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वे चकित न होंगे, क्योंकि उनकी कोई अपेक्षा नहीं है।
शायद वे अपने भीतर दोहराएंगे कि देखा, संसार कैसा थिर है! सब अनित्य है। यहां मित्र भी अपना नहीं। यहां शत्रु भी पराया नहीं। यहां किसी का भरोसा, गैर-भरोसा करने का कोई कारण नहीं।
एक बड़ी प्रसिद्ध सूफी कहानी है, एक सम्राट ने अपने सारे बुद्धिमानों को बुलाया । और उनसे कहा कि मैं कुछ ऐसा सूत्र चाहता हूं—छोटा हो। बड़े शास्त्र नहीं चाहिए। मुझे फुर्सत भी नहीं बड़े शास्त्र पढ़ने की — ऐसा सूत्र चाहता हूं, एक वचन में पूरा हो जाए। और हर घड़ी काम आए। दुख हो कि सुख, जीत हो कि हार, जीवन हो कि मृत्यु, सूत्र काम आए। तो तुम एक ऐसा सूत्र खोज लाओ।
उन्होंने बड़ी मेहनत की, बड़ा विवाद किया। कुछ निष्कर्ष नहीं हो सका। तो उन्होंने कहा कि हम बड़ी मुश्किल में पड़े हैं। बड़ा विवाद है, संघर्ष है। कोई निष्कर्ष नहीं हो पाता। अच्छा हो... कि हमने सुना है एक सूफी फकीर गांव के बाहर ठहरा है। कहते हैं बड़ा प्रज्ञा को उपलब्ध, संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति है। हम उसी के पास चलें।
उस सूफी फकीर ने अपनी अंगूठी पहन रखी थी अंगुलि में, वह निकालकर सम्राट को दे दी और कहा कि इसे पहन लो। इस पत्थर के नीचे छोटा-सा कागज रखा है, उसमें सूत्र लिखा हुआ है । वह मेरे गुरु ने मुझे दिया था। मुझे तो जरूरत भी न पड़ी तो मैंने तो अभी तक खोलकर देखा भी नहीं। शर्त उन्होंने एक ही रखी थी कि जब कुछ और उपाय न रह जाए, सब तरफ से निरुपाय हो जाओ, तब इसे खोलकर पढ़ना । ऐसी कोई घड़ी न आयी। उनकी बड़ी कृपा है। इसलिए मैं तो इसे खोलकर पढ़ा नहीं लेकिन जरूर इसमें कुछ राज होगा। आप रख लो। लेकिन शर्त याद रखना — इसका वचन दे दो कि जब कोई और उपाय न रह जाएगा, सब तरफ से निरुपाय, असहाय हो जाओगे, तभी अंतिम घड़ी में इसे खोलना। क्योंकि यह सूत्र बड़ा बहुमूल्य है और साधारणतः खोला गया तो अर्थहीन है। बड़ी प्रखर वेदना की स्थिति में इसे खोलना ।
यह शब्द वेदना - सुनते हो, बड़ा बहुमूल्य है। यह उसी से बना है, जिससे वेद बना । वेदना के दो अर्थ होते हैं। एक तो अर्थ होता है, दुख | और एक अर्थ होता है ज्ञान । गहरे दुख के
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ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत
क्षण में ही ज्ञान होता है।
तो उस फकीर ने कहा कि जब वेदना का बहुत गहरा क्षण हो, तब इसे खोलना। यह वेद का सूत्र है। यह वेद है। इसे हर घड़ी में खोल लोगे तो बेकाम है। क्योंकि तुम तैयार ही न होओगे । तुम्हारा इससे तालमेल न बैठेगा। तुम जब बिलकुल वेदना में जल रहे हो, चिता में बैठे हो और सब तुम्हारे सांसारिक उपाय व्यर्थ हो जाएं- क्योंकि तुम सम्राट हो, तुम्हारे पास बहुत उपाय हैं
- तो इसको मत खोलना। जब तुम पाओ कि तुम दीन-दरिद्र, सम्राट नहीं; असहाय - लकड़ी के टुकड़े की तरह सागर में पड़े तरंगों के हाथ में― कहां ले जाएं, पता नहीं; तब इसे खोलना । उस वेदना के क्षण में इसका वेद-सूत्र तुम्हारे काम आ जाएगा। सम्राट ने अंगूठी पहन रखी। वर्षों बीत गए। कई दफे खयाल भी आया— लेकिन शर्त पूरी करनी थी । वचन दिया था तो खोला नहीं। कई दफे जिज्ञासा भी हुई। फिर सोचा कि खराब न हो जाए कहीं।
फिर घड़ी भी आ गई। वर्षों बाद सम्राट हार गया। दुश्मन जीत गया, उसके राज्य को हड़प लिया। वह भागा एक घोड़े पर, अपनी जान बचाने को । राज्य तो गया, संगी-साथी भी थोड़ी देर बाद उसे छोड़ दिए। दो-चार सैनिक, उसके रक्षक साथ थे; वे भी धीरे-धीरे हट गए क्योंकि अब कुछ बचा ही न था तो रक्षा करने का भी कोई सवाल न था ।
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दुश्मन पीछा कर रहा है, वह एक पहाड़ी घाटी से भागा जा रहा अपने घोड़े पर पीछे घोड़ों की आवाजें आ रहीं हैं, टापें सुनाई पड़ रहीं हैं । प्राण संकट में हैं। और अचानक उसने पाया कि रास्ता समाप्त हो गया। आगे तो भयंकर गड्ढ है। लौट भी नहीं सकता। पीछे दुश्मन पास आ रहा है। आगे जा भी नहीं सकता । एक क्षण को किंकर्तव्यविमूढ़, हतप्रभ खड़ा रह गया ! क्या करे ?
याद आयी अचानक, खोली अंगूठी, पत्थर हटाया, निकाला कागज, उसमें एक छोटा-सा वचन लिखा था 'दिस टू विल पास - यह भी बीत जाएगा।'
सूत्र को पढ़ते ही मुस्कुराहट आ गई उसे । एक बात खयाल में आयी, सब तो बीत गया – सम्राट न रहा, साम्राज्य गया। सुख बीत गया। तो जब सुख बीत जाता है तो दुख भी थिर तो नहीं हो सकता। शायद सूत्र ठीक ही कहता है। अब करने को भी कुछ
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