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NITION
छह पथिक और छह लेश्याएं
जो तोड़ा जाए वह कच्चा होगा। जो कच्चा हो वह अभी खाने | यद्यपि जो छठवें तक पहुंच जाता है, उसे सातवें तक जाने में योग्य नहीं। जो अपने से गिर जाए वही पका होगा। वही खाने | कठिनाई नहीं होती। जिसने अंधेरी रातों के पर्दे उठा दिए, वह योग्य भी होगा। जो अपने से मिल जाए वही खाने योग्य है। फिर आखिरी झीने-से पारदर्शी सफेद पर्दे को उठाने में क्या
प्रकृति दे रही है हजार-हजार ढंगों से। अगर आदमी झपटे न, अड़चन पाएगा? वह कहेगा, अब अंधेरा भी हटा दिया, अब तो भी मिलता है। पक्षियों को मिलता है, पशुओं को मिलता है, प्रकाश भी हटा देते हैं। अब तो हम जो हैं, जैसा है, उसे वैसा ही वृक्षों को मिलता है। देखा? वृक्ष तो कहीं जाते-आते भी नहीं। देख लेना चाहते हैं-निपट नग्न, उसकी सहज स्वभाव की जड़ जमाए एक ही जगह खड़े हैं। तो भी क्या कमी है? कुछ अवस्था में। तमसे कम हरे हैं? कुछ तुमसे कम ताजे हैं? कुछ तुमसे कम इन चित्त की दशाओं को हम छिपाने की कोशिश करते हैं। इन्हें जीवंत हैं? खूब हरे हैं। खूब जीवंत हैं। जमीन में जड़ें रोपे खड़े मिटाने की कोशिश करें। छिपाने से पाखंड पैदा होता है। छिपाने हैं। कहीं जाते भी नहीं। आने-जाने की चिंता भी नहीं करते। से कुछ छिपता भी नहीं। तुम लाख छिपाओ, पता चल ही जाता वहीं आना पड़ता है परमात्मा को देने। वहीं प्रकृति को लाना | है। तुमने कभी इस पर खयाल किया? इस पर निरीक्षण पडता है। वहीं बादल आकर बरस जाते हैं। वहीं जमीन | किया? तम जो-जो छिपाते हो. तम्हें लगता हो तमने छिपा हजार-हजार ढंगों से भोजन को जमा देती है। वहीं सूरज की लिया, लेकिन सभी को पता चल जाता है। | किरणें आ जाती हैं। वहीं हवा के झोंके प्राणवायु ले आते हैं। मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी से कह रहा था कि मैं
जब वृक्षों तक के लिए यह हो रहा है तो आदमी की अश्रद्धा एक घंटे में वापिस आने का प्रयत्न करूंगा। यदि न आया तो खूब है, अदभुत है। यह होगा ही। लेकिन श्वेत लेश्या के जन्म शाम तक आ जाऊंगा। और अगर शाम तक भी न आ पाया तो के बाद ही ऐसी महत श्रद्धा का जन्म होता है कि सब होता है। समझ लेना कि मुझे अकस्मात बाहर जाना पड़ गया। वैसे अगर सब होगा ही, इस परम श्रद्धा से ही आदमी आस्तिक बनता है। मैं बाहर गया तो चपरासी से चिट्ठी जरूर भिजवा दूंगा। मुल्ला
और महावीर कहते हैं कि ये छहों भी लेश्याएं हैं, छठवीं भी। | की पत्नी ने कहा, चपरासी को तकलीफ मत देना, मैंने चिट्ठी इनके पार वीतराग की, अरिहंत की अवस्था है। उस अरिहंत की | तुम्हारी जेब से निकाल ली है। अवस्था में तो कोई पर्दा नहीं रहा। शुभ्र पर्दा भी नहीं रहा। वह चिट्ठी तो लिखकर रखे ही हुए है! यह तो सब बातचीत '...इन छहों पथिकों के विचार, वाणी तथा कर्म कमशः छहों कर रहे हैं। छिपाने के उपाय कर रहे हैं। लेश्याओं के उदाहरण हैं।'
___ हम जो भीतर हैं, उसकी एक अनिवार्य उदघोषणा होती रहती छठवीं लेश्या को अभी लक्ष्य बनाओ। श्वेत लेश्या को लक्ष्य है। अक्सर तो जिसे हम छिपाते हैं, हमारे छिपाने के कारण ही बनाओ। चांदनी में थोड़े आगे बढ़ो। चलो, चांद की थोड़ी यात्रा वह प्रगट हो जाता है। तुम देखो कोशिश करके। जिसे तुम करें। पूर्णिमा को भीतर उदित होने दो।
छिपाओगे, तुम पाओगे, दूसरों को कुछ संकेत मिलने लगे। हिंदू संस्कृति का सारा सार इस सूत्र में है :
एक पुलिसवाले ने मुल्ला नसरुद्दीन को रोककर कहा-वह सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्त निरामयः
| अपनी कार में कहीं जा रहा है कि तुम्हारा लाइसेंस देखें जरा सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत। | मल्ला ने कहा, बड़ी हैरानी की बात है। लेकिन हवलदार साहब. सब सुखी हों, रोगरहित हों, कल्याण को प्राप्त हों। कोई दुख मैंने तो कोई नियम तोड़ा भी नहीं। लाइसेंस दिखाने की क्या का भागी न हो।
जरूरत है? यह श्वेत लेश्या में जीनेवाले आदमी की दशा है। इसके पार उस हवलदार ने कहा, महानुभाव! तुम इतनी सावधानी से तो कहा नहीं जा सकता। इसके पार तो अवर्णनीय है, | मोटर चला रहे हो कि मुझे शक हो गया। सावधानी से चलाते ही अनिर्वचनीय का लोक है। इसके पार तो शब्द नहीं जाते। छठवें | वे लोग हैं, जिनके पास लाइसेंस नहीं। तक शब्द जाते हैं, इसलिए छठवें तक महावीर ने बात कर दी। तुम जो-जो छिपाने की चेष्टा करते हो, किसी बेबूझ ढंग से वह
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