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गोशालक: एक अस्वीकृत तीर्थकर
| वह आकर कभी कहता नहीं कि किसको मैंने चुना। महासूर्य हैं, जो रात में तारों की तरह दिखाई पड़ते हैं। फासले के
महात्मा गांधी को यह खयाल था कि ईश्वर ने उन्हें उपकरण की कारण छोटे दिखाई पड़ते हैं। हमारे सूरज से करोड़ों गुने बड़े भांति चना है। वह गीता से ही उनको सनक सवार हई। गीता | सरज हैं। और अब तक कोई दो अरब सर्यों का पता चल चका पढ़-पढ़कर ही उनको यह खयाल बैठ गया कि ईश्वर ने उनको है। आगे भी होंगे। यह पृथ्वी हमारी तो कुछ भी नहीं है। इस चुना है; वे माध्यम हैं। लेकिन कौन सिद्ध कर सकता है कि पृथ्वी पर हम और भी नाकुछ हैं। गोडसे को ईश्वर ने नहीं चुना था? गोडसे को भी यही खयाल है। गोशालक यह कहता है, जरा अपना अनुपात तो सोचो। फिर कि वह कर क्या सकता है ? ईश्वर ने चुना है। और तुम सोचते तुम जो करते हुए मालूम पड़ते हो, वह भी प्रकृति ही तुमसे करा हो, जिन्ना को यह खयाल नहीं था?
रही है। एक स्त्री निकली तुम्हारे सामने से और तुम्हारे मन में | कौन निर्णय करेगा कि कौन वस्ततः चना गया है? यह तो वासना उठी। यह वासना तमने उठाई? तम कैसे उठाओगे? ईश्वर के बहाने, आदमी जो करना चाह रहा है, उसके लिए होती न, तो उठती कैसे? प्रकृति ने उठाई। प्रकृति ने दी ही हुई ईश्वर की मोहर ले लेता है।
है। तुम पैदा इस वासना के साथ हुए हो। गोशालक उतनी भी जगह नहीं छोड़ता। गोशालक कहता है, इसलिए गोशालक की दृष्टि परम स्वीकार की है। वह कहता कोई ईश्वर है, पता नहीं। इतना तय है कि आदमी के पुरुषार्थ से है, जो है, है। बुरा तो बुरा; भला तो भला। न यहां हार का कोई कुछ भी नहीं होता। जो होता है, वही होता है। कभी हो जाता है | उपाय है, न जीत का कोई उपाय है। गोशालक परम भाग्यवादी तो तुम सोचते हो, हम जीत गए। कभी नहीं होता तो तुम सोचते है। और मजा यह है कि भगवान भी नहीं है गोशालक के विचार हो, हम हार गए। लेकिन जो होना था, वही होता है। जब हो में। मार्क्स भी राजी हो जाता गोशालक से। क्योंकि वह भी परम जाता है, तुम अकड़ जाते हो। जब नहीं होता, तुम सिकुड़ जाते भाग्यवादी है। वह कहता है, भगवान तो कोई भी नहीं है। हो। तुम नाहक अकड़ते-सिकुड़ते हो। तुम नाहक जीतते-हारते लेकिन जगत एक नियम से चल रहा है। उसको मार्क्स कहता हो। जो होना है वही होता है।
| है, इतिहास का नियम। नाम कुछ भी दो। गोशालक कहता है, इसका अर्थ समझना। अगर यह बात खयाल में बैठ जाए कि इतना तय है आदमी नहीं चला रहा है, चल रहा है। जो होना है वही होता है, तो तुम तत्क्षण तनाव से मुक्त हो गए। यह अकर्मण्यतावाद तो और भी महावीर के विपरीत पड़ता है। ध्यान फलित हो जाएगा। अहंकार से मुक्त हो गए। जब मेरे क्योंकि महावीर का तो सारा बल इस बात पर है कि पुरुषार्थ; किए कुछ होता ही नहीं तो मैं कहां खड़ा हो सकता हूं? कृष्ण तो इसीलिए तो नाम महावीर है। करो, तो पा सकोगे। लड़ोगे, तो कहते हैं, कम से कम तुम निमित्त हो सकते हो। गोशालक जीतोगे। बहे, तो गए। तैरो। धारे के विपरीत तैरो। इंच-इंच कहता है, निमित्त भी नहीं हो सकते। तुम हो ही कहां? लड़ोगे तो ही किसी दिन पहुंचोगे। सिद्धि मुफ्त नहीं मिलती।
यह तो ऐसा ही है कि एक हाथी निकलता था, एक पुल के बड़ा गहन संघर्ष करना है। ऊपर से। वजनी हाथी, पुराना जीर्ण-शीर्ण पुल! कंपने लगा महावीर गोशालक के विरोध में रहे हों, ऐसा तो मुझे मालूम पुल। एक मक्खी बैठी थी हाथी के ऊपर। जब वे दोनों पुल पार नहीं होता। महावीर तो गोशालक के विरोध में नहीं हो सकते। कर गए तो उसने कहा, बेटा! मक्खी ने कहा हाथी से, बेटा! लेकिन महावीर का माननेवाला अड़चन में पड़ा होगा। अगर हमने पुल को बुरी तरह हिला दिया।
| महावीर सही हैं तो गोशालक गलत होना ही चाहिए। अगर हम तो मक्खी से भी छोटे हैं। इस विराट को जरा सोचो तो! गोशालक सही है तो महावीर गलत हो जाएंगे। इसमें हमारा होना न होना क्या फर्क रखता है? हमारे होने न होने अनुयायी की बुद्धि तो बड़ी छोटी होती है। वह दो विरोधों के से कितना फर्क पड़ता है! आदमी इस पृथ्वी के मुकाबले ही बहुत बीच किसी तरह का समन्वय नहीं देख पाता। महावीर के मार्ग छोटा है। पृथ्वी खुद भी बहुत छोटी है। सूरज साठ हजार गुना से भी आदमी पहुंचता है। गोशालक के मार्ग से भी पहुंच सकता बड़ा है। और सूरज खुद ही बहुत साधारण है। इससे बड़े-बड़े है। महावीर के मार्ग पर संकल्प का आखिरी उपाय करना होता
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