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गया – मरना, मृत्यु। तो उठे रोज, खाए-पीए रोज, सोए रोज - सारी तैयारी की, बस मरने के लिए? अंततः मरे ! तो सार क्या है? दो दिन पहले मरे तो हर्ज क्या ? दो साल पहले मरे तो हर्ज क्या? और पैदा ही न होते तो क्या हर्ज था ? या पैदा होते मर गए तो क्या रोना! अगर मौत ही होनी है, कुछ और हो ही नहीं सकता, तो फिर जीवन का कोई अर्थ नहीं है । मोक्ष हो सकता है इसीलिए अर्थ है । मस्ती में गाते हुए मर्द
धूप में बैठे बालों में कंघी करती हुई नारियां तितलियों के पीछे दौड़ते हुए बच्चे फुलवारियों में फूल चुनती हुई सुकुमारियां
ये सब के सब ईश्वर हैं
क्योंकि जैसे ईसा और राम आए थे,
ये भी उसी प्रकार आए हैं
और ईश्वर की कुछ थोड़ी विभूति अपने साथ लाए हैं
तो उपदेशको ! आओ हम ईमानदार बनें
और मानवता को डराएं नहीं, बल्कि यह कहें
कि जिस सरोवर का जल पीकर तुम पछताते हो।
उस तालाब का पानी हमने भी पीया है
और जैसे तुम हंस-हंसकर रोते और रो-रोकर हंसते हो
इसी तरह हंसी और रुदन से भरा जीवन हमने भी जीया है
गनीमत है कि हर पापी का भविष्य है।
जैसे हर संत का अतीत होता है
आदमी घबड़ाकर व्यर्थ रोता है
मैं दानव से छोटा नहीं, न वामन से बड़ा हूं
सभी मनुष्य एक ही मनुष्य
हैं
सबके साथ मैं आलिंगन में खड़ा हूं
वह जो हारकर बैठ गया उसके भीतर मेरी ही हार है
वह जो जीतकर आ रहा है
उसकी जय में मेरी ही जय-जयकार है।
महावीर तुम्हारी ही जीत हैं। राम तुम्हारी ही विजय यात्रा हैं। रावण तुम्हारी ही हार है। जीसस तुम्हारी ही बजती हुई वीणा, जुदास तुम्हारा ही टूटा हुआ तार है।
दोनों तुम्हारी संभावना हैं - राम और रावण । और तुम पर
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पिया का गांव
निर्भर है। एक बात खयाल रखना - अत्यंत महत्वपूर्ण — कि राम बनो तो चेष्टा करनी पड़ेगी, रावण बिना चेष्टा के बन सकते हो । रावण बनने के लिए चेष्टा नहीं करनी पड़ती। रावण बिना मेहनत के आदमी बन जाता है। जो कुछ भी न बनेगा वह रावण बन जाएगा। रावण के भीतर राम सोया है। राम के भीतर रावण जाग गया है। बस इतना ही भेद है।
अगर सोए हो तो मैं कहता हूं, जागना भी हो सकता है। समय, युग की व्यर्थ बातें मत उठाओ। अपनी भूलें स्वीकार करो। ऐसे बहाने मत खोजो । यह आत्मवंचना है । ये बड़ी तर्कयुक्त तरकीबें हैं अहंकार को बचा लेने की, सुरक्षा की। सीधा-सीधा देखो। जहां गलती मालूम पड़ती हो उसे सुधारो । जहां नीचे का खिंचाव मालूम पड़ता है उसे तोड़ो। जहां ऊपर उठने में कठिनाई मालूम पड़ती है उसका अभ्यास करो। धीरे-धीरे इंच-इंच चलकर मोक्ष निर्मित होता है। बूंद-बूंद गिरकर सागर भरता है।
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आज इतना ही।
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