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जिन सूत्र भाग: 2
जाल हैं।
वाइजे - सादालोह से कह दो, छोड़ उकबा की बातें इस दुनिया में क्या रक्खा है, उस दुनिया में क्या होगा? वह भोले-भाले धर्मगुरु से कह दो कि छोड़ परलोक की बातें । इस दुनिया ही में कुछ नहीं रक्खा है तो उस दुनिया में क्या होनेवाला है?
वाइजे- सादालोह से कह दो, छोड़ उकबा की बातें इस दुनिया में क्या रखा है, उस दुनिया में क्या होगा ? अक्सर जो तुम्हें बताते हैं, उस दुनिया में बहुत कुछ रक्खा है, वे तुम्हें प्रभावित करते हैं क्योंकि तुम्हारे लोभ को जगाते हैं । वे कहते हैं, यहां तो कुछ नहीं है लेकिन वहां है। क्या बाहर भटक रहे हो ? क्या कंकड़-पत्थर इकट्ठे कर रहे हो ? क्या ठीकरे जोड़ रहे हो? कामिनी- कांचन में कुछ भी नहीं; लेकिन वहां है स्वर्ग में। वे तुम्हारे लोभ को जगाते हैं, तुम्हारे भय को जगाते हैं। वे तुम्हारी बीमारियों को उकसाते हैं।
गोशालक जैसे व्यक्ति न तुम्हारे लोभ को उकसाते हैं, न तुम्हारे भय को उकसाते हैं। वे तुम्हें केवल तुम हो जाओ स्वयं, सहज, प्रकृति के साथ चलने लगो, निसर्ग तुम्हारी व्यवस्था हो जाए, इतनी बात कहते हैं। इसलिए बहुत संप्रदाय बन नहीं सकते। तकदीर कुछ ही, काविसे-तदबीर भी तो है
तरी के लिबास में तामीर भी तो है जुलमात के हिजाब में तनवीर भी तो है आ मुंतजिर-ए-इस्रते - फर्दे इधर भी आ तकदीर कुछ ही, काविसे- तदबीर भी तो है किस्मत तो थोड़ी है; ज्यादा तो पुरुषार्थ है। तखरीब के लिबास में तामीर भी तो है
और विनाश तो है, लेकिन उसमें छिपा निर्माण भी तो है । जुलमात के हिजाब में तनवीर भी तो है
अंधेरा है माना, लेकिन बड़ा प्रकाश है। सुबह जल्दी करीब आ रही है। जगत में दुख है माना, लेकिन स्वर्ग में बड़ा सुख भी है। आ मुंतजिर-ए-इस्रते - फर्दे इधर भी आ
ओ आगामी कल के सुख ! मेरी तरफ भी दृष्टि दे।
आदमी ऐसे जीता है - लोलुपता में, भरोसे में, आशा में। गोशालक जैसे तीर्थंकरों के पास आशा का कोई उपाय नहीं। गोशालक तुम्हें ठीक जैसा है, वैसा ही कह देता है । तुम्हें जरा भी
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सांत्वना नहीं देता ।
तुम पूछो आत्मा अमर है ? वह कहेगा, जब तक मरे नहीं, पता कैसे चले ? जब मैं मर जाऊं तब पूछना। अभी तो मैं जिंदा हूं। या तुम मरोगे तब जान लेना। अभी पहले से जानकर भी क्या होगा? और पहले जानने का उपाय भी कहां है ? जानने के पहले जानने का उपाय कहां है? अभी तो जी लो, फिर मौत भी आएगी, देख लेना। होगी अमरता तो मिल जाएगी, न होगी तो नहीं मिलेगी। इसकी चिंता भी क्या करना ?
गोशालक ने खूब झकझोर दिया होगा भारत को । इसीलिए जैन शास्त्र बड़े परेशान रहे हैं। उसने सारे सिद्धांतों की बुनियाद उखाड़ दी होगी। उसने आदमी को इतना नैसर्गिक बनने का संदेश दिया कि सिद्धांत, धर्म और शास्त्र और परंपरा का कोई उपाय नहीं रह गया।
मैं एक गीत पढ़ता था :
हवा हूं हवा मैं वासंती हवा हूं चढ़ी पेड़ महुआ थपाथप मचाया गिरी धम्म से फिर चढ़ी आम ऊपर उसे भी झकोरा किया कान में कू उतरकर भगी मैं हरे खेत पहुंची वहां गेहुंओं में लहर खूब मारी
पहर दोपहर क्या अनेकों पहर तक
ऐसे व्यक्ति - गोशालक जैसे व्यक्ति – तेज आंधी की तरह आते हैं।
हवा हूं हवा मैं वासंती हवा हूं
चढ़ी पेड़ महुआ थपाथप मचाया
वे आदमी की चेतना को खूब थपथपाते हैं, झकझोर देते हैं।
गिरी धम्म से फिर चढ़ी आम ऊपर
उसे भी झकोरा किया कान में कू उतरकर भगी मैं हरे खेत पहुंची वहां गेहुओं में लहर खूब मारी
पहर दोपहर क्या अनेकों पहर तक
ऐसे व्यक्ति धूल-धवांस झाड़ जाते हैं चेतना की । ऐसे व्यक्ति संप्रदाय निर्मित नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों का धर्म बड़ा शुद्ध है। ऐसे व्यक्ति ऐसे हैं, जैसे शुद्ध सोना । आभूषण बनाने हों तो कुछ मिलाना पड़ता है सोने में। चौबीस कैरेट सोने के आभूषण नहीं
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