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बड़ी कठिनाई में पड़ते । सुगमता से निकल गए।
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पश्चिम में तो अभी भी किताबें लिखी जाती हैं, जिनमें सिद्ध किया जाता है कि जीसस का दिमाग खराब था — न्यूरोटिक और अगर तुम मनोवैज्ञानिक की बात पढ़ो तो बात समझ में तुम्हें भी आएगी। क्योंकि यह आदमी आकाश की तरफ देखता है और कहता है, हे पिता ! — कौन पिता ? इससे पूछो कि कौन पिता? कहां है? तो यह आकाश की तरफ हाथ बताता है। किसी को नहीं दिखाई पड़ते। तुम सब सिर उठाओ, किसी को कोई पिता नहीं दिखाई पड़ते।
तो इस एक आदमी की आंख पर भरोसा करें? हम सबकी आंखों पर संदेह करें? और अगर हम यह मान लें कि यह ठीक है तो हम गलत हैं। तो फिर हम ठीक होने के लिए क्या करें? क्या उपाय करें? उससे बड़ी बेचैनी पैदा होगी। उससे बड़ी घबड़ाहट पैदा होगी।
अगर बुद्ध मापदंड हैं, महावीर मापदंड हैं तो हम एबनार्मल हैं। तो हम ठीक-ठीक मापदंड पर, कसौटी पर नहीं उतर रहे हैं। तो हमारे जीवन में वैसे ही तो चिंता बहुत है, और चिंता बढ़ जाएगी। और इतने लोगों को कैसे स्वस्थ करियेगा ?
इससे ज्यादा सुगम और सीधी बात मालूम यह पड़ती है कि यह एक आदमी कुछ विकृत हो गया है। यह कुछ असामान्य है। अगर लोग भले होते हैं तो इसे स्वीकार कर लेते हैं कि ठीक है, तुम भी रहो, कोई हर्जा नहीं । अगर लोग और भी भले हुए तो कहते हैं, तुम अवतार हो, तीर्थंकर हो; हम तुम्हारी पूजा करेंगे, मगर गड़बड़ मत करो। हम माने लेते हैं कि तुम भगवान हो । सदा-सदा तुम्हारी याद रखेंगे, लेकिन दखलंदाजी नहीं । तुम बैठो मंदिर की इस वेदी पर। हम पूजा कर जाएंगे, पाठ कर जाएंगे, लेकिन बाजार में मत आओ। हमारे जीवन को नाहक अस्त-व्यस्त मत करो। हम साधारणजन हैं, तुम अवतारी पुरुष हो। कहां तुम कहां हम ! हम तो हमीं जैसे होंगे। तुम्हारे जैसा कभी कोई हुआ है ? तुम तो एक ईश्वर का अवतरण हो इस पृथ्वी पर हम साधारण मनुष्यों को साधारणता से जीने दो ।
अगर लोग भले होते हैं तो ऐसा करते हैं। अगर लोग जरा और तेज-तर्रार होते हैं तो वे कहते हैं, बंद करो बकवास ! तुम्हारा दिमाग खराब है। सूली पर लटका देंगे, जहर पिला देंगे। तुम पागल हो ।
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पिया का गांव
लेकिन बुद्ध या महावीर जैसे व्यक्ति की मौजूदगी से बेचैनी पैदा होती है। और वह बेचैनी यह है कि दो में से एक ही ठीक हो सकता है। या तो हमारी दृष्टि ठीक है या इनका दर्शन ठीक है। और यह स्वाभाविक मालूम पड़ता है कि हमारी दृष्टि ठीक हो, क्योंकि हमारी भीड़ है। हम सदियों में भरे पड़े हैं। बुद्ध - महावीर कभी-कभी पुच्छल तारे की तरह निकल जाते हैं – आए, गए ! लेकिन रात के जो स्थायी तारे हैं उनका भरोसा करो। ये बुद्ध-महावीर तो ऐसे हैं कि बिजली चमक गई । अब बिजली चमकने में बैठकर किताब पढ़ सकते हो ? कि दुकान का हिसाब लगा सकते हो ? कि खाता-बही लिख सकते हो ? किस काम के हैं? काम तो दीये से ही चलाना पड़ता है। बिजली चमकती होगी, होगी बहुत बड़ी; और बड़ी महिमाशाली होगी, लेकिन इसका उपयोग क्या है ?
तो जब तुम्हारे जीवन में कभी पहली झलकें आनी शुरू होंगी तो बड़ा खतरा पैदा होता है। खतरा यह कि तुम्हारा अतीत भी कहता है भूल मत जाना, कल्पना में मत पड़ जाना। और भी लोग कहते हैं— 'कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली।' तुम्हारा अतीत भी कहेगा कहां जा रहे हो ? क्या कर रहे हो ? सम्हलो! सम्हालो !
'मैंने कहा पिया के गांव चली रे'
इसे सतत स्मरण रखना। इसे महामंत्र बना लेना । कसौटी क्या है पिया के गांव की ? कसौटी सिर्फ एक है कि तुम्हारा आनंद भाव बढ़ता जाए, तुम्हारी मगनता बढ़ती जाए, तुम्हारी एकता बढ़ती जाए, तुम्हारा मन और तुम्हारा हृदय दो न रह जाएं एक हो जाएं; तुम्हारा विचार और तुम्हारा भाव इकट्ठा हो जाए, तुम्हारे भीतर निर्द्वद्वता बढ़ती जाए।
है एक तीर जिसमें दोनों छिदे पड़े हैं
वह दिन गए कि अपना दिल जिगर से जुदा था
प्रेम का एक तीर, जिसमें हृदय और मन दोनों जुड़ गए हैं। एक ही तीर दोनों को छेद गया है।
है एक तीर जिसमें दोनों छिदे पड़े हैं
वह दिन गए कि अपना दिल जिगर से जुदा था
अगर तुम्हें ऐसा अनुभव होता हो कि यह पिया के गांव के करीब आने से तुम्हारे भीतर के खंड एक दूसरे में गिरकर अखंड बन रहे हैं, टुकड़े-टुकड़े में बंटा हुआ व्यक्तित्व अखंड बन रहा
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