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आज के सूत्रः
की रात जैसा। जिस पर कृष्ण लेश्या पड़ी है, उसे अपनी आत्मा ज लेश्याएं छह प्रकार की हैं : कृष्णलेश्या, नील का कोई पता नहीं चलता। इतने अंधेरे में दबे हैं प्राण, कि प्राण
लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या (पीत लेश्या), हो भी सकते हैं, इसका भी भरोसा नहीं आता। स्वयं ही पता नहीं पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या।'
चलती आत्मा तो दूसरे को तो पता कैसे चलेगी? 'कृष्ण, नील और कापोत, ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएं हमारा युग कृष्ण लेश्या का युग है। लोग अमावस में जी रहे हैं। इनके कारण जीव विभिन्न दुर्गतियों में उत्पन्न होता है।' हैं। पूर्णिमा खो गई है। पूर्णिमा तो दूर, दूज का चांद भी कहीं
'पीत (तेज), पद्म और शुक्ल; ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएं | दिखाई नहीं पड़ता। इसीलिए आत्मा पर भरोसा नहीं आता। हैं। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है।' भरोसा आए भी कैसे? पर्दा इतना काला है कि भीतर प्रकाश _ 'छह पथिक थे। जंगल के बीच जाने पर वे भटक गए। भूख का स्रोत छिपा है, इसकी प्रतीति कैसे हो? जब तुम दूसरे को भी
सताने लगी। कुछ देर बाद उन्हें फलों से लदा एक वृक्ष दिखाई देखते हो, तब भी देह ही दिखाई पड़ती है। स्वयं को देखते हो, दिया। उनकी फल खाने की इच्छा हुई। वे मन ही मन विचार तब भी देह ही दिखाई पड़ती है। करने लगे। एक ने सोचा कि पेड़ को जड़मूल से काटकर उसके दर्पण के सामने खड़े होकर तुम अपने को देखते हो, वह फल खाए जाएं। दूसरे ने सोचा, केवल स्कंध ही काटा जाए। तुम्हारा होना नहीं है; तुम्हारी देह की छाया है। न तुम्हें अपना तीसरे ने विचार किया कि शाखा को तोड़ना ठीक रहेगा। चौथा | पता चलता है, न दूसरों की आत्मा का कोई बोध होता है। सोचने लगा कि उपशाखा ही तोड़ी जाए। पांचवां चाहता था कि कृष्ण लेश्या उठे, तो ही आत्मदर्शन हो सकते हैं। फल ही तोड़े जाएं। छठे ने सोचा कि वृक्ष से टपककर फल जब ऐसी महावीर ने छह पर्दो की बात कही है—कृष्ण लेश्या, फिर नीचे गिरें तभी चुनकर खाए जाएं।'
नील लेश्या, फिर कापोत लेश्या...क्रमशः अंधेरा कम होता 'इन छह पथिकों के विचार, वाणी तथा कर्म, क्रमशः छहों | जाता है। लेश्याओं के उदाहरण हैं।'
कृष्ण के बाद नील। अंधेरा अब भी है, लेकिन नीलिमा जैसा लेश्या महावीर की विचार-पद्धति का पारिभाषिक शब्द है। है। फिर कापोत-कबूतर जैसा है। आकाश के रंग जैसा है। उसका अर्थ होता है। मन, वचन, काया की काषाययुक्त __ जैसे-जैसे पर्दे उठते हैं, वैसे-वैसे भीतर की झलक स्पष्ट होने वृत्तियां। मनुष्य की आत्मा बहुत-से पों में छिपी है। ये छह लगती है। लेकिन एक बात खयाल रखना। महावीर कहते हैं, लेश्याएं छह पर्दे हैं।
शुभ्र लेश्या भी पर्दा है। वह अंतिम लेश्या है। जब तक रंग हैं, पहला पर्दा है: कृष्ण लेश्या। बड़ा अंधकार, काला, अमावस तब तक पर्दा है। जब तक रंग हैं, तब तक राग है।
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