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लकः एक अस्वीकृत तीर्थकर
उसकी ऐसी मरम्मत की लडके की। कत्ते पर तो दया हो गई। सकता है. गोशालक के साथ तो कोई आड न चलेगी। मगर वस्तुतः कुत्ते पर दया हुई? लड़के की मरम्मत कर दी तुम चकित होओगे जानकर कि महावीर नग्न रहे, गोशालक उसने। वह कुत्ते को मार रहा था, उसने लड़के की मारपीट कर भी नग्न रहा। गोशालक भी दिगंबर था। लेकिन महावीर की दी। अब वह सोच रहा है कि बड़ी करुणा हुई।
नग्नता के पीछे कारण था कि जो भी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार लेकिन तुम्हारी अदालतें भी यही कर रही हैं, कानून भी यही समाज ने दिया है उसका त्याग। उस सबको छोड़ देना है। कर रहा है। दंड किसी को अपराध से रोक नहीं पाया, न रोक संसार से जो मिला है वह सब छोड़ देना है। वस्त्र भी संसार से पाएगा। चेष्टा से कौन बदलता है?
मिले हैं। वस्त्रों के साथ बहुत-सी बातें जुड़ी हैं। वे सब छोड़ तुम कभी अपने जीवन पर विचार तो करो। चालीस-पचास देनी हैं। आदमी को भीतर जाना है, बाहर का सब छोड़ देना है। साल तुम जी लिए हो दुनिया में। कितनी चेष्टा तुमने की है, कोई शरीर ही छोड़ देना है तो वस्त्र तो और भी शरीर के बाहर हैं। बदलाहट हुई है या कि तुम ठीक वैसे के वैसे हो? तब तुम्हें अंतर्मुखी होना है। गोशालक की अंतर्दृष्टि समझ में आएगी। लेकिन इस बदलने । गोशालक भी नग्न था। गोशालक के नग्न होने का कारण की चेष्टा में तुमने चिंता बहुत उठाई, तनाव बहुत झेला। और बिलकुल दूसरा था। वह कहता था नग्न ही आए हैं, नग्न ही गोशालक कहता है, हो सकता है उसी चिंता और तनाव के जाना होगा। तो बीच में यह कपड़ों का उपद्रव क्यों? कारण तुम इतने ज्यादा व्यस्त रहे अपने को बदलने में, कि अगर क्यों? बच्चे जब पैदा हुए थे तो नग्न थे। तो ठीक है, वही विश्व की ऊर्जा तुम्हें बदलने भी आयी होगी तो लौट गई होगी। स्वीकार है। तुम ग्राहक न रहे होओगे।
महावीर की नग्नता में अनुशासन मालूम होता है, गोशालक छोड़ो चिंता। छोड़ो अस्तित्व पर। जैसा होता है, उसे चुपचाप | की नग्नता में सहजता मालूम होती है। अगर तुम्हें महावीर नग्न होने दो। तुम एक दफा प्रयोग करके देखो गोशालक का भी। मिल जाएं तो तुम नमस्कार करोगे। क्योंकि महावीर की नग्नता
महावीर, बुद्ध और कृष्ण और पतंजलि तो दुनिया में स्वीकृत में योग मालूम होगा, साधना मालूम होगी, तपश्चर्या मालूम तीर्थंकर हैं। गोशालक अस्वीकृत तीर्थंकर है। लेकिन स्वीकृत होगी। गोशालक नग्न मिल जाए तो तुम कहोगे, हिप्पी है। तीर्थंकारों से दुनिया कुछ अच्छी हुई, ऐसा मालूम पड़ता नहीं। क्योंकि गोशालक कहता है, नग्न आए हैं, नग्न जाएंगे।
इसलिए कभी-कभी मैं सोचता हूं, जो अस्वीकार हो गए हैं उन | गोशालक यह भी नहीं कहता, इसमें कुछ गौरव है नग्न होने पर भी ध्यान देना जरूरी है। हो सकता है, उनके पास कुछ कुंजी में। वह कहता है तुम्हें कपड़े पहनना ठीक लगता है, चलो हो। जिन्हें हमने स्वीकार किया है, हो सकता है हमने उन्हें ठीक। हमें नंगा रहना ठीक लगता है, यही ठीक। हमें हम रहने इसीलिए स्वीकार किया कि हमारे रोग से उनका कुछ तालमेल | दो, तुम तुम रहो। हम तुम्हें आदेश नहीं देते, तुम कृपा करके हमें बैठता था। हमारा रोग है, कर्ता होने का रोग।
आदेश मत दो। महावीर कहते हैं, करो ध्यान, करो तप। जंचती है बात। गोशालक इतना ही कहता है, प्रत्येक अपनी प्रकृति के गोशालक कहता है करने से क्या होगा? बात जंचती नहीं। अनुकूल चले, सहज रहे। महावीर जब कहते हैं करो ।
करो, तो तम्हें ऐसा लगता है, हां, अपने गोशालक न तो स्वर्ग की बात करता है, न नर्क की। बल में कुछ है, अपने बस में कुछ है।
गोशालक ने बड़ा मजाक किया है। पूरा सिद्धांत तो उल्लिखित गोशालक कहता है, किसी के बस में कुछ नहीं। तुम चाहते नहीं है कहीं, लेकिन महावीर कहते हैं, सात नर्क हैं। गोशालक हो, यह आदमी चुप रहे। यह न बोले। क्योंकि यह तुम्हारी से कोई पूछता है, कितने नर्क हैं? वह कहता है, सात सौ। वह असलियत खोल रहा है। यह तुम्हारी दीनता जाहिर कर रहा है। सिर्फ मजाक कर रहा है। वह यह नहीं कह रहा कि सात सौ हैं। महावीर के साथ तो अहंकार बच सकता है, गोशालक के साथ वह यह कह रहा है, पागल हुए हो? न कोई नर्क है, न कोई स्वर्ग | कैसे बचाओगे? महावीर के साथ तो धर्म की आड़ में बच है। बस तुम हो और तुम्हारा चैतन्य है। बाकी सब सिद्धांतों के |
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