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आज लहरों में निमंत्रण
ठोंक-ठोंककर देखता है, ठीक है?
सच हो जाए। अगर न लटकाओ तो वह झूठ है। अब करो रवींद्रनाथ ने कहा कि अभी तक जो मैंने गाए. वे केवल साज क्या? अगर उसको फांसी पर लटका दो तो एक सच्चे आदमी को संवारने जैसे थे। अभी असली गीत शुरू कहां हुआ था? को फांसी हो गई। अगर उसको फांसी पर न लटकाओ, तो एक असली गीत तो अपने साथ ही ले जा रहा हूं।
झूठा आदमी पहले ही दिन छूटा जा रहा है। सम्राट ने अपना सिर जितना बड़ा कवि होगा उतना ही असमर्थ पाएगा। जितना | ठोंक लिया। नसरुद्दीन ने कहा कि सत्य और असत्य का निर्णय बड़ा अनुभव होगा उतना ही प्रगट करना मुश्किल हो जाएगा। इतना आसान नहीं। हटाओ फांसी वगैरह। कौन जानता है कौन छोटे-मोटे अनुभव प्रगट नहीं होते। तुम्हें किसी से प्रेम हो जाए, सत्य बोल रहा है, कौन असत्य बोल रहा है! कौन जानता है भाषा असमर्थ हो जाती है। क्या कहो? कैसे कहो?
क्या सत्य है, क्या असत्य है। तो जिन्होंने सत्य को जाना, इतने विराट में डबे, लौटकर जो भी सत्य और असत्य बड़ी नाजुक बातें हैं। वे कहते हैं, सभी अधूरा है। इसलिए महावीर ने कहा, जो भी महावीर ने अगर कोई भी बात सिखाई है तो इतनी ही बात दृष्टियां हैं, सभी दृष्टियां हैं। सभी में सत्य का अंश है। सिखाई है कि दूसरे को अत्यंत हार्दिकता से समझने की कोशिश
जैन कहता है कि महावीर के अतिरिक्त सभी मिथ्या है। करना। तुम्हारे लिए इतनी ही खोज काफी है कि उसमें कुछ भी लेकिन इसका अर्थ क्या हुआ? अगर महावीर सही हैं तो सभी सत्य हो तो खोज लेना। असत्य से तुम्हें लेना-देना क्या है? । में सत्य है। और अगर सभी मिथ्या हैं यह सही है, तो महावीर एक आदमी जंगल में भटक गया हो, राह खोजते-खोजते मिथ्या हो गए।
सूरज ढल गया हो, अंधेरा घिर गया हो, पैर काटों से चुभे हों, यह तुम ऐसा समझो, कहते हैं एक सम्राट ने-जो बड़ा झाड़ियों ने कपड़े फाड़ दिए हों, राह न सूझती हो, उसे दूर एक खूखार आदमी था-कहा कि इस गांव में जो भी असत्य बोलेगा झोपड़े से दीया जलता हुआ दिखाई पड़ता है। उस झोपड़े के चारों उसे सूली पर लटका देंगे। और उसने कहा कि सिखावन के तौर तरफ अंधेरा है, जरा-सी रोशनी है। वह रोशनी देख लेता है, पर, नगर का बड़ा द्वार जब सुबह खुलेगा, तो वहां जल्लाद अंधेरा छोड़ देता है। वह यह थोड़े ही कहता है कि इतने अंधेरे में मौजूद रहेंगे फांसी लगाकर। और जो भी आदमी आएंगे उनसे | रोशनी कहां हो सकती है? वह अंधेरा देखकर बैठ थोड़े ही जाता पूछेगे। अगर उनमें से कोई भी असत्य बोला तो तत्क्षण सूली पर है। वह जो टिमटिमाती दीये की रोशनी है, उसको देखता; अंधेरे लटका देंगे, ताकि पूरा गांव रोज सुबह देख ले कि असत्य को नहीं देखता। वह कहता, धन्यभाग! कोई है। पास ही कोई बोलनेवाले की क्या हालत होती है।
| है। मिल गई राह, चला चलूं। पहुंच ही जाऊंगा। घबड़ाने की मुल्ला नसरुद्दीन उसके दरबार में था, उसने कहा अच्छा, तो कोई बात नहीं। कल फिर दरवाजे पर मिलेंगे। उस सम्राट ने कहा, तुम्हारा जब कोई आदमी कुछ कहे तो तुम उसमें दीये की टिमटिमाती मतलब? उसने कहा, कल वहीं तुम भी मौजूद रहना। हम रोशनी भी देखना। वही देखना। जितना सत्य का अंश है उतना असत्य बोलेंगे और तुम हमें फांसी पर लगाकर देख लेना। देख लेना। तुम्हें असत्य से लेना-देना क्या है? हंसा तो मोती
सम्राट बड़ा नाराज हुआ। उसने बड़ा इंतजाम किया कि यह चुगे। तुम अपने मोती-मोती चुन लेना, कंकड़ छोड़ देना। आदमी चाहता क्या है! और सुबह जब दरवाजा खुला, सम्राट लेकिन तुम कंकड़ों ही कंकड़ों पर चोंच मारते हो। तुम मोती मौजूद था, और वजीर मौजूद थे, पूरे दरबारी मौजूद थे, फांसी का चुनने में उत्सुक नहीं हो। तुम तो यही सिद्ध करने में उत्सुक हो तख्ता मौजूद था, जल्लाद मौजूद थे। और मुल्ला अपने गधे पर कि मोती तो बस हमारे ही घर होते हैं और सब जगह कंकड़ होते सवार दरवाजे के भीतर प्रविष्ट हुआ।
हैं। तुम अंधेरे में ही आंख गड़ाए बैठे हो। तुम रोशनी को देखना सम्राट ने कहा, 'कहां जा रहे हो नसरुद्दीन?'
ही नहीं चाहते। नसरुद्दीन ने कहा, 'फांसी के तख्ते पर लटकने जा रहा हूं।' जिन-शासन का मौलिक आधार यही है-सत्य सब कहीं है। अब बड़ी मुश्किल हो गई। अगर उसको लटकाओ तो वह अनंत रूपों में प्रगट होता है। अनेकांत का अर्थ होता है सत्य के
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