________________
है। लोग अपने अहंकार के लिए जी रहे हैं । तुम्हारे अहंकार की तृप्ति करने को कौन जी रहा है ? लोग तुम्हारे अहंकार से संघर्ष कर रहे हैं। तुम जितने अहंकारी हो, लोग उतना तुम्हें नीचे दिखाने की चेष्टा करेंगे। क्योंकि तुम्हारे नीचे दिखाए जाने में ही उनका ऊंचा होना निर्भर है। तुम भी तो लोगों के साथ यही कर रहे हो कि उनको नीचा दिखाओ।
तो वही आदमी वैर की गांठ नहीं बांधेगा जिसके पास कोई अहंकार नहीं है। लाओत्सु कहता है, मुझे तुम हरा न सकोगे क्योंकि मैं हारा हुआ हूं। मेरी जीत की कोई आकांक्षा नहीं है। तुम मुझे हटा न सकोगे मेरी जगह से क्योंकि मैं अंत में ही खड़ा हुआ हूं। इसके पीछे अब और कोई जगह ही नहीं है। लाओत्सु यह कह रहा है, जो विनम्र है उसके साथ किसी की शत्रुता नहीं होगी। और अगर किसी की शत्रुता होगी भी, तो वह जो शत्रुता बना रहा है उसकी समस्या है, विनम्र की समस्या नहीं है।
किसी की दी गई गाली तुम्हें चुभती है क्योंकि तुम अहंकार को सजाए बैठे हो। तुमने अहंकार का कांच का महल बना रखा है। किसी ने जरा-सा कंकड़ फेंका कि तुम्हारे दर्पण टूट-फूट जाते हैं। अहंकार बड़ा नाजुक है। जरा-सी चोट से डगमगाता है, टूटता है, कंपता है। तो फिर वैर की गांठ बनती जाती है।
तुम मित्र किन्हें कहते हो? तुम मित्र उन्हें कहते हो जो तुम्हारे अहंकार की परिपूर्ति करते हैं। इसलिए तो चापलूसी का दुनिया में इतना प्रभाव है। अगर तुम किसी की चापलूसी करो, खुशामद करो, तो तुम अतिशयोक्ति करो तो भी जिसकी तुम खुशामद करते हो, वह मान लेता है कि तुम ठीक कह रहे हो । वस्तुतः वह सोचता है कि तुम्हीं पहले आदमी हो जिसने उन्हें पहचाना। वह तो सदा से यही मानता था कि मैं एक महापुरुष हूं। कोई उसको पहचान नहीं पा रहा था, तुम मिल गए उसे पहचाननेवाले ।
जिसकी तुम खुशामद करो, तुम कभी चकित होना; तुम अतिशयोक्ति करते हो, अंधे को कमलनयन कहते हो, असुंदर को सौंदर्य की प्रतिमा बताते हो, अज्ञानी को ज्ञान का अवतार कहते हो और तुम्हें भी चकित होना पड़ता होगा कि वह मान लेता | है । यह तो उसने माना ही हुआ था। तुम पहली दफा पहचाननेवाले मिले। कोई दूसरा पहचान नहीं पाया। खुशामद | इसीलिए कारगर होती है।
Jain Education International 2010_03
षट पर्दों की ओट में
अगर वह आदमी विनम्र हो और असलियत को जानता हो तो तुम खुशामद से उसे प्रसन्न न कर पाओगे । जिस आदमी को तुम खुशामद से प्रसन्न कर लो, सम्हलकर रहना । यह आदमी वैर की गांठ भी बांधेगा। जो खुशामद से प्रसन्न होगा, वह अपमान से नाराज होगा। जो झूठी खुशामद से प्रसन्न हो जाता है, वह अवास्तविक अपमान से भी नाराज हो जाएगा; तथ्यहीन अपमान से भी नाराज हो जाएगा।
विनम्र व्यक्ति को न तो खुशामद से प्रसन्न किया जा सकता है और न अपमान से नाराज किया जा सकता है। विनम्र व्यक्ति तुम्हारी नियंत्रण - शक्ति के बाहर हो जाता है। वह स्वयं अपना मालिक होने लगता है।
कृष्ण लेश्या में दबा हुआ आदमी गुलाम है। बड़ा गुलाम है। उसके ऊपर बटन लगे हैं, जो भी चाहो तुम दबा दो, बस वह वैसे ही व्यवहार करता है। जरा अपमान कर दो कि वह आग-बबूला
गया। बटन दबा दो कि वह सौ डिग्री पर उबलने लगा, भाप बनने लगा। दूसरा बटन दबा दो, वह प्रसन्न हो गया, आनंदित हो गया। तुम जो कहो, करने को राजी है । जान देने को राजी हो जाए तुम्हारे लिए।
इसका अर्थ हुआ कि कृष्ण लेश्या से भरा हुआ आदमी प्रतिक्रिया से जीता है। तुम उससे कुछ भी करवा ले सकते हो। विनम्र व्यक्ति अपने बोध से जीता है, प्रतिक्रिया से नहीं । 'स्वभाव की प्रचंडता और वैर की मजबूत गांठ, झगड़ालू वृत्ति... ।'
संसार में इतने झगड़े नहीं हैं जितने दिखाई पड़ते हैं । जितने दिखाई पड़ते हैं वे झगड़ालू वृत्ति के कारण हैं। लोग झगड़ने को तत्पर ही खड़े हैं। लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कब मिले अवसर । लोग बिना झगड़े बेचैन हो रहे हैं। लोग निमंत्रण दे रहे हैं कि आ बैल, मुझे सींग मार। क्योंकि जब तक बैल सींग नहीं मारता, उन्हें उनके अस्तित्व का बोध नहीं होता । लड़ने में ही उन्हें पता चलता है कि हम हैं। जब जीवन में कठिनाई होती है, संघर्ष होता है, तभी उन्हें पता चलता है कि हम भी कुछ हैं। सिद्ध करने का मौका मिलता है।
इसे समझना । जिस व्यक्ति को अपनी आत्मा की कोई झलक नहीं मिली, वह हमेशा झगड़ने को तैयार होगा। क्योंकि झगड़ने उसे थोड़ा आत्मभाव पैदा होता है। झगड़ने में ही लगता है,
For Private & Personal Use Only
463
www.jainelibrary.org