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जिन सूत्र भाग : 2
में पड़े हों तो किसको किसकी याद आती है?
इसलिए महावीर कहते हैं. अपनी आंख। आंखवालों से सीख लेना, मगर अपनी आंख के अतिरिक्त किसी और की आंख को अपना सहारा मत बनाना।
अपनी आंख जब तक न मिल जाए, सीखना, साधना; लेकिन चेष्टा यही रखना कि अपनी आंख मिल जाए। अपनी आंख से ही कोई सत्य का दर्शन कर पाता है।
सत्य के साक्षात के लिए स्वयं की आंख के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है।
आज इतना ही।
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