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जिन सूत्र भाग: 2
हिसाब है कि जीवन तो मुफ्त में मिला है। कुछ खर्च तो करना पाना नहीं है। जिसने जीवन से कुछ और पाने की कोशिश की, पड़ा नहीं है। धन तो बड़ी मुश्किल से मिलता है। बड़े श्रम से | उसकी कृष्ण लेश्या कभी कटेगी नहीं। मिलता है।
तो मैं तुमसे यह कहता हूं कि तम जैन मंदिरों में बैठे जैन मनि अपने भीतर चिंतन की इन प्रक्रियाओं को पकड़ना। इन्हीं के हैं, उनको भी गौर से देखना, तुम कृष्ण लेश्या से भरे पाओगे। ताने-बाने से कृष्ण लेश्या बनती है।
| उन्होंने संसार छोड़ा है लोभ के कारण; लोभ से मुक्त होकर मुल्ला का बेटा उससे पूछ रहा था कि पिताजी, मैं दुविधा में | नहीं। जैन मुनि समझाते हैं अपने श्रावकों को कि संसार में क्या हूं। दांतों का डाक्टर बनूं या कानों का? मुल्ला ने कहा, इसमें | रखा है ? अरे स्वर्ग खोजो। धन में क्या रखा है ? पुण्य खोजो। दविधा की बात क्या है? दांतों के डाक्टर बनो। क्योंकि व्यक्ति | यह धन तो कल खो जाएगा. पण्य कभी न खोएगा। के कान तो केवल दो होते हैं, दांत बत्तीस होते हैं। __ इस तर्क का अर्थ समझते हो? इसका अर्थ हुआ कि मुनि ऐसा
अगर भीतर लोभ हो तो हर तरफ लोभ छाया डालेगा। तुम्हारे धन खोज रहे हैं, जो कभी नहीं खोता। और तुम ऐसा धन खोज सभी निर्णय, तुम्हारे सभी वक्तव्य, तुम्हारा उठना-बैठना, सब रहे हो, जो खो जाता है। तो मुनि तुमसे ज्यादा लोभी हैं। तुम तो लोभ से परिचालित होगा।
क्षणभंगुर में भी प्रसन्न हो, मुनि शाश्वत धन खोज रहे हैं। लेकिन तमने कभी देखा कि चौबीस घंटे में तुम कुछ एकाध कृत्य भी दुकानदारी न गई। मन का गणित न गया। अगर उपवास भी कर करते हो, जो लोभ से मुक्त हो? लोग तो ध्यान भी करते हैं, तो रहे हैं, तप भी कर रहे हैं, ध्यान भी कर रहे हैं तो उपयोगिता लगी वे पहले पूछते हैं, मिलेगा क्या? प्रार्थना भी करते हैं तो पूछते हैं, है। ध्यान से आत्मा मिलेगी, कि ध्यान से परमात्मा मिलेगा। लाभ क्या होगा? परमात्मा के मंदिर में भी जाते हैं तो वे दुकान | मैं तुमसे कहता हूं, ध्यान से सिर्फ ध्यान मिलता है। प्रेम से में ही जाते हैं लाभ! तुम्हारे जीवन में कुछ ऐसा है, जो सिर्फ प्रेम मिलता है। और ध्यान जब पूरी तरह बरसता है तो उसी उपयोगिताशून्य हो? जिसकी कोई उपयोगिता न हो, लेकिन वर्षा की एक व्याख्या परमात्मा है। परमात्मा कुछ और नहीं है, मौज से तुम करते हो? जिसका मूल्य आंतरिक हो? जो ध्यान से मिलता है। उपयोगिता-शून्य, बाजार के बाहर,
कोयल गनगनाती, या पक्षी वक्षों में टी-वी-ट-ट करते लोभ-लाभ की वत्ति के बाहर, मद-मत्सर के बाहर, तम जब रहते, या वृक्षों में फूल खिलते, या आकाश में तारे हैं, या पहाड़ों | किसी क्षण में भी सहज आनंद से जीते हो, उसी क्षण में जो घटता से झरने फूटते हैं—कहां प्रयोजन है ? कहां उपयोगिता है? तुम है, वही परमात्मा है। कहो मोक्ष, कहो निर्वाण, कहो समाधि, किसी झरने से पछो कि क्या लाभ है, त बहता ही रहता है? कैवल्य। जो मर्जी नाम दो, क्योंकि उसका कोई नाम नहीं। फायदा क्या है नासमझ ! इसमें सार क्या है?
लेकिन तुम्हें अपने प्रतिपल में विचार करना होगा, देखना होगा, यह पूरी प्रकृति निस्सार है मनुष्य के अर्थों में। क्योंकि इसमें से | कहां-कहां कृष्ण लेश्या को तुम मजबूत करते हो। कहीं रुपये तो निकलते नहीं। आदमी तो उतना ही करता है, लेश्याएं छह प्रकार की हैं। कृष्ण, नील, कापोत, ये तीन जिसका उपयोग हो, युटीलिटी हो। लेकिन ध्यान रखना, अगर अधर्म लेश्याएं महावीर ने कहीं। तुम उतना ही करते हो जिसका उपयोग है तो तुम मशीन हो गए, पतंजलि के हिसाब में...पतंजलि ने मनुष्य के सात चक्रों का आदमी न रहे। तुम मुर्दा हो गए। तुम्हारी उपयोगिता हो गई, वर्णन किया। ये तीन लेश्याएं महावीर की और पतंजलि के तीन लेकिन जीवन का कोई गहन आनंद न रहा।
निम्न चक्र एक ही अर्थ रखते हैं। ये एक ही तथ्य को प्रगट करने सभी आनंद उपयोगिता मुक्त हैं। और जब तुम उपयोगिता की दो व्यवस्थाएं हैं। मुक्त होओगे, तभी तुम आनंद के जगत में प्रवेश करोगे। जिसको पतंजलि मलाधार कहता है—जो व्यक्ति मलाधार में उल्लास का कोई मूल्य थोड़े ही है! उल्लास अपने आप में जीता है, वह कृष्ण लेश्या में जीता है। मूलाधार में जीनेवाला मूल्यवान है। उल्लास किसी और चीज का साधन थोड़े ही है; | व्यक्ति अंधकार में जीता है, अमावस में जीता है। अपने आप में साध्य है। जीवन स्वयं साध्य है। इससे कुछ और छठवां चक्र है, आज्ञाचक्र। जो व्यक्ति आज्ञाचक्र में पहुंच
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