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ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत
खोना होगा। जैसे हम हैं, वैसे तो हमें मिटना होगा। जो हम हैं, बह रही है हृदय पर केवल अमा वैसे तो हमें विसर्जित होना होगा।
मैं अलक्षित हूं यही कवि कह गया है मिलने को मिलेगा बिलआखिर
स्नेह-निर्झर बह गया है ऐ अर्श सुकूने-साहिल भी
रेत ज्यों तन रह गया है तूफाने-हवादिस से लेकिन
यह तन तो रेत जैसा ढह ही जाएगा। यह तो घर है, घास-फूस बच जाए सफीना मुश्किल है
की मचिया है। यह तो मिट्टी का बना घर है। यह मिटेगा ही। वह किनारा मिलेगा शांति का-सुकूने-साहिल भी। अंततः | यह नाव तो डूबेगी ही। यह तो हर हाल डूबेगी। जो बचाना मिलेगा। लेकिन
चाहते हैं, उनकी भी डूबती है। जो डुबाने-डूबने की फिक्र तूफाने-हवादिस से लेकिन
छोड़कर चल पड़ते हैं, उनकी भी डूबती है। नाव तो डबती है. | बच जाए सफीना मुश्किल है
लेकिन जिसने नाव को बचाया वह खुद भी डूब जाता है। और लेकिन यह नाव तूफान में बचेगी, यह मुश्किल दिखाई पड़ता जिसने नाव की फिक्र न की, नाव तो डूब जाती है, लेकिन वह | है। मुश्किल ही नहीं है, मैं तो कहता हूं, यह निश्चित है, यह उबर जाता है। नाव तो डूबेगी। तुम बचोगे, नाव डूबेगी।
| यहां जो डूबते हैं, वे ही उबरते हैं। यहां जो बचने की चेष्टा नाव यानी तुम्हारा शरीर। नाव यानी तुम्हारा मन। नाव यानी | करते हैं, वे डूबे ही रह जाते हैं। तुम्हारा अहंकार। यह तो नहीं बचेगा। यह तो तूफान में हम न औतार थे न पैगंबर, क्यूं यह अजमत हमें दिलाई गई जाएगा। इसको बचाने की कोशिश की तो तुम उस पार जाने से मौत पाई सलीब पर हमने उम्र वनवास में बिताई गई भी वंचित रह जाओगे। और यह तो फिर भी जाएगा। यह तो ये बड़ी मीठी पंक्तियां हैं। राम को वनवास मिला ठीक, वे फिर भी न बचेगा। यह तो बचाकर भी नहीं बचता। जाना इसका अवतार थे। जीसस को सूली लगी ठीक, वे मसीहा थे। स्वभाव है। और जो बचता है सदा, और जाना जिसका स्वभाव | हम न औतार थे न पैगंबर क्यूं यह अजमत हमें दिलाई गई नहीं है, उसकी तुमने याद नहीं की। उसकी सुरति नहीं जगाई। मौत पाई सलीब पर हमने उम्र वनवास में बिताई गई निराला की बड़ी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं:
__ तुम राम हो या न हो, उम्र तो वनवास में बीतेगी। तुम राम हो स्नेह-निर्झर बह गया है
या न हो, सीता तो तुम्हारी चुराई ही जाएगी। तुम जीसस हो या स्नेह-निर्झर बह गया है,
न, सली तो लगेगी। वह तो निश्चित है। उसका अवतार और रेत ज्यों तन रह गया है
पैगंबर से कुछ लेना नहीं। वह तो जन्म का स्वभाव है कि मृत्यु आम की यह डाल जो सूखी दिखी
होगी। वह तो पाने का स्वभाव है कि खोना पड़ेगा। वह तो पत्ते कह रही है अब यहां पिक या शिखी
के आने में ही तय हो गया कि सूखेगा और गिरेगा। वसंत नहीं आते, पंक्ति में वह हूं लिखी
पतझड़ की तैयारी है। यह तो होगा ही। लेकिन इसे अगर तुम नहीं जिसका अर्थ
स्वेच्छा से हो जाने दो-वही फर्क है। वही फर्क है तुममें और जीवन ढह गया है
जीसस में; तुममें और राम में। दिए हैं मैंने जगत को फूल-फल
राम इसे स्वेच्छा से हो जाने देते हैं। वनवास तो हुआ। वे किया है अपनी प्रभा से चकित चल
तैयार हो गए। धनुषबाण लेकर खड़े हो गए घर के बाहर, कि पर अनस्वर था सकल पल्लवित पल
चला। एक बार भी ना-नुच न की। यह नहीं कहा कि कैसा ठाठ जीवन का वही, जो ढह गया है
अन्याय है। यह कैसा बलात व्यवहार। बाप पर धोखे का शक अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा
भी न किया, शिकायत भी न की। श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा
वनवास तो सभी को होता है। राम ने स्वीकार किया इसीलिए
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