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क्योंकि किसी काल में पैदा किया और अब नहीं करता । यह बात व्यर्थ मालूम होती है। इसके पीछे कारण कुछ और है। मुसलमान पंडित नहीं चाहता कि अब किसी और को मोहम्मद स्वीकार करे, किसी और को पैगंबर स्वीकार करे। क्योंकि एक ही पैगंबर काफी अस्त-व्यस्त कर गया। उसी को सम्हाल- सम्हालकर व्यवस्थित करने में इतना समय लग गया, तब तो उस पर कब्जा कर पाए। तब तो उसको बांधकर, जंजीरों में डालकर मस्जिद में कैद कर पाए। कुरान की पोथी में बंद कर पाए बामुश्किल । अब फिर कोई निकल आए, फिर सब गड़बड़ हो जाए। पंडित बड़ी मुश्किल से व्यवस्था जुटा पाता है।
ईसाई कहते हैं कि जीसस अकेले बेटे हैं परमात्मा के । कोई दूसरा बेटा नहीं - इकलौते बेटे ! और बाकी ये सब लोग क्या हैं ? यह सारा अस्तित्व फिर क्या है, अगर जीसस अकेले बेटे हैं? यह सारा अस्तित्व उसी से पैदा हुआ है। वह बाप सिर्फ जीसस का नहीं हो सकता, सभी का है। समानरूपेण सभी का है।
और जीसस निरंतर दोहराते रहे कि जो मेरा पिता है वह तुम्हारा भी पिता है। लेकिन ईसाई पंडित दोहरता है कि नहीं, इकलौते | बेटे । क्यों? क्योंकि बामुश्किल वह इंतजाम जमा पाया दो हजार साल में। दो हजार साल में जीसस को मिटाने में वह सफल हो पाया। लीप-पोत डाला उसने सब । जो भी क्रांति की संभावना थी, सब समाप्त कर दी। दो हजार साल लग गए इस एक आदमी के अंगार को बुझाने में या राख से ढांकने में। अब फिर कोई अंगार हो जाए, फिर कोई उदघोषणा कर दे, फिर झंझट पैदा हो। यहूदियों ने इसीलिए जीसस को मारा कि इस आदमी ने उपद्रव खड़ा कर दिया।
जाग्रत पुरुष विद्रोही होगा ही । जाग्रत पुरुष ऐसी बातें कहेगा ही, जो अंधों के समाज को बेचैन करेंगी। जाग्रत पुरुष इस तरह की जीवन दिशा देगा ही, जिससे भीड़-भड़क्का में चलनेवाले | लोग बड़ी दुविधा में पड़ेंगे, अब क्या करें!
क्योंकि जाग्रत पुरुष विकल्प देता है । और जाग्रत पुरुष एक | वैकल्पिक समाज भी देता है। वह कहता है, यही एकमात्र मार्ग नहीं है, जिस पर तुम चल रहे हो। यह तो कोई मार्ग ही नहीं है। और जाग्रत पुरुष का बल, उसकी चुंबकीय शक्ति सब चीजों को अस्त-व्यस्त कर जाती है। जहां-जहां तुमने घरले बना रखे थे,
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पिया का गांव
वह सब गिरा देता है। जहां-जहां तुमने तरकीबें निकाल रखी थीं, उन सब तरकीबों के प्राण खींच लेता है। जहां-जहां तुमने धोखे बना रखे थे, उन सब धोखों को उघाड़कर नग्न कर देता है। वह तुम्हारी सारी आत्मवंचना तोड़ देता है।
तो ईसाई ठीक ही कहते हैं कि आखिरी...! बस अब बहुत हो गया। अब और दुबारा नहीं। जैन कहते हैं, महावीर चौबीसवें तीर्थंकर - बस खतम ! अब आगे नहीं ।
यह रोक लेने की प्रवृत्ति करीब-करीब दुनिया के सभी धर्मों में है। लेकिन समय से मोक्ष का क्या संबंध? इतना मैं मानता हूं कि कुछ समय होते हैं, तब मोक्ष थोड़ा आसान; और कुछ समय होते हैं, तब थोड़ा कठिन । लेकिन असंभव कभी भी नहीं। कुछ समय निश्चित होते हैं, जब मोक्ष थोड़ा आसान है।
हर चीज के लिए यह सही है। वर्षा में वृक्षों का बढ़ना आसान है। गर्मी में थोड़ा कठिन हो जाता है, लेकिन असंभव नहीं । अगर पानी सींचने की व्यवस्था की तो गर्मी में भी बढ़ेंगे। ऐसे ही बढ़ेंगे। कोई बाधा नहीं है।
मनुष्य की जीवन-यात्रा में भी ऐसे बहुत-से पल आते हैं, जब मोक्ष आसान हो जाता है। खासकर उन क्षणों में, जब बुद्ध या महावीर जैसा व्यक्ति मोक्ष को उपलब्ध होता है, तो वह द्वार खोलकर खड़ा हो जाता है। उस वक्त जिनकी थोड़ी भी हिम्मत होती है, साहस होता है, वे मोक्ष की यात्रा पर गतिमान हो जाते हैं। अगर महावीर जैसे व्यक्ति की मौजूदगी में भी तुम्हारे भीतर साहस पैदा नहीं होता तो जब महावीर जैसा व्यक्ति तुम्हें न मिलेगा, तब तुममें साहस पैदा होगा इसकी आशा करना कठिन है। तब तुम धारे के साथ बह सकते हो। महावीर एक लहर की तरह हैं। हवा जा रही है दूसरे किनारे की तरफ, तुम नाव में पाल बांध दो और छोड़ दो; पतवार भी नहीं चलानी पड़ती।
तो अनुकूल समय होते हैं, प्रतिकूल समय होते हैं, यह बात सच है। अनुकूल देश होते हैं, प्रतिकूल देश होते हैं। अनुकूल उम्र होती है, प्रतिकूल उम्र होती है। सुअवसर होते हैं, जिनका कोई उपयोग कर ले तो जल्दी घटना घट जाए। कठिन अवसर होते हैं। लेकिन असंभव है इस आरे में किसी व्यक्ति का मोक्ष पाना, यह बात फिजूल है। क्योंकि परमात्मा के लिए सब समय समान हैं। और तुम जानकर चकित होओगे, यह धारणा सभी कालों में रही है। जीसस को यहूदियों ने कहा कि तुम पा नहीं
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