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जिन सूत्र भाग : 2
अवतार हो गए। सूली तो सभी को लगती है। किसी को खाट पर पड़े-पड़े लगती है, इससे क्या फर्क पड़ता है? खाट भी वैसी ही लकड़ी की बनी है, जैसी सूली बनती है। कहां सूली लगती है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सूली तो लगती है। मौत तो सभी की होती है। जीसस ने स्वीकार कर ली। अंतिम घड़ी में कहा, हे प्रभु! तेरी मर्जी पूरी हो। उसी क्षण पैगंबर हो गए।
सभी यहां पैगंबर और अवतार होने को हुए हैं। इससे कम पर राजी मत हो जाना। दुख तो मिलेगा ही। तो फिर इस दुख के साथ थोडा सर्जनात्मक खेल खेल लो। इसे स्वीकार कर लो। इसे आनंद और अहोभाव से उठा लो। मरने को तैयार हो जाओ। अपनी सूली अपने कंधे पर ढोने को तैयार हो जाओ।
और तुम पाओगे कि अमृत उपलब्ध हुआ। अमृत मिला ही हुआ है। थोड़ा मृत्यु से तुम ऊपर उठो, तो अमृत के दर्शन हों। हम ऐसे हैं, जैसे कोई आदमी जमीन पर आंख गड़ाये चल रहा हो,
और आकाश उपलब्ध है और आंख उठाकर देखता न हो। और कहता हो, आकाश कहां है? जमीन ही जमीन दिखाई पड़ती है। मिट्टी ही मिट्टी दिखाई पड़ती है।
ऐसे ही तुम्हारे भीतर मिट्टी भी है, जमीन भी है, आकाश भी है। आकाश यानी तुम्हारी आत्मा। मिट्टी, जमीन यानी तुम्हारा शरीर। शरीर से थोड़ी आंख उठाओ। शरीर यानी मृत्यु।
शरीर से थोड़ी आंख ऊपर उठाओ। आत्मा यानी अमृत, शाश्वत जीवन।
उस स्थिति को महावीर ने मुक्ति, मोक्ष कहा है। मोक्ष को पाए बिना जाओ तो आना व्यर्थ हुआ। फिर-फिर भेजे जाओगे। वह पाठ सीखे बिना इस पाठशाला से कोई कभी छूटा नहीं। सीख ही लो। जो सीख जाता है, उसे दुबारा नहीं भेजा जाता है। जरूरत ही न रही।
पुनर्जन्म के सिद्धांत का इतना ही अर्थ है कि बिना पाठ सीखे जो गया उसे वापिस स्कूल भेज दिया जाता है—फिर उसी कक्षा में। सीखकर आना ही होगा, ज्ञान की संपदा जगानी ही होगी। तम्हारे भीतर का वेद जब तक गुनगुनाने न लगे, जब तक तुम्हारे भीतर की ऋचाएं प्रगट न हो उठे, तब तक परमात्मा तुम्हारा पीछा नहीं छोड़नेवाला है।
आज इतना ही।
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