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जिन सूत्र भाग: 2
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और वही सुगति के लिए भी याद रखना। मैं स्वर्ग और नर्क अब फल खाने हैं और पूरे वृक्ष को पीड़ से काटने बैठ गए। को वर्तमान में खींच लाना चाहता हूं। मैं तुमसे कहना चाहता हूं कोई...अनावश्यक है। कि स्वर्ग और नर्क यहीं हैं। इसका तुम यह मतलब मत समझना | बहुत लोग, अधिक लोग यही कर रहे हैं। तुम्हें कितना भोजन कि आगे नहीं हैं। लेकिन जो भी आगे है, वह यहां भी है। और चाहिए? कितना कपड़ा चाहिए? कितना छप्पर चाहिए? तुम उसे यहां देख लो तो ही आगे सम्हाल सकोगे। अगर तुमने | लेकिन तुम इकट्ठा किए जा रहे हो। कोई सीमा ही नहीं है। ऐसी यहां न देखा तो तुम आगे भी न सम्हाल सकोगे।
जगह लोग पहुंच जाते हैं धन इकट्ठा करने की, कि उनको समझ तमने कभी देखा। कोई बीमार है और तुम एक फूल जाकर में भी आता है कि अब करके और करेंगे क्या? क्योंकि धन से उसको भेंट कर आए। उस क्षण में तुमने अपने भीतर झांककर जो मिल सकता था, मिल गया। अब तो अतिरिक्त धन इकट्ठा देखा? तुम्हारी प्रतिमा उज्ज्वल हो जाती है तुम्हारी ही आंखों में। हो रहा है, फिर भी किए चले जाते हैं। जैसे एक नशा है। इस हलके हो जाते हो तुम। किसी को गाली दे दी, किसी का धन का क्या करेंगे अब, यह कोई सवाल भी नहीं है। जो भी इस अपमान कर दिया, उसके बाद तुमने देखा? तुम्हारी प्रतिमा दुनिया में धन से खरीदा जा सकता था, वह सब मिल गया है। तुम्हारी ही आंखों में धूल-धूसरित हो जाती है। तुम नीचे गिर | अच्छा मकान है, अच्छी कार है, अच्छा बगीचा है, अच्छा जाते हो। तुम तड़फते हो।।
भोजन, अच्छे कपड़े हैं; अब और क्या चाहिए? लेकिन दौड़ नर्क और स्वर्ग प्रतिपल घटता है। तो जब भी तुम सुखी | जारी रहती है। अनुभव करो, जानना कि सुख स्वर्ग है। जब भी दुखी अनुभव जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की सीमा नहीं मानता वह करो, जानना कि दुख नर्क है। जब भी दुखी अनुभव करो, | सदा दुखी रहता है। और जो अपनी आवश्यकताओं की सीमा जानना कि तुमने अधर्म लेश्याओं के साथ संबंध जोड़ा होगा, पहचान लेता है, उसके जीवन में सुख का अवतरण शुरू हो अन्यथा दुख होता नहीं। और जब भी सुखी समझो तो जानना | जाता है। आवश्यकता की सीमा को पहचान लेना सुख की कि तुमने शुभ लेश्याओं के साथ संबंध जोड़ा, धर्म के साथ पहली व्यवस्था है। और आवश्यकता की सीमा को ही न संबंध जोड़ा; अन्यथा सुख होता नहीं।।
पहचाने जो, वह तो सुखी हो ही नहीं सकता। उसके पास कितना सुख परिणाम है शुभ भाव का। दुख परिणाम है अशुभ भाव ही हो, वह दुखी रहेगा। जितना होगा, उतना ज्यादा दुखी होगा; का। तुम्हारे ही भाव हैं, तुम्हीं पर परिणाम आते हैं।
क्योंकि और ज्यादा की मांग बढ़ती जाएगी। यह जो महावीर ने छोटी-सी बोधकथा कही है :
पहले ने सोचा पेड़ को जड़मूल से काटकर, दूसरे ने कहा 'पहले ने सोचा, पेड़ को जड़मूल से काटकर उसके सारे फल केवल स्कंध ही काटा जाए। तीसरे ने कहा, इतने की क्या खा जाएं...।' इसे अपने भूख की चिंता है, लेकिन पेड़ के जरूरत? शाखा को तोड़ने से चल जाएगा। चौथे ने कहा, जीवन की कोई भी नहीं।
उपशाखा ही तोड़ना काफी है। पांचवें ने कहा, पागल हए हो? 'दूसरे ने कहा, केवल स्कंध ही काटा जाए...।' पूरे वृक्ष को | शाखा, उपशाखा, स्कंध, वृक्ष को करना क्या है? फल ही तोड़ क्यों नष्ट करें? स्कंध काटने पर फिर अंकुरित हो जाएगा। फिर | लिए जाएं। वृक्ष पैदा हो जाएगा।
भूख लगी है, फल की जरूरत है। भूख के लिए फल चाहिए। लेकिन इस दूसरे को भी सोच में न आया कि स्कंध भी क्यों शाखाएं, प्रशाखाएं क्यों तोड़ी जाएं? काटा जाए? फल काटने के लिए स्कंध काटना जरूरी कहां छठे ने कहा, बैठे; पके फल हैं, गिरेंगे। तोड़ने की जरूरत नहीं है? तुमने देखा जीवन में? जहां सुई की जरूरत होती है, तुम है। छीनना भी क्या? तलवार लिए घूमते हो। और जो काम सुई से हो सकता है, वह और ध्यान रखना, अस्तित्व इतना दे रहा है बिना मांगे और तलवार से हो ही नहीं सकता। अक्सर तो ऐसा होगा कि सूई से | बिना छीने, कि जो छीनने में पड़ जाता है वह भूल ही जाता है जो काम होता था, तलवार के कारण उसमें बाधा पड़ जाएगी। | जीवन का एक परम गुण, कि यहां प्रसाद बंट रहा है। यहां मिल
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