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हला प्रश्न: मैं जब प्रथम-प्रथम आपको मिली थी है, बेहोशी और होश के बीच में लटका है। आदमी त्रिशंक की तब कुछ भी तो पता नहीं था। न मालूम आपने स्थिति में है। और आदमी की स्थिति में से पार होने के दो ही
कहां से कहां चला दिया! एकांत अब प्रीतिकर | उपाय हैं—या तो गिर जाओ वापस बेहोशी में, जो कि असंभव लगता है। अब तो न कहीं जाना है, न आना। न कुछ होना है है। हो जाओ पश-पक्षी पुनः, जो कि असंभव है। क्योंकि
और न कुछ जानना है। बहुत कुछ पाया, जिसके योग्य न थी। विकास की किसी भी स्थिति से वापस नहीं लौटा जा सकता है। बस, अब तो अलविदा और प्रणाम।
जो जान लिया, जान लिया। उसे फिर अनजाना नहीं किया जा न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे
सकता। जहां तक आ गए हैं, यह तो हो सकता है आगे न जाएं, चली रे चली रे मेरी नाव चली रे
लेकिन पीछे नहीं जा सकते। अटके रह जा सकते हैं। और वही कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली
अटकाव बेचैनी और अशांति बनता है। मैंने कहा पिया के गांव चली रे
और दो ही उपाय हैं: या तो पूरी बेहोशी हो, कि यह भी न पता
चले कि मैं कौन हूं? कि मुझे पता नहीं कि मैं कौन हूं। पता का साधारणतः किसी को भी पता नहीं है कि कहां जा रहे हैं। जा | भी पता न चले। बेहोशी की भी याद न आए। थोड़ी-सी भी रहे हैं जरूर। गति से जा रहे हैं, शक्ति से जा रहे हैं, लेकिन होश की किरण न हो। स्पष्ट नहीं है कि कहां जा रहे हैं। कहां से आ रहे हैं, इसका भी ऐसी आदमी चेष्टा करता है। शराब पीकर कभी चेष्टा करता कुछ पता नहीं है।
| है कि भूल जाएं सब। वह चेष्टा फिर से पशु हो जाने की चेष्टा कहां से आना, कहां से जाना तो दूर की बातें हैं, यह भी ठीक है। कभी धन की दौड़ में, कभी पद की दौड़ में वे भी शराबें पता नहीं है कि कौन हैं। कौन है यह जो तुम्हारे भीतर चल रहा, हैं; उनमें कभी आदमी अपने को भुला लेना चाहता है, लेकिन जी रहा, सुख भोग रहा, दुख भोग रहा, चिंतित होता है, ध्यान | भूल नहीं पाता। शराब कितनी देर साथ देगी? सुबह फिर करता है-कौन छिपा है तुम्हारे भीतर?
स्मरण वापस लौट आता है—और भी प्रगाढ़ होकर, और भी मनुष्य की स्थिति बड़ी विक्षिप्त है। पशु-पक्षियों की स्थिति भी चुभता हुआ, और भी धार लेकर। बेहतर है। उन्हें भी पता नहीं कि कौन हैं, कहां जा रहे हैं। मनुष्य | पद की दौड़, धन की दौड़, यश की दौड़ एक न एक दिन टूटती की विडंबना यह है कि उसे इतना पता है कि पता नहीं कौन है! है। वह नशा भी एक दिन उखड़ता है। एक दिन पद पर पहुंचकर इतना पता है कि पता नहीं कहां जा रहे हैं।
पता चलता है, कहां पहुंचे? चले बहुत, पहुंचे कहीं भी नहीं। पश-पक्षी ऐसे चल रहे हैं, जैसे बेहोश। आदमी होश में नहीं धन जोड़कर एक दिन पता चलता है कि जो जोड़ लिया, वह
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