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जिन सत्र भाग: 21
REATORIANDRAMA
है। जो उसने तीस.साल पहले तय किया था उसी को दोहरा रहा | वह बहने के पक्ष में था, तैरने के पक्ष में नहीं। संघर्ष के पक्ष में है। वह पुनरुक्ति है। उसके भीतर नए का कोई आविर्भाव नहीं नहीं, समर्पण के पक्ष में। अगर गोशालक को क्रोध हो जाए तो होता। सुबह होती ही नहीं। एक यांत्रिक पुनरुक्ति है, जो वह वह कहता, क्रोध हुआ। मैं क्या करूं? प्रेम हो जाए तो कहता, दोहराये चला जाता है। रोज वही करता है, जो कल भी किया प्रेम हुआ। मैं क्या करूं? गोशालक कोई दायित्व स्वीकार नहीं था, परसों भी किया था। लकीर का फकीर है।
करता था। वह कहता था, इतने विराट में मैं एक छोटा-सा गोशालक बड़ा स्वतंत्र है। अनुशासनमुक्त, आदतशून्य कलपुर्जा हूं। कहां जा रहा है यह विराट, मुझे पता नहीं। कहां से व्यक्ति था। अनप्रेडिक्टेबल। उसके बाबत कुछ घोषणा नहीं की। आ रहा है, मुझे पता नहीं। क्यों मेरे भीतर क्रोध होता है इसका जा सकती कि गोशालक कल क्या करेगा। कल ही तय होगा। भी मुझे पता नहीं।। कल आने दो। क्षण-क्षण जीनेवाला था।
__इसको थोड़ा खयाल से समझने की कोशिश करना। इसका मेरे लिए तो बहुत मूल्य की बात है यह। गोशालक मेरे लिए अर्थ हुआ, आदमी के किए कुछ भी न होगा। पुरुषार्थ कुछ भी तो मील का पत्थर है मनुष्य-जाति के इतिहास में। इसलिए मैं नहीं है। कृष्ण की गीता से मेल खाएगी यह बात। कृष्ण भी यही सम्मान से उसका नाम लेता हूं। मेरे लिए तो वह उतना ही कह रहे हैं, लेकिन जरा और ढंग से। कृष्ण कहते हैं, ईश्वर कर मूल्यवान है, जितने मूल्यवान महावीर। उनसे रत्तीभर भी कम | रहा है। गोशालक उतनी बात भी बीच में नहीं लाता। वह कहता मूल्य नहीं है। लेकिन अनुयायी महावीर का है, उसको तो बड़ी है, कहां पता है कि ईश्वर है? कौन कर रहा है यह तो मुझे पता अड़चन है।
नहीं। इतना पता है कि मेरे किए कुछ भी नहीं हो रहा है। कृष्ण तो जैन शास्त्र गोशालक के संबंध में बड़ी निंदा से भरे हैं। कहते हैं, ईश्वर पर छोड़ दो। गोशालक कहता है, छोड़ दो। ऐसी गालियों से भरे हैं कि कभी-कभी आश्चर्य होता है कि ईश्वर है या नहीं, मुझे पता नहीं। लेकिन इसे ढोने की कोई भी अहिंसा को माननेवाले लोग इतनी गालियां निकाल कैसे सके? जरूरत नहीं है। सब ढोना नासमझी है। करुणा, प्रेम, अहिंसा की बात करनेवाले लोग इतनी क्षुद्रता पर यह गोशालक की दृष्टि अगर सही हो तो अहंकार बिलकुल उतर कैसे आए ? गोशालक बुरा भी रहा हो तो भी ये भले लोग समाप्त हो जाएगा। बचने का उपाय नहीं बचेगा। इतनी गालियां कैसे दे सके? बुरे आदमी को भी इतनी गालियां शायद कृष्ण की गीता का माननेवाला भी किसी पीछे के देना भले आदमी का लक्षण नहीं। अगर विरोध था तो सैद्धांतिक दरवाजे से अहंकार को बचा ले। वह कहे कि ईश्वर मेरा उपयोग विरोध करके पूरा कर लेते। लेकिन विरोध भावात्मक मालूम कर रहा है, में उपकरण हूं। इससे भी अहंकार बच सकता है। पड़ता है, सैद्धांतिक नहीं है। महावीर के मुकाबले, महावीर के क्योंकि मुझे उपकरण चुना है, तुमको तो नहीं चुना। मैं हूं अनुयायियों को लगा होगा, एक ही व्यक्ति खड़ा है प्रखर, जो माध्यम। मैं हूं निक्ति। ठीक विपरीत बात कह रहा है : न कोई चरित्र, न कोई ज्ञान। कृष्ण की बात सुनकर अर्जुन यह तो समझ भी ले कि चलो, मैं
और इस सबसे भी कठिन बात, पर बड़ी महत्वपूर्ण, गोशालक | बीच में नहीं आता। लेकिन ईश्वर ने मुझे चुना है धर्म-युद्ध के का जो दृष्टिकोण था वह था, अकर्मण्यतावाद। वह कहता था, | लिए। तो अहंकार नए रूप में खड़ा होगा। दुर्योधन को तो नहीं किए से कुछ भी नहीं होता। वह कहता किए से न पाप होता है, | चुना है। किसी और को तो नहीं चुना है, अर्जुन को चुना है। न किए से पण्य होता है। वह कहता था. करना नासमझी की | परमात्मा का हाथ अर्जन के कंधे पर है। बात है। करने से कभी कुछ हुआ ही नहीं है। जो होना है, वही | यह भी खतरनाक हो सकती है बात। इसका मतलब हुआ, होता है। जो होना था, वही हुआ। जो होना है, वही होगा। वह | मेरी जिम्मेवारी भी न रही, और जो मुझे करना है वह तो मैं करूंगा परम नियतिवादी था। वह कहता था, सब हो रहा है। हमारे | ही। अब ईश्वर का समर्थन और सैंक्शन भी मिल गया। अब किए का कुछ सार नहीं है, इसलिए जीवन से संघर्ष करने का | ईश्वर भी मेरे हाथ में है। अब मैं अपनी बात को सही सिद्ध करने कोई प्रयोजन नहीं है।
के लिए ईश्वर का भी सहारा ले लूंगा। और ईश्वर तो मौन है।
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