहीं, जबर्दस्ती कोई उपाय नहीं है। यह करना ही मत। और सुविधा लाता है। तुम बीमार हो तो मिथ्या गुरु कहता है, इसकी चिंता भी मत लेना। तुम जग जाओ, इतना काफी है। घबड़ाओ मत। यह देखो चमत्कार से राख हाथ से गिर रही है, और तुम अपने ध्यान को इस तरह बांटो भी मत।
| इसको सम्हाल लो। ठीक हो जाओगे। 'बीसवीं सदी में भी लोग इतने कायर क्यों हैं?'
वह तुम्हारी बीमारी ठीक करता है। होती है बीमारी ठीक कि आदमी सदा से कायर है। और स्वभावतः कायर है क्योंकि नहीं यह दूसरी बात है। मगर कम से कम तुम्हें भरोसा तो देता मौत सदा खड़ी है सामने। आदमी डरे न तो क्या करे? मौत है। चलो तीन महीने तक तो भरोसा रहेगा कि तीन महीने बाद डराती है। प्रेम डराता है क्योंकि प्रेम भी मौत है। गुरु डराता है ठीक हो जाएगी। और नहीं हुई तो कोई हर्जा नहीं। हो गई तो क्योंकि गुरु भी मौत है। घबड़ाहट होती है।
बड़ा लाभ है। दया करो आदमी पर। सब तरफ से मौत घेरे हुए है। जहां तुम बैठ जाओ बाजार में और बांटने लगो राख। सौ मरीज जाता है. वहीं मांग है कि मिटो। तो अपने को बचाने की चेष्टा आएंगे, पचास तो ठीक होंगे ही। सभी तो मर जानेवाले नहीं हैं। कर रहा है। कमजोर, असहाय आदमी! और सबसे बड़ी मौत जो पचास ठीक हो जाएंगे, वे तुम्हारा गुणगान करेंगे कि महापुरुष सदगुरु के पास घटती है। वहां अहंकार बिलकुल ही विसर्जित है, सत्य साईंबाबा है। ये रहे सत्य साईंबाबा! ठीक हो गए। जो होता है, राख हो जाता है।
| ठीक नहीं हुए वे किसी दूसरे सत्य साईंबाबा को खोजेंगे। जो तो स्वाभाविक है डर। आदमी सदा से कायर है क्योंकि मौत | ठीक हो गए वही तुम्हारे इर्द-गिर्द इकट्ठे होने लगेंगे। वे गुणगान सदा से मौजूद है। कोई ऐसा थोड़े ही है कि पहले मौजूद थी, करेंगे। और उनके गुणगान का भी कारण है, वे ठीक हो गए। वे बीसवीं सदी में मौजूद नहीं है। कोई सदियों से थोड़े ही फर्क झूठ भी नहीं कह रहे। पड़ता है।
अब मजा यह है कि आदमी की सौ बीमारियों में से पचास जीवन के वास्तविक प्रश्न सदा वही के वही हैं। ऊपर की | बीमारियां झूठ हैं। हैं ही नहीं; सिर्फ उसे खयाल है। इसलिए छोटी-मोटी बातें बदलती हैं। आधारभूत नियम नहीं बदलते। | झूठी दवाइयां भी काम आती हैं। बीमारियां ही झूठ हैं तो झूठी
आज से दो हजार साल पहले तुम्हारे गांव में जिसके पास | दवाइयां काम आ जाती हैं। डाक्टर पानी का इंजेक्शन दे देता है, बढ़िया बैलगाड़ी होती, दूर तक भागनेवाले छकड़े होते, शानदार | तुम बिलकुल ठीक हो जाते हो। घोड़ा होता, उससे तुम्हारी ईर्ष्या थी। अब तुम्हारी ईर्ष्या उससे है, कभी तुमने खयाल किया? डाक्टर तुम्हें देखने आता है, नब्ज जिसके पास फिएट कार है। बात वही की वही है। इससे क्या वगैरह देखता है, स्टेथस्कोप सीने पर लगाता है, उसी बीच तुम फर्क पड़ता है कि घोड़े से ईर्ष्या थी, कि अब कार से ईर्ष्या है! ठीक होने लगते हो। तुमने खयाल किया इस बात का? पर कल हो सकता है हवाई जहाज लोगों के पास हो जाएंगे। हर डाक्टर जरा बड़ा होना चाहिए और फीस काफी होनी चाहिए। आदमी अपनी छत पर अपना हवाई जहाज रख लेगा। तब तुम्हें मुफ्त आ जाए डाक्टर, तो फायदा नहीं होता। जितनी ज्यादा उससे ईर्ष्या होगी कि जिसके पास हवाई जहाज है, वह कुछ मजा फीस ले, उतना फायदा होता है। फीस दवा से भी ज्यादा काम लूट रहा है, मैं चूका जा रहा हूं।
करती है। क्योंकि उतना बड़ा डाक्टर! अब तुम्हें बीमार रहने की लेकिन ईर्ष्या तो वही है। जीवन को ठीक से देखो तो समय से | सुविधा ही नहीं रह जाती। इतना बड़ा प्रामाणिक डाक्टर आया, कोई अंतर नहीं पड़ता, अंतर तो सिर्फ ध्यान से पड़ता है। नहीं तो ठीक होना निश्चित ही है। उस ठीक होने की धारणा से तुम ठीक हम एक ही चाक में कोल्हू के बैल की तरह घूमते रहते हैं। होते हो।
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